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]]>हर आदमी की चाहत है कि उसे सरकारी नौकरी मिल जाए,एवं हर आदमी को अपनी लड़की के लिए सरकारी दामाद चाहिए, लेकिन जब किसी व्यक्ति कि सरकारी नौकरी लग जाती है तब वह अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारना शुरू कर देता है अर्थात
शिक्षा विभाग- शिक्षा विभाग की बात करें तो शासकीय शिक्षक एवं प्राध्यापक बनने के लिए उच्च शिक्षित होना आवश्यक होता है एवं परीक्षाओं और विभिन्न ने इंटरव्यू के दौर से गुजरने के बाद एक व्यक्ति शासकीय शिक्षक या प्राध्यापक बनता है ,सरकार उसे मोटी तनखा देती है लेकिन बावजूद इसके सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है, हालात यह हैं कि मोटी तनख्वाह पाने वाला शिक्षक या प्राध्यापक खुद अपने बच्चों को भी सरकारी स्कूल एवं कॉलेजों में पढ़ाना पसंद नहीं करता है, वह अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों, जहां की बाहरी चकाचौंध से आकर्षित होकर वह अपने बच्चों का भविष्य को अंधकार की ओर धकेल देता है, आखिर क्या कारण है कि इतना शिक्षित व्यक्ति जिस पर सरकार भरोसा करती है कि वह बच्चों को शिक्षित कर उनके भविष्य को उज्जवल करेगा, लेकिन एक उच्च शिक्षित शिक्षक अपने ही सरकारी प्रतिष्ठान को बंद करने का प्रयास दिनोंदिन करता जा रहा है, लेकिन उच्च शिक्षित शिक्षक की चाह यह रहती है कि उसके बच्चे को सरकारी नौकरी मिले, यह किस प्रकार की मानसिकता है?
स्वास्थ्य विभाग- स्वास्थ्य विभाग के भी वही हाल है , एक शासकीय डॉक्टर शासन से मोटी तनखा लेता है लेकिन प्राइवेट अस्पताल एवं प्राइवेट प्रैक्टिस पर उसका पूरा ध्यान केंद्रित होता है, पूरे संसाधन होने के बावजूद सरकारी अस्पताल से डॉक्टर ,मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में रेफर कर देते हैं, एक सरकारी डॉक्टर अपने परिवार का इलाज शत प्रतिशत प्राइवेट अस्पतालों में ही कराना पसंद करता है, वहीं एक आम आदमी भी पैसों के अभाव में ही सरकारी अस्पतालों में जाता है अन्यथा वह शत प्रतिशत प्राइवेट अस्पतालों में ही अपना उपचार कराना पसंद करता है अर्थात हम सब मिलकर अपने हाथों से सरकारी ढांचे को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन चाहत यह रहती है कि खुद को और अपने बच्चों को सरकारी नौकरी मिले।
अमूमन हर सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है ,सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली इतनी पेंचीदा है कि जहां किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए महीनों एवं सालों लग जाते हैं, इसी के चलते आम आदमी की मानसिकता पर प्राइवेट सेक्टर गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं और एक आम आदमी प्राइवेट सेक्टर की ओर आकर्षित होता है , एवं सरकारी उपक्रम दिनोंदिन गर्त में समाते जा रहे हैं।
सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि भारत सरकार का उपक्रम भारत संचार निगम लिमिटेड अर्थात बीएसएन एल के हालात यह है कि वह बंद होने की कगार पर पहुंच चुका है जबकि बीएसएनएल के टावर का उपयोग करते हुए प्राइवेट कंपनियां प्रगति के नए आयाम को छू रही है, यही हाल हर दूसरे सरकारी उपक्रम की होती जा रही है।
और इस पूरे परिदृश्य में शासकीय निकायों को गर्त में जाने का श्रेय कहीं ना कहीं जनप्रतिनिधि एवं राजनेताओं को भी जाता है, क्योंकि अधिकांश जनप्रतिनिधि एवं राजनेताओं ने सरकारी उपक्रमों की प्रतिस्पर्धा में प्राइवेट संस्थानों या यूं कहें कि खुद की हिस्सेदारी के संस्थानों को स्थापित कर दिया है ,चाहे वह स्कूल ,कॉलेज, हॉस्पिटल एवं अन्य व्यापारिक क्षेत्र हों, हर जगह राजनेताओं के हस्तक्षेप विद्यमान है।
वर्तमान परिदृश्य यह कहता है कि जो लोग सरकारी विभागों में कार्यरत हैं, और जिस कार्य प्रणाली से वह कार्य कर रहे हैं उसे देखते हुए भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए सरकारी उपक्रम शायद जिंदा रहे ही ना।
इस विषय पर भारत के हर नागरिक ,विशेषकर सरकारी विभागों में कार्य करने वालों के लिए यह चिंतनीय विषय है।
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]]>The post बहुत बड़ी बात कह गए, राहुल गांधी और कमलनाथ appeared first on Nationalive....
