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समाचार गैलरी Archives - Nationalive... https://nationallive.in/archives/category/समाचार-गैलरी Mon, 27 Oct 2025 13:02:51 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 https://nationallive.in/wp-content/uploads/2023/03/Mice-Logo-2.png समाचार गैलरी Archives - Nationalive... https://nationallive.in/archives/category/समाचार-गैलरी 32 32 हिंदू संस्कृति को धूमिल करने की हो रही है साज़िश…? https://nationallive.in/archives/1338 https://nationallive.in/archives/1338#respond Thu, 12 Jun 2025 00:10:44 +0000 http://nationallive.in/?p=1338 200 वर्षों से अधिक ,मुगलों ने ,100 वर्षों से अधिक अंग्रेजों ने ,भारत पर राज किया, जिसमें हिंदुस्तान के लोगों पर इतने जुल्म किए गए, जिस पर कई ग्रंथ लिखे जा सकते हैं ,जिसमें हिंदू संस्कृति को मिटाने की पुरजोर कोशिश की गई, लेकिन छत्रपति शिवाजी ,महाराणा सांगा ,महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे कई महा […]

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200 वर्षों से अधिक ,मुगलों ने ,100 वर्षों से अधिक अंग्रेजों ने ,भारत पर राज किया, जिसमें हिंदुस्तान के लोगों पर इतने जुल्म किए गए, जिस पर कई ग्रंथ लिखे जा सकते हैं ,जिसमें हिंदू संस्कृति को मिटाने की पुरजोर कोशिश की गई, लेकिन छत्रपति शिवाजी ,महाराणा सांगा ,महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे कई महा योद्धाओं ने मुगलों से लोहा लेकर हिंदू संस्कृति को खत्म होने से बचाया, वहीं भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद ,रानी लक्ष्मीबाई जैसे देशभक्तों ने अंग्रेजों के साथ दो-दो हाथ किए ।
आजादी के 70 साल के बाद अब एक बार फिर हिंदू संस्कृति को धूमिल एवं बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है ,अनुभव सिन्हा द्वारा आर्टिकल 15 फिल्म बनाई गई जिसमें यह दर्शाने की कोशिश की जा रही है की 70 सालों में ब्राह्मणों ने, जिसका एक रूप राजाओं के गुरु, तो दूसरा जंगलों में आश्रम बनाकर ईश्वर की तपस्या करना ,तो वही एक रूप गरीब ब्राम्हण सुदामा का भी रहा है, लेकिन इस फिल्म के माध्यम से यह दुष्प्रचार फैलाने की कोशिश की जा रही है कि ब्राह्मण जाति की संस्कृति एक क्रूर एवं अत्याचारी रही है ,इस फिल्म के माध्यम से आज हिंदू संस्कृति को धर्म एवं जाति के आधार पर बांटने का प्रयास किया जा रहा है ताकि हिंदुओं में आपस में फूट एवं एक दूसरे के प्रति दुर्भावना फैले और हिंदू संस्कृति छिन्न-भिन्न हो सके, इस फिल्म का मध्य प्रदेश सहित कई प्रदेशों में ब्राह्मण संगठनों द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है एवं राज्य शासन द्वारा फिल्म को दिखाने पर प्रतिबंध लगाया गया है ।
अभी तक तो आर्टिकल 15 फिल्म के माध्यम से ब्राह्मणों को ही अत्याचारी बताने का प्रयास हो रहा था लेकिन पूर्व विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर के पुत्र प्रयाग अकबर ने नेटफ्लिक्स पर लीला फिल्म का निर्माण किया इस फिल्म में पूरी हिंदू संस्कृति को ही हिंसक एवं अत्याचारी दर्शाने की कोशिश की गई है ,लीला फिल्म के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि हिंदूराष्ट्र वह कल्पना है जहां गैर हिंदू को जीने का कोई हक नहीं है, जहां गैर हिंदुओं के लिए तानाशाही है और हिंदू असहिष्णु है ,दोनों ही फिल्मों का निचोड़ देखा जाए तो स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि हिंदू संस्कृति को धूमिल करने की साजिश हो रही है ,एवम दुनिया को दर्शाया जा रहा है कि हिंदू बाहुल्य भारत में हिंदू या हिंदू संस्कृति दूसरे धर्म एवं जाति के लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं, इस तरह की मनगढ़ंत कहानियों पर आधारित फिल्मों का यकायक बनना यह दर्शाता है कि एक बार फिर असहिष्णुता एवं अवार्ड वापसी गैंग फिर सक्रिय दिखाई पड़ रही है, जिनका मुख्य उद्देश्य हिंदू संस्कृति को बदनाम एवं धूमिल करना है ,यह सब तब हो रहा है जब मोदी सरकार एक बार फिर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद ,तीन तलाक के माध्यम से मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचार से निजात दिलाने के लिए तीन तलाक को खत्म करना, सरकार की प्राथमिकता ,एवम सबका साथ सबका विकास की कार्यशैली है।
हिंदू संस्कृति तो “वसुदेव कुटुंबकम” वाली संस्कृति है जिस को धूमिल करने के लिए षडयंत्र रचा जा रहा है ऐसे में सवाल ये उठता है कि हिंदुस्तान के इतिहास की कड़वी सच्चाई जिसमें औरंगजेब, बाबर ,हुमायूं ,महमूद गजनवी, मोहम्मद गोरी जैसे अनेकों मुगल शासक, जिन्होंने हिंदुस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार की सारी सीमाएं लांघी थी, क्यों कोई उस अत्याचार को दर्शाने वाली फिल्में बनाने की हिमाकत नहीं करता, क्यों हजारों कश्मीरी पंडितों की हत्या एवं पलायन की विवशता को लेकर फिल्में बनाने की जुर्रत नहीं करता ?दरअसल इस प्रकार की फिल्मों का तथ्यों से कोई लेना देना नहीं होता, बल्कि इनका मूल उद्देश्य भारत की हिंदू संस्कृति को धूमिल एवं बदनाम करना एवं भारत के लोगों को धर्म और जाति के आधार पर बांटकर ,हिंदू संस्कृति को खत्म करना है।
ऐसे में भारत सरकार एवं सेंसर बोर्ड को चाहिए कि इस प्रकार की फिल्मों के प्रदर्शन पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाई जाए एवं भविष्य में भारत को धर्म एवं जाति के आधार पर बांटने वाली फिल्मों के निर्माण पर भी प्रतिबंध लगे।

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संत समाज ने दी ब्रह्मलीन महायोगी पायलट बाबा को श्रद्धांजलि” “संत समाज की दिव्य विभूति थे ब्रह्मलीन पायलट बाबा-श्रीमहंत रविंद्रपुरी” “महादेव के अंशावतार थे ब्रह्मलीन पायलट बाबा-श्रीमहंत हरि गिरी” “ब्रह्मलीन पायलट बाबा की शिक्षाओं और आश्रम की सेवा संस्कृति को आगे बढ़ाना ही जीवन का उद्देश्य-केको आइकावा” https://nationallive.in/archives/4326 https://nationallive.in/archives/4326#respond Sat, 07 Sep 2024 08:34:19 +0000 https://nationallive.in/?p=4326 “संत समाज ने दी ब्रह्मलीन महायोगी पायलट बाबा को श्रद्धांजलि” “संत समाज की दिव्य विभूति थे ब्रह्मलीन पायलट बाबा-श्रीमहंत रविंद्रपुरी” “महादेव के अंशावतार थे ब्रह्मलीन पायलट बाबा-श्रीमहंत हरि गिरी” “ब्रह्मलीन पायलट बाबा की शिक्षाओं और आश्रम की सेवा संस्कृति को आगे बढ़ाना ही जीवन का उद्देश्य-केको आइकावा” हरिद्वार, 6 सितम्बर मनोज उपाध्याय! सभी तेरह अखाड़ों […]

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संत समाज ने दी ब्रह्मलीन महायोगी पायलट बाबा को श्रद्धांजलि”
“संत समाज की दिव्य विभूति थे ब्रह्मलीन पायलट बाबा-श्रीमहंत रविंद्रपुरी”

“महादेव के अंशावतार थे ब्रह्मलीन पायलट बाबा-श्रीमहंत हरि गिरी”

“ब्रह्मलीन पायलट बाबा की शिक्षाओं और आश्रम की सेवा संस्कृति को आगे बढ़ाना ही जीवन का उद्देश्य-केको आइकावा”

हरिद्वार, 6 सितम्बर मनोज उपाध्याय! सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूषों ने जूना अखाड़े के ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर महायोगी पायलट बाबा को श्रद्धासुमन अर्पित किए। जगजीतपुर स्थित पायलट बाबा आश्रम में पायलट बाबा की मुख्य शिष्या एवं आश्रम की अध्यक्ष महामंडलेश्वर केको आइकावा (योगमाता कैवल्यानंद) महाराज की अध्यक्षता में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन महायोगी पायलट बाबा संत समाज की दिव्य विभूति थे। उन्होंने पूरे विश्व में सनानत धर्म का डंका बजाया। उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर सौ से अधिक देशों के लोगों ने सनातन धर्म को अंगीकार किया। ब्रह्मलीन पायलट बाबा के दिखाए मार्ग पर चलते हुए मानव कल्याण में योगदान का संकल्प ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है। अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरी महाराज ने कहा कि महादेव के अंशावतार ब्रह्मलीन पायलट बाबा विद्वान संत थे। सन्यास दीक्षा लेने से पहले वायुसेना में विंग कमांडर के पद पर रहते हुए उन्होंने देश सेवा में योगदान दिया। धर्म सेवा और देश सेवा में ब्रह्मलीन पायलट बाबा का योगदान सदैव सभी को प्रेरणा देता रहेगा। श्रीमहंत हरिगिरी ने कहा कि जूना अखाड़े और संत समाज को पूरा विश्वास है कि ब्रह्मलीन पायलट बाबा की शिष्या और आश्रम की अध्यक्ष महामंडलेश्वर केको आइकावा, महामंत्री महामंडलेश्वर साध्वी चेतनानंद गिरी व महामंडलेश्वर साध्वी श्रद्धा गिरी अपने गुरूदेव की सेवा परंपरा को विस्तार देंगी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन पायलट बाबा त्याग, तपस्या और सेवा की प्रतिमूर्ति तथा संत समाज के प्रेरणा स्रोत थे। उनकी शिक्षाएं हमेशा शिष्यों का मार्गदर्शन करती रहेंगी। आह्वान पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अरूण गिरी ने कहा कि ब्रह्मलीन महायोगी पायलट बाबा ने समाज को ज्ञान की प्रेरणा देकर अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर करने में अहम योगदान दिया और समस्त संत समाज को एकता के सूत्र में बांधा। जूना अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत प्रेम गिरी, श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि योग व धर्म संस्कृति के विलक्षण विद्वान ब्रह्मलीन पायलट बाबा के जीवन आदर्श से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। सोनीपत सांसद सतपाल ब्रह्मचारी व नैनीताल सांसद अजय भट्ट ने कहा कि संत महापुरूष केवल शरीर त्यागते हैं। उनकी शिक्षाएं सदैव समाज मार्गदर्शन करती हैं। पायलट बाबा की प्रमुख शिष्या व आश्रम की अध्यक्ष केको आईकावा, महामंत्री साध्वी चेतनानंद गिरी व महामंत्री साध्वी श्रद्धा गिरी ने सभी संत महापुरूषों का आभार व्यक्त किया। आश्रम की अध्यक्ष केको आइकावा (योगमाता कैवल्यानंद) ने कहा कि वे सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें गुरू के रूप में ब्रह्मलीन पायलट बाबा का सानिध्य प्राप्त हुआ। गुरूदेव की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए उनकी योग शिक्षाओं और आश्रम की सेवा संस्कृति को आगे बढ़ाना ही उनके जीवन का उद्देश्य है। महामंडलेश्वर शैलेषानंद गिरी, स्वामी मुक्तानंद, स्वामी प्रेमानंद, महंत महेश्वरपुरी, महंत महाकाल गिरी एवं महंत शैलेंद्र गिरी ने फूलमाला पहनाकर सभी संत महापुरूषों का स्वागत किया। इस अवसर पर महंत श्रीमहंत देवानंद सरस्वती, स्वामी हरिचेतनानंद गिरी, महंत बलवीर गिरी, महंत ईश्वर दास, स्वामी ललितानंद गिरी, स्वामी यतिंद्रानंद गिरी, स्वामी गर्व गिरी, श्रीमहंत रामरतन गिरी, श्रीमहंत विद्यानंद सरस्वती, श्रीमहंत सत्य गिरी, स्वामी रामेश्वरांनद सरस्वती, महंत जसविंदर सिंह, स्वामी मुक्तानंद, श्रीमहंत साधनानंद, महंत राघवेंद्र दास, महंत विष्णुदास, स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी प्रेमानंद सहित सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूष व हजारों की संख्या में भक्त मौजूद रहे।

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बाहुबलियों के इशारे पर भेदभावपूर्ण कार्य कर रहा प्रशासन,सिंहस्थ क्षेत्र में 2004 से 2015 तक हुए अतिक्रमण को क्यों बचाया जा रहा है। https://nationallive.in/archives/3606 https://nationallive.in/archives/3606#respond Sun, 11 Dec 2022 17:40:57 +0000 http://nationallive.in/?p=3606 बाहुबलियों के इशारे पर भेदभावपूर्ण कार्य कर रहा प्रशासन अवैध कॉलोनी है तो बिजली ,पानी ,सड़क का इंतजाम किसने किया? निगम अधिकारी, , कॉलोनाइजर नेताओं पर भी हो कार्यवाही सिंहस्थ क्षेत्र में 2004 से 2015 तक हुए अतिक्रमण को क्यों बचाया जा रहा है 2016से 2022 तक के अतिक्रमण हटाने की ही क्यों पीटी मुनादी […]