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दरअसल ब्लैक फंगस बीमारी नई नहीं है ,ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस का संक्रमण नया तो नहीं है, लेकिन फिर भी कोविड-19 (Covid-19) की वजह से इसे नया कहा जा रहा है,इसका पहला मामला 1885 में जर्मनी के पाल्टॉफ नाम के एक पैथोलॉजीस्ट ने देखा था. इसके बाद म्यूकोरमाइकोसिस नाम अमेरिकी पैथोलॉजीस्ट आरडी बेकर ने दिया था. 1943 में इससे संबंधित एक शोध छपा था 1955 में इस बीमारी से बचने वाला पहला शख्स हैरिस नाम का व्यक्ति बताया जाता है. तब से अब तक इसके निदान आदि में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।
लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जो आरोप लगाया है की ब्लैक फंगस सिर्फ और सिर्फ भारत में ही तेजी से क्यों फैल रहा है ,जानकारों की इस पर अलग-अलग राय है कुछ का मानना है कि ब्लैक फंगस, पानी की खराबी से होता है एवं कुछ का मानना है कि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर यह रोग हो सकता है लेकिन बहुतायत जानकारों का मानना है कि ब्लैक फंगस इन दिनों भारत में होने का कारण कोरोना संक्रमण के समय दी जाने वाली ऑक्सीजन के समय दूषित पानी की वजह से होता है ,वहीं कोरोना संक्रमण के इलाज मे दिए जाने वाले स्ट्राइड रेमदेसीविर इंजेक्शन के साइड इफेक्ट को भी वजह माना जा रहा है,
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब रेमदेसीविर इंजेक्शन जिससे कोरोना का इलाज नहीं होना बताया जा रहा है और जिसके इतने गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं तब भारत में यह इंजेक्शन किसकी इजाजत से लगाया जा रहा है ,क्या भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी इजाजत दी है? यह एक जांच का विषय है।
वहीं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उज्जैन में मध्य प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 127000 मौतें मध्य प्रदेश में हुई इनमें से 80% कॉविड से हुई,शमशान और कब्रिस्तान में पहुंची लाशों का रिकॉर्ड प्रदेश सरकार सार्वजनिक करें, इंटरनेट पर डाले,रिकॉर्ड सार्वजनिक होते ही जनता खुद तय करेगी कि कौन झूठ बोल रहा, मरनेे वाले को पांच लाख दिए जाएं ,प्रमाण पत्र नहीं उनसे एफिडेविट लिए जाए,
दरअसल कमलनाथ के इस आरोप के पीछे कहा जा रहा है कि जब कोई करोना पॉजिटिव होता है एवं हॉस्पिटल में उसका इलाज चलता है ,एवं कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने पर डिस्चार्ज किया जाता है लेकिन इलाज के दौरान मरीज की मृत्यु होने पर डिस्चार्ज के समय अधिकांश लोगों की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव बताई जा रही है ,जिसके कारण यह संदेह जताया जा रहा है, जो कि एक जांच का विषय है।
बाहर हाल कांग्रेस के दिग्गजों द्वारा लगाए गए केंद्र सरकार एवं मध्य प्रदेश सरकार पर इन आरोपों की निष्पक्ष जांच होती है या नहीं?