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बाहुबलियों के इशारे पर भेदभावपूर्ण कार्य कर रहा प्रशासन
अवैध कॉलोनी है तो बिजली ,पानी ,सड़क का इंतजाम किसने किया?
निगम अधिकारी, , कॉलोनाइजर नेताओं पर भी हो कार्यवाही
सिंहस्थ क्षेत्र में 2004 से 2015 तक हुए अतिक्रमण को क्यों बचाया जा रहा है
2016से 2022 तक के अतिक्रमण हटाने की ही क्यों पीटी मुनादी
सिंहस्थ क्षेत्र के अतिक्रमण हटाने में भेदभाव पूर्ण रवैया शासन प्रशासन का
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 281 अतिक्रमण कर्ता को अतिक्रमण हटाने के आदेश 2012 में दे चुकी है
उज्जैन सिंहस्थ मेला क्षेत्र के अतिक्रमण हटाने में भेदभाव पूर्ण रवैया शासन प्रशासन द्वारा अपनाया जा रहा है सिंहस्थ क्षेत्र के भू माफियाओं ने सिंहस्थ मेला क्षेत्र की कृषि भूमि खरीद कर उस आरक्षित भूमि पर कॉलोनी काटने वाले को आखिर अभय क्यों दिया जा रहा है,सिंहस्थ मेला क्षेत्र के अतिक्रमण हटाने के लिए माननीय उच्च न्यायालय माननीय सर्वोच्च न्यायालय इंदौर द्वारा 2012 में जिला कलेक्टर उज्जैन को अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए जा चुके हैं । पर कलेक्टर द्वारा आज तक मा. उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया गया है, और कलेक्टर द्वारा अपने बनाए आदेश का पालन करवा कर राजनीतिक रसूखदार अतिक्रमण कर्ताओ को खुली छुट दे दी गई है वहीं भूमि स्वामी को नोटिस देकर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही के लिए मुनादी फिरवा दी गई है।
भरी ठंड में मुनादी सुनकर ऐसा सदमा लगा कि सलीम भाई पतंग वाले का दम ही निकल गया
आगर रोड नाका की गुलमोहर कॉलोनी में निगम ने 150 से अधिक परिवारों को अतिक्रमण हटाने के नोटिस दिए हैं।
जबकि जिला कलेक्टर एवं निगमायुक्त ने 281अतिक्रमण में से एक भी अतिक्रमण नहीं हटाए एवं नहीं रोकने की कार्रवाई की गई आज भी बेधड़क रसूकदार जनप्रतिनिधियों के संरक्षण में सिंहस्थ मेला क्षेत्र की आरक्षित भूमि पर धड़ल्ले से अतिक्रमण, अवैध निर्माण किए जा रहे हैं वहीं जिला कलेक्टर सिंहस्थ 2016 के बाद जितने भी अतिक्रमण अवैध कालोनियों में हुए उन अवैध अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई की जा रही है जबकि माननी उच्च न्यायालय द्वारा सन 2012 में सिंहस्थ मेला क्षेत्र से 281 अतिक्रमण हटाने के आदेश जिला कलेक्टर उज्जैन को दे चुकी है उसके बाद भी लगभग 10 साल बीतने को आए हैं पर जिला कलेक्टर उज्जैन द्वारा 281 अतिक्रमण में से एक भी अतिक्रमण को नहीं हटाया गए एवं इससे कहीं ज्यादा अतिक्रमण निगम अधिकारियों द्वारा घूस खाकर सिंहस्थ मेला क्षेत्र में करा दिए गए सिंहस्थ मेला क्षेत्र के अतिक्रमण तो अतिक्रमण है चाहे वो 2004 से हो या 2016 के बाद अतिक्रमण हो। अपराध 2004 वाले ने भी किया है वही अपराध 2016 वाले ने भी किया है किसी भी तरह से अपराध को दो भागो में बाटने की शासन प्रशासन कि निती न्याय संगत नहीं है करवाही करना है तो दोनों पर की जाना चाहिए। 2016 वाले अवैध निर्माण हैं तो 2012 से 2016 तक के अवैध निर्माण को क्यों बख्शा जा रहा है , सजा सभी को समान रूप से मिलना चाहिए इसमें किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करना चाहिए,अगर इसी तरह से भेदभाव किया जाता रहा तो शासन प्रशासन पर से विश्वास और न्याय व्यवस्था से भी भरोसा उठ जायेगा।

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जटिया जी उज्जैन के लिए मिस्टर इंडिया हैं, सोशल मंच पर उज्जैन के नेताओं की करनी के चलते हो रहे हैं फजीते https://nationallive.in/archives/3596 https://nationallive.in/archives/3596#respond Sun, 11 Dec 2022 06:54:47 +0000 http://nationallive.in/?p=3596 जटिया जी उज्जैन के लिए मिस्टर इंडिया हैं, सोशल मंच उज्जैन के नेताओं की करनी के चलते हो रहे हैं फजीते सोशल मंच पर आ रहे हैं,कुछ इस तरह के कमेंट्स उज्जैन, अपने किए हुए कार्यों का फल भविष्य में कहीं ना कहीं देखने को जरूर मिलता है, शायद इसीलिए एक बैठक में उत्तर के […]

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जटिया जी उज्जैन के लिए मिस्टर इंडिया हैं, सोशल मंच
उज्जैन के नेताओं की करनी के चलते हो रहे हैं फजीते
सोशल मंच पर आ रहे हैं,कुछ इस तरह के कमेंट्स
उज्जैन, अपने किए हुए कार्यों का फल भविष्य में कहीं ना कहीं देखने को जरूर मिलता है, शायद इसीलिए एक बैठक में उत्तर के विधायक ने दूसरे विधायक से यह कहा था कि सिंहस्थ क्षेत्र में अवैध निर्माण होता है तो निश्चित रूप से उज्जैन में लगने वाले सिंहस्थ पर इसका असर होगा और कहीं ना कहीं उज्जैन की जनता का इसमें अहित है इसलिए अगर ऐसा होता है तो उज्जैन की जनता हमें कभी माफ नहीं करेगी, लेकिन उज्जैन की यह विडंबना रही है कि जो भी जनप्रतिनिधि सत्ता में काबिज होता है वह जनता के हित को दरकिनार करते हुए स्वार्थ सिद्धि को अपनाते हैं लेकिन जनता दिल्ली को देखकर वोट दे देती है लेकिन दिल्ली वाले नेता जी को क्या पता है कि उज्जैन के जनप्रतिनिधियों की कथनी और करनी में कितना अंतर है यह हम नहीं कह रहे हैं यह इन दिनों सोशल मंच पर उज्जैन के पूर्व जनप्रतिनिधि के विषय में चर्चा आम हो रही है उन चर्चाओं के कुछ मुख्य अंश हम आपको जरूर बताएंगे
जब भी उज्जैन में विमल मिल, विनोद मिल ,हीरा मिल आदि का जिक्र होता है तो उज्जैन के पूर्व जनप्रतिनिधि सत्यनारायण जटिया का जिक्र जनता अवश्य करती है क्योंकि उज्जैन में हुए हर चुनाव में जटिया जी ने मिल मजदूरों का हक़ दिलाने को लेकर चुनावी एजेंडा बनाया लेकिन आज उन हजारों मजदूरों में से सैकड़ों मजदूरों की मृत्यु हो चुकी है और आज भी है उज्जैन के जनप्रतिनिधियों के लिए एजेंडा ही है, कुछ दिनों पूर्व ही क्षेत्र के विधायक एवं सांसद के घर के बाहर मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर धरना दिया था लेकिन आज सवाल यह उठता है कि आखिर उज्जैन के जनप्रतिनिधि अपने स्वार्थ सिद्धि से ऊपर उठकर जनता के हित के लिए कब समय और सोच बनाएंगे।
सोशल मंच पर विनोद मिल ,रामघाट और कार्तिक मेला को लेकर उज्जैन के पूर्व जनप्रतिनिधि सत्यनारायण जटिया को लेकर एक पोस्ट पर चर्चा हो रही है इस पोस्ट में लिखा है कि सत्यनारायण जटिया जी आपको बाबा महाकाल बुला रहे हैं हाजिर हों, इस पोस्ट पर कई कमैंट्स उज्जैन की जनता ने लिखे हैं कुछ प्रमुख कमैंट्स आपको हम बताते हैं
विनय जैन लिखते हैं कि जटिया जी उज्जैन के लिए मिस्टर इंडिया हैं,
आनंद राय लिखते हैं कि जनता का.. चूसने के बाद अपने व्यापार को स्थापित करने में लगे गए,
रवि जायसवाल लिखते हैं कि जब से वापसी हुई है भाजपा की लुटिया डूब गई है,
जीवन बैरागी लिखते हैं कि जब सांसद थे तब नहीं दिखे तो अब क्या दिखेंगे,
गिरीश लोधी लिखते हैं कि नर्मदा शिप्रा लिंक योजना का एजेंडा लेकर 25 साल एमपी रहे अगर पावड़ा लेकर खोदते तो आज शिप्रा नर्मदा लिंक हो जाती।
बहर हाल यह कुछ मुख्य कमेंट है जो जनता के मन में अपने जनप्रतिनिधियों के लिए उनकी करनी के लिए बसे थे लेकिन वास्तविकता यह है कि जनप्रतिनिधि जब सत्ता में काबिज होते हैं वह बेशक उस समय जनता के हितों को दरकिनार कर अपनी स्वार्थ सिद्धि कर लेते हैं लेकिन कहीं न कहीं भविष्य में उनकी करनी का फल जनता आने वाली पीढ़ियों के सम्मुख जरूर रखती है, और इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि भविष्य में कई और उज्जैन के जनप्रतिनिधि मिस्टर इंडिया कहलाएंगे, इसलिए वर्तमान के जनप्रतिनिधियों और आने वाले जनप्रतिनिधियों विशेषकर उज्जैन के जनप्रतिनिधियों को अपनी करनी पर चिंतन करने की आवश्यकता है अन्यथा यह भी अटल सत्य है कि कुबेर का खजाना भी कुबेर अपने साथ नहीं ले जा पाया था, लेकिन करनी का बखान इतिहास में दर्ज हो जाता है।


उपरोक्त कमेंटस सोशल मंच फेसबुक से लिये हैं।

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पत्रकारों चलो  भोपाल अपना हक़ मांगने शिवराज सरकार द्वारा पत्रकारों की उपेक्षा दो साल से अधिमान्यता नहीं https://nationallive.in/archives/3581 https://nationallive.in/archives/3581#respond Thu, 08 Dec 2022 04:38:48 +0000 http://nationallive.in/?p=3581 पत्रकारों चलो भोपाल अपना हक़ मांगने शिवराज सरकार द्वारा पत्रकारों की उपेक्षा दो साल से अधिमान्यता नहीं उज्जैन, पत्रकारों चलो भोपाल अपना हक मांगने, 2017 में मध्य प्रदेश के कई पत्रकार संगठनों ने पत्रकारों के हक के लिए यह आह्वान किया था, देखा जाए तो 2017 से पहले से लेकर अब तक अगर 1 साल […]

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पत्रकारों चलो भोपाल अपना हक़ मांगने
शिवराज सरकार द्वारा पत्रकारों की उपेक्षा
दो साल से अधिमान्यता नहीं
उज्जैन, पत्रकारों चलो भोपाल अपना हक मांगने, 2017 में मध्य प्रदेश के कई पत्रकार संगठनों ने पत्रकारों के हक के लिए यह आह्वान किया था, देखा जाए तो 2017 से पहले से लेकर अब तक अगर 1 साल कमलनाथ सरकार को छोड़ दिया जाए तो लगातार शिवराज सरकार ही मध्यप्रदेश में रही है लेकिन साल दर साल यह देखा गया है कि शिवराज सरकार द्वारा पत्रकारों के हितों की अनदेखी की गई है, यह किसी एक पत्रकार का आरोप नहीं है बल्कि कई पत्रकार संगठनों ने मध्य प्रदेश सरकार पर पत्रकार हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है।
हाल ही में एक वाकया मध्यप्रदेश के नसरुल्लागंज में देखा गया जहां पत्रकारों के नजर नहीं आने पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों को खूब लताड़ा लेकिन सवाल यह उठता है कि इस प्रकार के हालात मध्यप्रदेश में क्यों बनते जा रहे हैं, इसके लिए मुख्य रूप से कुछ कारण सामने आए हैं जिसमें मध्य प्रदेश सरकार और मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग की नीतियां उत्तरदाई है।
2017 में पत्रकार गंगा पाठक ने एक संदेश लिखा है जो उन तमाम पत्रकार साथियों के नाम था जो मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग की कार्यशैली और स्वेच्छाचारिता से क्षुब्ध हैं।
”जनसंपर्क विभाग हैं कहां साहब! अब तो जनसंपर्क के नाम पर कथित महत्वपूर्ण लोगों की चापलूसी करने वाला एक गिरोह चल रहा है। इस गिरोह के मन में जो आता है, वही किया जाता है। जहां तक पत्रकारों की बात है तो मध्यप्रदेश में जनसंपर्क विभाग ने पत्रकारों को जाने कब का हाशिये में रख दिया है। पत्रकारों की परिभाषा बदल दी गई है, वरिष्ठता के मापदण्ड विसर्जित कर दिये गये हैं, अधिमान्यता की बोली लगाई जा रही है। इस सबके बावजूद सब खामोश हैं। सरकार खामोश है, सूचना मंत्री और उनका मंत्रालय खामोश है, पत्रकारों के कथित संगठन खामोश हैं। इन लोगों की खामोशी तो एक हद तक बर्दाश्त की जा सकती है लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना यह कि मध्यप्रदेश का पत्रकार खामोश है, कलम की धार खामोश है, श्रमजीवी खामोश है। इस खामोशी को तोडऩा होगा, कलम की धार बिचौलियों के आगे कमजोर पड़ गई है, इस मिथक को तोडऩा होगा।
जनसंपर्क विभाग बुरी तरह बीमार है, उसकी सोच फालिज का शिकार है, उसकी कार्यशैली में चापलूसी और दलाली की गंध आती है, उसकी नीतियों में पत्रकारों को छोड़कर सब कुछ नजर आता है। ये मध्यप्रदेश है हुजूर, जहां पत्रकारों को छोड़कर चाहे जिसको अधिमान्यता की रेवड़ी दी जाती है, जहां आधे से ज्यादा अधिमान्यताएं उन चेहरों पर चिपकाई गई हैं, जो या तो अवांछित गतिविधियों में संलिप्त है, या फिर जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक सरोकार नहीं रहा। ये खेल लगातार जारी है। ईमानदारी से काम करने वाले श्रमजीवी पत्रकार न तो अच्छा पारिश्रमिक प्राप्त कर पाते हैं और न अधिमान्यता! दूसरी ओर चापलूसी और दलाली की भरपूर कीमत वसूलने वाले अधिमान्यता का तमगा मुफ्त में पा जाते हैं। इसी वजह से अखबार के संचालकों को अपनी जेब में रखने की दम्भोक्ति का उद््घोष करने वाले जनसंपर्क विभाग को पत्रकारिता में पत्रकार छोड़ सब दिखता है।
जब अधिमान्यता के लिये यह गोरखधंधा चल रहा हो तो अधिमान्यता देने के लिये गठित समितियों के गठन और उसके वजूद पर सवाल उठाना बेमानी है। अधिमान्यता ही जब एप्रोच और चापलूसी की कसौटी पर परख कर दी जा रही है तो इन कमेटियों में स्थान देने की नीति इससे परे नहीं हो सकती। सब कुछ हो रहा है, बेखटके हो रहा है। ऐसा नहीं है कि सही मायनों में पत्रकारिता करने वाले पत्रकार अधिमान्य पत्रकारों की सूची में नहीं हैं, ऐसा नहीं कि मध्यप्रदेश में तमाम पत्रकार जनसंपर्क विभाग की आरती गा रहे हैं और ऐसा भी नहीं है कि मध्यप्रदेश की पत्रकारिता की धार के आगे जनसंपर्क विभाग का कोई अस्तित्व है।
दरअसल मध्यप्रदेश के पत्रकारों ने मध्यप्रदेश जनसंपर्क की अधिमान्यता की मान्यता को ही नकार दिया है। साफ लफ्जों में मध्यप्रदेश में अधिमान्यता की मान्यता पत्रकारों ने निरस्त कर दी है। अब पत्रकारों से ज्यादा चिन्ता सूचना मंत्रालय और मध्यप्रदेश सरकार को होना चाहिये कि वे सरकारी अधिमान्यता को पुन: मान्यता किस तरह दिलवायें, अधिमान्यता का सम्मान उठाने के लिये कौन से कदम उठाये जाएं। हम पत्रकारों को चाहिये कि जनसंपर्क में चल रहे तथाकथित गुटों को बेनकाब कर दें, हम पत्रकारों को चाहिये कि अंदर से काले चेहरों पर डली सफेद नकाबों को नोंच लिया जाये। और पत्रकारों को चाहिये कि पत्रकारों के नाम पर हर साल खर्च होने वाली भारी भरकम राशि को डकारने वाले इस विभाग से हमेशा-हमेशा के लिये खदेड़ दिये जाएं।
अब यही होगा। हम सबको मिलकर यही करना चाहिये। जिसके पास जो अधिकृत जानकारी हो, उसे वह सार्वजनिक करे, घोटाले सप्रमाण सामने लाये जायें, अपने पत्रकार संगठनों को उन पर ज्ञापन सौंपने को कहा जाये और जब तक ‘दे दनादन’ वाली कार्रवाई न हो, कोई खामोश न बैठे। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो हम भी ‘कथित पत्रकारों’ की सूची में शामिल माने जायेंगे और सरकार पत्रकारों पर होने वाले भारी भरकम खर्च की बदौलत हमें भी ‘चोर चोर मौसेरे भाई’ वाली कहावत में शामिल कर लेगी।”
– गंगा पाठक
(वॉट्सऐप ग्रुप सबकीआवाज़न्‍यूज़ पर प्राप्‍त और प्रसारित)
उपरोक्त संदेश कई व्हाट्सएप ग्रुपों में फारवर्ड और अपलोड किया गया था , वैसे तो इस मैसेज में पत्रकारों की व्यथा समाहित है और मध्य प्रदेश सरकार एवं जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश की कार्यशैली का भी उल्लेख है लेकिन 2017 से लेकर अब तक जबकि 2022 खत्म होने को है लगातार पत्रकारों के हितों की अनदेखी की जा रही है।
बात करें अधिमान्यता की , वैसे तो अधिमान्य पत्रकारों के सारे अधिकार धीरे-धीरे क्षीण कर दिए गए हैं लेकिन बावजूद इसके पिछले 2 सालों से मध्यप्रदेश में अधिमान्यता कमेटी भंग की हुई है, अर्थात 2 सालों से मध्यप्रदेश में किसी पत्रकार को अधिमान्यता नहीं दी गई है।
लेकिन इससे पहले भी जनसंपर्क विभाग द्वारा अधिमान्यता सूची को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं, इससे पहले अधिमान्यता के मानकों से परे जाकर गैर पत्रकारों को अधिमान्यता दी गई जिसमें कई भू माफिया, खनन माफिया, शराब माफिया, अपराध में संलिप्त लोग, राजनीतिक पहुंच एवं चाटुकारिता वाले लोग, अखबार संपादक के रिश्तेदार जो वास्तविक में गैर पत्रकार हैं, इस तरह के तमाम गैर पत्रकारों को अधिमान्यता रेवड़ी की तरह बांटी गई और लगातार बिना तहकीकात किए उसको रिन्यूव करना भी जारी है, वहीं दूसरी ओर वास्तविक पत्रकार जिन्होंने कई अखबारों को अपनी लेखनी के दम पर फलक तक पहुंचाया, वह अभी भी अखबार दर अखबार अपनी चप्पलें घिस रहे हैं, लेकिन अभी भी वह अधिमान्यता से वंचित है क्योंकि ज्यादातर अखबार मालिकों ने उनके इस हक को अपने परिवार एवं रिश्तेदारों में बांट दिया है।
वहीं आधुनिकता के इस दौर में जहां डिजिटल मीडिया को प्राथमिकता दी जा रही है ऐसे में न्यूज़ वेब पोर्टल को संचालित करने वाले पत्रकारों को भी केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा मान्यता दी जाए ।
बहर हाल मध्य प्रदेश सरकार को चाहिए कि पत्रकार हितों को लेकर एक ठोस नीति का निर्धारण किया जाए,ताकि वास्तविक पत्रकारों को उनका हक मिले, एवम गैर पत्रकारों की अधिमान्यता रद्द कर पत्रकारिता जगत में एक स्वच्छ एवम निष्पक्ष माहौल निर्मित हो, तभी सही मायने में लोकतंत्र की गरिमा बच पाएगी।

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चकोर अपनी अंतिम सांसे ले रहा है,हत्या का दोषी नगर निगम https://nationallive.in/archives/3523 https://nationallive.in/archives/3523#respond Fri, 25 Nov 2022 04:20:00 +0000 http://nationallive.in/?p=3523 चकोर अपनी अंतिम सांसे ले रहा है,हत्या का दोषी नगर निगम चकोर के दिल के साथ साथ शहरवासियों का दिल भी हुआ तार तार उज्जैन, सिंहस्थ ही एक ऐसा आयोजन है जिसमे हर 12 साल में उज्जैन को गांव से शहर बनाने में अरबो रूपया खर्च हो जाता है लेकिन बड़े शर्म की बात है […]

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चकोर अपनी अंतिम सांसे ले रहा है,हत्या का दोषी नगर निगम
चकोर के दिल के साथ साथ शहरवासियों का दिल भी हुआ तार तार
उज्जैन, सिंहस्थ ही एक ऐसा आयोजन है जिसमे हर 12 साल में उज्जैन को गांव से शहर बनाने में अरबो रूपया खर्च हो जाता है लेकिन बड़े शर्म की बात है कि अगले 12 साल तक उज्जैन नगर निगम, गांव से शहर बने उज्जैन को संजो कर रख नहीं पाता है, और इस तरह उज्जैन शहर में अरबों रुपया खर्च होने के बाद भी नगर निगम के अधिकारियों की गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली के चलते शहर वीरान जंगल में तब्दील हो जाता है, इसका एक छोटा सा उदाहरण शहर के उद्यान हैं जोकि सिंहस्थ में करोड़ों रुपया लगाकर संवारे गए थे आज घोर बदहाली के शिकार हो रहे हैं।

शहर के लगभग सभी उद्यान जंगल में तब्दील हो रहे हैं लेकिन आज हम बात करेंगे चकोर पार्क की ,जिसे सिंहस्थ 2016 में 3 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करके सजाया और संवारा आ गया था, आज नगर निगम के अधिकारियों की गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली के चलते अपनी दुर्दशा को चीख चीख कर बयां कर रहा है, आलम यह है कि 20 बीघा के क्षेत्रफल में फैला चकोर पार्क जिसकी साल संभाल करने के लिए एक भी माली नहीं है इससे आपको अंदाजा लग गया होगा कि 20 बीघा के उद्यान में अगर एक भी माली नहीं है तो उसकी क्या दुर्दशा हो गई होगी, पूरे उद्यान में बड़ी-बड़ी जंगली झाड़ियां हो रही है, पानी और नियमित देखभाल की कमी से सभी पौधे और वृक्ष सुख रहे हैं, चारों तरफ सूखी लकड़ियां बिखरी पड़ी हैं, बच्चों के लिए लगाए गए झूले ,फिसल पट्टी, व्यायाम करने के उपकरण सब टूट चुके हैं ऐसी स्थिति में बच्चों एवं उनके अभिभावकों द्वारा इनका इस्तेमाल करने पर गंभीर चोट लगने का अंदेशा है बड़ी हास्यास्पद बात यह है कि उद्यान में पेड़ों से रस्सी बांधकर टायर के झूले पर्यटकों के लिए बनाए गए हैं जिस पर झूल कर पर्यटक घायल हो सके, उद्यान को देखने के लिए आने वाले पर्यटकों के लिए जगह जगह महंगे ग्रेनाइट से बनी कुर्सियां बनाई गई थी अब वह टूट चुकी है उनके ऊपर के ग्रेनाइट गायब हो चुके हैं , यहां एक छोटा सा तालाब बनाया गया था जिस पर एक लकड़ी का ब्रिज बनाया गया था जोकि गुजरात में हुए हादसे की पुनरावृति करने को तैयार है जिसकी सारी लकड़ियां सड़ चुकी है लेकिन नगर निगम द्वारा यहां किसी का प्रकार का साइन बोर्ड नहीं लगाया गया है और ना ही इसको दुरुस्त कराया गया है, बावजूद इसके इस पर चलने पर प्रतिबंध भी नहीं लगाया गया है , इस ब्रिज पर कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है,जिस तालाब पर यह ब्रिज बनाया गया था वह तालाब भी पूरी तरह से सूख चुका है, चकोर पार्क में लगा दिल भी तार-तार हो चुका है,


इस तरह से चारों तरफ अव्यवस्थाओं के चलते पूरा चकोर पार्क वीरान बिहड़ का स्वरूप ले चुका है, लेकिन ताज्जुब की बात देखिए कि नगर निगम द्वारा इस वीरान बिहड़ जंगल को देखने के लिए ₹15 शुल्क भी पर्यटकों से वसूला जाता है, परिवार सहित पिकनिक मनाने की आस में पर्यटक यहां शुल्क देकर अंदर जाते हैं और जब वह अंदर के नजारों से रूबरू होते हैं तब उन्हें घोर निराशा होती है, चकोर पार्क में लाखों रुपए की लागत से बना म्यूजिकल फाउंटेन बनाया गया है, जिसका रोज शाम को शो हुआ करता था जिसे देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में पर्यटक यहां आते थे लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते महीनों से यह सूखा पड़ा हुआ है ,कर्मचारियों के अनुसार बोरिंग में मोटर फसी होने के कारण से महीनों से यह फाउंटेन शो बंद है नगर निगम के अधिकारियों की अनदेखी की वजह से महीनों से मोटर को दुरुस्त नहीं कराया गया है इसी के चलते पूरे पार्क में पानी की कमी के चलते पेड़ पौधे सूख रहे हैं लेकिन इन सबके बावजूद नगर निगम के उद्यान अधिकारी इसकी सुध लेने को तैयार नहीं है, नगर निगम के आला अधिकारी भी महीनों से यहां झांकने तक नहीं आए हैं ,साफ सफाई कर्मचारी चौकीदार सब मिलाकर कुल 8 का अस्थाई कर्मचारियों का स्टाफ है , अपनी अस्थाई नौकरी चली जाने के डर से चकोर पार्क का स्टॉप मुंह पर पट्टी बांधे बैठने को मजबूर है क्योंकि मुंह खुला और नौकरी गई , जबकि चकोर पार्क के मेंटेनेंस के लिए लाखों रुपए प्रतिमाह कागजों में दिखाकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है, बदहाली की हकीकत इससे ही स्पष्ट होती है कि 20 बीघा के इस बड़े चकोर पार्क में एक भी माली नहीं है।


बहर हाल नगर निगम के अधिकारियों द्वारा सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए भी फोन उठाना बंद कर दिया है क्योंकि इन बदहाली और दुर्दशा के लिए उनके पास कोई जवाब नहीं है, पूरे उज्जैन में 20 से अधिक बड़े पार्क हैं जो इसी तरह से अपनी दुर्दशा को बयां कर रहे हैं, आगे के अंक में शहर के और भी उद्यानों की हो रही दुर्दशा से आपको रूबरू कराएंगे, लेकिन ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा लाखों रुपए का वेतन लेने के बाद भी अपने कर्तव्य के प्रति इतनी बेईमानी आखिर क्यों?, अब तो शहर में नगर निगम के जनप्रतिनिधि भी अपने-अपने वार्डों में विकास करने की शपथ ले चुके हैं, तो क्या नव निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी अपने-अपने वार्डों के उद्यानों की दुर्दशा का संज्ञान लेंगे?, जरूरत इस बात की है कि नगर निगम के आला अधिकारी और महापौर शहर के सभी उद्यानों की समय रहते सुध लें, और इन उद्यानों की साल संभाल के लिए आवश्यक कर्मचारी एवं संसाधन उपलब्ध कराएं ,एवम गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली के जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारियों पर आवश्यक कार्यवाही हो, अन्यथा जनता सब देख रही है और समझ भी नहीं है और इसका समय पर उत्तर देना भी जानती है।

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लोकतंत्र में तानाशाही, लोकतंत्र की गरिमा को कर रही है धूमिल https://nationallive.in/archives/2157 https://nationallive.in/archives/2157#respond Sat, 26 Jun 2021 11:00:31 +0000 http://nationallive.in/?p=2157   संपादकीय शासन एवम प्रशासन के नुमाइंदों की कार्यशैली ,लोकतंत्र को तानाशाही की ओर धकेल रही है, ओर इसका शिकार मीडिया को बनाया जा रहा है, लेकिन मीडिया की आवाज को बलपूर्वक दबाना या सरेबाजार उसका अपमान करने से उसके अस्तित्व को धूमिल करना संभव नहीं है, मीडिया आज स्पष्ट शब्दों में लोकतंत्र के सभी […]

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संपादकीय

शासन एवम प्रशासन के नुमाइंदों की कार्यशैली ,लोकतंत्र को तानाशाही की ओर धकेल रही है, ओर इसका शिकार मीडिया को बनाया जा रहा है, लेकिन मीडिया की आवाज को बलपूर्वक दबाना या सरेबाजार उसका अपमान करने से उसके अस्तित्व को धूमिल करना संभव नहीं है, मीडिया आज स्पष्ट शब्दों में लोकतंत्र के सभी तंत्रों को आगाह करता है कि सभी तंत्र संविधान के अनुसार मिले अधिकारों की सीमा रेखा को लांघकर दूसरे तंत्र को नीचा दिखाने का प्रयास न करे, क्योंकि यह प्रयास लोकतंत्र की गरिमा को धूमिल कर रहा है।
” मीडिया “लोकतंत्र का वह हिस्सा है जो लोकतंत्र को संचालित करता है ,प्रबंधन करता है और मार्गदर्शन भी, मीडिया लोकतंत्र का आईना है जो जनता के सामने लोकतंत्र के कार्यकलापों को प्रदर्शित करता है, वहीं जनता के प्रति लोकतंत्र के उत्तरदायित्व को भी दिखाता है, मीडिया के बिना लोकतंत्र का अस्तित्व संभव नहीं है।
लेकिन आजकल के परिदृश्य में कार्यपालिका और विधायिका यह दो तंत्र ऐसे हैं जो अपने निजी स्वार्थ और अहम के चलते तानाशाही की ओर लोकतंत्र को धकेल रहे हैं ,अगर हम कार्यपालिका की बात करें तो शासन और प्रशासनिक अधिकारी अपने पद में मदमस्त होकर अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए अपनी सीमा को लांघते जा रहे हैं,
बात अगर पुलिस प्रशासन की करें तो उज्जैन के एक आईपीएस अधिकारी ने अपने पद के घमंड में चूर होकर मीडिया के एक वरिष्ठ पत्रकार एवं एक प्रतिष्ठित अखबार के संपादक के साथ निचले स्तर का दुर्व्यवहार, इस बात को प्रदर्शित करता है कि अधिकारी अपनी सीमा लांघते हुए लोकतंत्र के महत्वपूर्ण तंत्र मीडिया को लज्जित एवं नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसा करके पुलिस अधिकारी अपनी शपथ को भी लज्जित कर रहे हैं, वहीं अपने विभाग की गरिमा को भी तार-तार कर रहे हैं।
यह वाकिया कोई नया नहीं है, आए दिन प्रशासनिक अधिकारी अपने पद के घमंड में चूर होकर , अपनी लचर कार्यप्रणाली को दबाने के लिए बलपूर्वक मीडिया का मुंह बंद करने का प्रयास अक्सर किया जाता है, लेकिन वह यह भूल रहे हैं कि मीडिया का बलपूर्वक मुंह बंद करना उसका सारे बाजार अपमान करना एवं मीडिया के अस्तित्व को धूमिल करने का प्रयास लोकतंत्र को लज्जित करने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं ,यह भी अटल सत्य है कि मीडिया के बगैर लोकतंत्र का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता।
अगर बात करें विधायिका की तो यहां भी तानाशाही का सुरूर सिर चढ़कर बोल रहा है ,जनप्रतिनिधि अपने आप को जनता का प्रतिनिधि कम बल्कि हिटलर बनने का प्रयास अधिक करते नजर आ रहे हैं ,जहां जनता की हितों की बात ना करते हुए निजी स्वार्थ को सिद्ध करने को प्राथमिकता दी जा रही है और इसी स्वार्थी कार्यप्रणाली को दबाने के लिए मीडिया का मुंह बलपूर्वक बंद करने का प्रयास किया जा रहा है, जनप्रतिनिधि जनता के हितों को नजरअंदाज करते हुए ,मनमाने अपने स्वार्थ सिद्धि के फैसले ले रहे हैं।

मीडिया लोकतंत्र का आईना है जिस पर अगर कोई कीचड़ उछालता है तो वह ऐसा करके अपने स्वयं को एवं अपने पूरे विभाग को उस कीचड़ से लथपथ कर रहा है।

मीडिया की कलम को भगवान श्री कृष्ण के उस सुदर्शन की भांति इस कलयुग में कहा गया है इस कलम में वह ताकत है जो बिना युद्ध लड़े शब्दों के बाण से अन्याय को परास्त कर ,न्याय और सत्य का परचम लहरा सकती है।
अंत में मैं इतना ही कहूंगा कि लोकतंत्र में समाहित सभी तंत्र अपनी हद और गरिमा का सम्मान करें एवं अपने पद और घमंड को संभालना सीखें ,क्योंकि घमंड ना बलशाली रावण का चला ना ही हिटलर का, अगर अनुशासन का पाठ किसी दूसरे को पढ़ाना है तो उसके लिए खुद का भी अनुशासित होना आवश्यक है।
मीडिया लोकतंत्र के हर तंत्र का सम्मान करता है लेकिन खुद के सम्मान पर कोई आंच आए ,यह भी बर्दाश्त नहीं , क्योंकि सम्मान से बढ़कर जीवन में कुछ नहीं होता और जिस दिन अपने सम्मान के रक्षा में “मीडिया” ने अपनी सीमा लाँघि , उस दिन लोकतंत्र अस्तित्व विहीन हो सकता है।

मनोज उपाध्याय
नेशनल लाइव

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शासन की साड़ी दिनोंदिन मैली, लेकिन प्राइवेट की साड़ी सफेद कैसे? https://nationallive.in/archives/2151 https://nationallive.in/archives/2151#respond Sun, 30 May 2021 12:23:42 +0000 http://nationallive.in/?p=2151 कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपने ही घर में दीमक बनकर उसे खोखला कर रहे हैं क्योंकि लोगों की जो मानसिकता है वह दिनोंदिन कुंठित होती जा रही है एवं वह दिन प्रतिदिन कालिदास की मानसिकता की ओर अग्रसर है और इस संदर्भ में वह अपना एवं अपने बच्चों के भविष्य को अंधकार की […]

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कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपने ही घर में दीमक बनकर उसे खोखला कर रहे हैं क्योंकि लोगों की जो मानसिकता है वह दिनोंदिन कुंठित होती जा रही है एवं वह दिन प्रतिदिन कालिदास की मानसिकता की ओर अग्रसर है और इस संदर्भ में वह अपना एवं अपने बच्चों के भविष्य को अंधकार की ओर धकेल रहा है, कैसे आइए हम जानते हैं ।

हर आदमी की  चाहत है कि उसे सरकारी नौकरी मिल जाए,एवं हर आदमी को अपनी लड़की के लिए सरकारी दामाद चाहिए, लेकिन जब किसी व्यक्ति कि सरकारी नौकरी लग जाती है तब वह अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारना शुरू कर देता है अर्थात
शिक्षा विभाग- शिक्षा विभाग की  बात करें तो शासकीय शिक्षक एवं प्राध्यापक बनने के लिए उच्च शिक्षित होना आवश्यक होता है एवं परीक्षाओं और विभिन्न ने इंटरव्यू के दौर से गुजरने के बाद एक व्यक्ति शासकीय शिक्षक या प्राध्यापक बनता है ,सरकार उसे मोटी तनखा देती है लेकिन बावजूद इसके सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है, हालात यह हैं कि मोटी तनख्वाह पाने वाला शिक्षक या प्राध्यापक खुद अपने बच्चों को भी सरकारी स्कूल एवं कॉलेजों में पढ़ाना पसंद नहीं करता है, वह अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों, जहां की बाहरी चकाचौंध से आकर्षित होकर वह अपने बच्चों का भविष्य को अंधकार की ओर धकेल देता है, आखिर क्या कारण है कि इतना शिक्षित व्यक्ति जिस पर सरकार भरोसा करती है कि वह बच्चों को शिक्षित कर उनके भविष्य को उज्जवल करेगा, लेकिन एक उच्च शिक्षित शिक्षक अपने ही सरकारी प्रतिष्ठान को बंद करने का प्रयास दिनोंदिन करता जा रहा है, लेकिन  उच्च शिक्षित शिक्षक की चाह यह रहती है कि उसके बच्चे को सरकारी नौकरी मिले, यह किस प्रकार की मानसिकता है?
स्वास्थ्य विभाग- स्वास्थ्य विभाग के भी वही हाल है , एक शासकीय डॉक्टर शासन से मोटी तनखा लेता है लेकिन प्राइवेट अस्पताल एवं प्राइवेट प्रैक्टिस पर उसका पूरा ध्यान केंद्रित होता है, पूरे संसाधन होने के बावजूद सरकारी अस्पताल से डॉक्टर ,मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में रेफर कर देते हैं, एक सरकारी डॉक्टर अपने परिवार का इलाज शत प्रतिशत प्राइवेट अस्पतालों में ही कराना पसंद करता है, वहीं एक आम आदमी भी पैसों के अभाव में ही सरकारी अस्पतालों में जाता है अन्यथा वह शत प्रतिशत प्राइवेट अस्पतालों में ही अपना उपचार कराना पसंद करता है अर्थात हम सब मिलकर अपने हाथों से सरकारी ढांचे को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन चाहत यह  रहती है कि खुद को और अपने बच्चों को सरकारी नौकरी मिले।
अमूमन हर सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है ,सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली इतनी पेंचीदा है कि जहां किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए महीनों एवं सालों लग जाते हैं, इसी के चलते आम आदमी की मानसिकता पर प्राइवेट सेक्टर गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं और एक आम आदमी प्राइवेट सेक्टर की ओर आकर्षित होता है , एवं सरकारी उपक्रम दिनोंदिन गर्त में समाते जा रहे हैं।
सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि भारत सरकार का उपक्रम भारत संचार निगम लिमिटेड अर्थात बीएसएन एल के हालात यह है कि वह बंद होने की कगार पर पहुंच चुका है जबकि बीएसएनएल के टावर का उपयोग करते हुए प्राइवेट कंपनियां प्रगति के नए आयाम को छू रही है, यही हाल हर दूसरे सरकारी उपक्रम की होती जा रही है।
और इस पूरे परिदृश्य में शासकीय निकायों को गर्त में जाने का श्रेय कहीं ना कहीं जनप्रतिनिधि एवं राजनेताओं को भी जाता है, क्योंकि अधिकांश जनप्रतिनिधि एवं राजनेताओं ने सरकारी उपक्रमों की प्रतिस्पर्धा में प्राइवेट संस्थानों या यूं कहें कि खुद की हिस्सेदारी के संस्थानों को स्थापित कर दिया है ,चाहे वह स्कूल ,कॉलेज, हॉस्पिटल एवं अन्य व्यापारिक क्षेत्र हों, हर जगह राजनेताओं के हस्तक्षेप विद्यमान है।
 वर्तमान परिदृश्य यह कहता है कि  जो लोग सरकारी विभागों में कार्यरत हैं, और जिस कार्य प्रणाली से वह कार्य कर रहे हैं उसे देखते हुए भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए सरकारी उपक्रम शायद जिंदा रहे ही ना।
इस विषय पर भारत के हर नागरिक ,विशेषकर सरकारी विभागों में कार्य करने वालों के लिए यह चिंतनीय विषय है।

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बहुत बड़ी बात कह गए, राहुल गांधी और कमलनाथ https://nationallive.in/archives/2143 https://nationallive.in/archives/2143#respond Sat, 22 May 2021 14:56:53 +0000 http://nationallive.in/?p=2143 ब्लैक फंगस महामारी को लेकर सरकार पर हमला करते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि “मोदी सिस्टम के कुशासन के चलते सिर्फ भारत में कोरोना के साथ-साथ ब्लैक फ़ंगस महामारी है, उन्होंने कहा कि इस नई महामारी की दवा की  बाजार बहुत कमी है।   दरअसल ब्लैक फंगस बीमारी […]

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ब्लैक फंगस महामारी को लेकर सरकार पर हमला करते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि “मोदी सिस्टम के कुशासन के चलते सिर्फ भारत में कोरोना के साथ-साथ ब्लैक फ़ंगस महामारी है, उन्होंने कहा कि इस नई महामारी की दवा की  बाजार बहुत कमी है।

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दरअसल ब्लैक फंगस बीमारी नई नहीं  है ,ब्लैक फंगस  या म्यूकोरमाइकोसिस का संक्रमण नया तो नहीं है, लेकिन फिर भी कोविड-19 (Covid-19) की वजह से इसे नया कहा जा रहा है,इसका पहला मामला 1885 में जर्मनी के पाल्टॉफ नाम के एक पैथोलॉजीस्ट ने देखा था. इसके बाद म्यूकोरमाइकोसिस नाम अमेरिकी पैथोलॉजीस्ट आरडी बेकर ने दिया था. 1943 में इससे संबंधित एक शोध छपा था 1955 में इस बीमारी से बचने वाला पहला शख्स हैरिस नाम का व्यक्ति बताया जाता है. तब से अब तक इसके निदान आदि में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।

लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जो आरोप लगाया है की ब्लैक फंगस सिर्फ और सिर्फ भारत में ही तेजी से क्यों फैल रहा है ,जानकारों की इस पर अलग-अलग राय है कुछ का मानना है कि ब्लैक फंगस, पानी की खराबी से होता है एवं कुछ का मानना है कि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर यह रोग हो सकता है लेकिन बहुतायत जानकारों का मानना है कि ब्लैक फंगस इन दिनों भारत में होने का कारण कोरोना संक्रमण के समय दी जाने वाली ऑक्सीजन के समय दूषित पानी की वजह से होता है ,वहीं कोरोना संक्रमण के इलाज मे दिए जाने वाले स्ट्राइड रेमदेसीविर इंजेक्शन के साइड  इफेक्ट को भी वजह माना जा रहा  है,

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब रेमदेसीविर इंजेक्शन जिससे कोरोना का इलाज नहीं होना बताया जा रहा है और जिसके इतने गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं तब भारत में यह इंजेक्शन किसकी इजाजत से लगाया जा रहा है ,क्या भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी इजाजत दी है? यह एक जांच का विषय है।

वहीं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उज्जैन में मध्य प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 127000 मौतें मध्य प्रदेश में हुई इनमें से 80% कॉविड से हुई,शमशान और कब्रिस्तान में पहुंची लाशों का रिकॉर्ड प्रदेश सरकार सार्वजनिक करें, इंटरनेट पर डाले,रिकॉर्ड सार्वजनिक होते ही जनता खुद तय करेगी कि कौन झूठ बोल रहा, मरनेे वाले  को पांच लाख दिए जाएं ,प्रमाण पत्र नहीं उनसे एफिडेविट लिए जाए, 

दरअसल कमलनाथ के इस आरोप के पीछे कहा जा रहा है कि जब कोई करोना पॉजिटिव होता है एवं हॉस्पिटल में उसका इलाज चलता है ,एवं कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने पर डिस्चार्ज किया जाता है लेकिन इलाज के दौरान मरीज की मृत्यु होने पर डिस्चार्ज के समय अधिकांश लोगों की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव बताई जा रही है ,जिसके कारण यह संदेह  जताया जा रहा है, जो कि एक जांच का विषय है।

बाहर हाल कांग्रेस के दिग्गजों द्वारा लगाए गए केंद्र सरकार एवं मध्य प्रदेश सरकार पर इन आरोपों की निष्पक्ष जांच होती है या नहीं?

 

 

 

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ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक उपचार कर सकेंगे ,जन स्वास्थ्य रक्षक https://nationallive.in/archives/2136 https://nationallive.in/archives/2136#respond Wed, 21 Apr 2021 16:37:15 +0000 http://nationallive.in/?p=2136 उज्जैन ,कोरोना का नया रूप स्ट्रेन बहोत तेजी से फैल रहा है, हालात यह है कि अब ग्रामीण क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है,वहीं उज्जैन जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में वेक्सीन लगाने की गति में अब तेजी आ रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक उपचार न मिलने की वजह से साधारण सर्दी जुखाम वायरल […]

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उज्जैन ,कोरोना का नया रूप स्ट्रेन बहोत तेजी से फैल रहा है, हालात यह है कि अब ग्रामीण क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है,वहीं उज्जैन जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में वेक्सीन लगाने की गति में अब तेजी आ रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक उपचार न मिलने की वजह से साधारण सर्दी जुखाम वायरल टाइफाइड मलेरिया उल्टी दस्त बुखार आदि से ग्रसित लोग भी शहर का रुख कर रहे हैं,जबकि उज्जैन शहर के शासकीय एवं प्राइवेट अस्पतालों में ना तो बेड उपलब्ध है और ऑक्सीजन एवं इंजेक्शन में अनियमितता के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक उपचार करने वाले जन स्वास्थ रक्षक न सिर्फ कोरोना संक्रमण से रोकथाम के लिए ग्रामीण लोगों को जागरूक कर सकते हैं बल्कि वह कोरोना से बचने के लिए लगाई जाने वाली वैक्सीन लगाने के लिए भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जागरूक करने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं ।

भाजपा अध्यक्ष ग्रामीण बहादुर सिंह बोरमुंडला ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना फैलने से रोकने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं एवं आपदा प्रबंधन की बैठक मैं भी ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण को रोकने के बारे में चर्चा की गई है उन्होंने बताया कि उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह से इस विषय में चर्चा हुई है कि ग्रामीण क्षेत्रों साधारण सर्दी जुखाम मलेरिया टाइफाइड उल्टी दस्त वायरल बुखार आदि में ग्रामीण लोगों को जन स्वास्थ्य रक्षकों द्वारा प्राथमिक उपचार मिलना आवश्यक है अन्यथा कोरोना के अलावा अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं में ग्रामीण शहरों की ओर आने पर बाध्य होगा एवं उज्जैन शहर में कोरोना संक्रमण बहुत तेजी से फैल रहा है ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले ग्रामीणों के भी कोरोना संक्रमित होने की आशंका बढ़ जाती है।
बहादुर सिंह बोर मुंडला ने बताया कि उज्जैन कलेक्टर ने इस संबंध में कहा है कि जल्द ही वह एसडीएम को निर्देशित करेंगे कि ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे जन स्वास्थ्य रक्षकों को प्राथमिक उपचार करने की छूट दी जाए।
उज्जैन प्रशासन के इस निर्णय से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को साधारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में प्राथमिक उपचार ग्रामीण क्षेत्रों में ही जन स्वास्थ्य रक्षकों की मदद से मिल जाएगा एवं गंभीर मरीज ही शहरी क्षेत्र में आ सकेंगे इस तरह ग्रामीण लोगों का शहरी क्षेत्र में ना आने पर कोरोना संक्रमण से भी काफी हद तक बचाव किया जा सकता है।

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