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]]>The post परिवर्तित हो रही है जनता के मन में, जनप्रतिनिधि की परिभाषा… appeared first on Nationalive....
]]>जनप्रतिनिधि जिनका मूल उद्देश्य जनसेवा एवं लोक कल्याण होता है वह जनप्रतिनिधि आजकल के परिदृश्य में जनसेवा को दरकिनार कर निज स्वार्थ को प्राथमिकता देते हुए पांच सितारा होटलों में विलासिता के आगोश में बैठे हैं।
सवाल यह है कि क्या जनता ने लोकतंत्र का निर्माण सिर्फ इसलिए किया है कि जनप्रतिनिधि अपने स्वार्थ में अंधे होकर अपनी विचारधारा ,अपने उसूलों से समझौता कर जनता के उस विश्वास की हत्या करके विश्वासघात करें, जिसने उन्हें अपना जनप्रतिनिधि बनाकर लोकतंत्र के मंदिर में स्थान दिया, ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या जनता ने अपना बहुमूल्य वोट इस प्रकार के दोगले जनप्रतिनिधियों को देकर व्यर्थ किया है ?, जो जनप्रतिनिधि को अपने उसूलों एवं अपने विचार धाराओं को धता बता कर जनता की समस्याओं को दरकिनार करते हुए अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देते हुए जिन्होंने बेंगलुरू, जयपुर, जोधपुर, भोपाल एवं दिल्ली के बड़े-बड़े रिसॉर्ट एवं पांच सितारा होटलों को लोकतंत्र की हत्या के लिए चुने।
ऐसे में जनता के मन में सवाल यह भी है कि वह ऐसे दोगले जनप्रतिनिधियों को करोड़ों अरबों रुपए खर्च करके क्यों चुने ?,क्योंकि चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि जनता के जनादेश को ठुकरा कर, चुनाव से पहले जिस दल की विचारधारा उनको फूटी आंख सुहाती नहीं थी, चुनाव के बाद महज चंद सिक्कों में अपने उसूलों एवं जनता के विश्वास को बेचने में जरा सा भी परहेज नहीं करते, ऐसे में जनता के चुने हुए लोकतंत्र के क्या मायने रह जाते हैं?.
जनता के मन में जनप्रतिनिधि द्वारा अपने विश्वास की हत्या होते हुए देखकर कई सवाल एवं संदेह उत्पन्न हो रहे हैं, जो लोकतंत्र में स्थिर सरकार के लिए चिंतन का विषय बन सकते हैं ।
कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम एवं महत्वपूर्ण योगदान के बाद एक राजनीतिक दल अस्तित्व में आता है एवं वह जनता के विश्वास के पैमाने पर खरा उतरने के लिए चुनावी मैदान में वैचारिक एवं उसूलों के शस्त्र लेकर उतरता है और उन्हीं वैचारिक भिन्नता एवं उसूलों के आधार पर जनता का बहुमत हासिल होता है लेकिन चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि अपने मूल राजनीतिक दल को छोड़कर सत्ता पाने के लिए दूसरे विरोधी दलों में शामिल हो जाता है, तब राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के मन में भी उस जनप्रतिनिधि के प्रति अविश्वसनीयता घर कर जाती है और यहीं से उस राजनीतिक दल के पतन की शुरुआत हो जाती है, एवं बस यहीं से जनता के लोकतंत्र में विश्वास के हनन की शुरुआत भी होती है एवं यही कारण दीमक की भांति लोकतंत्र को दिन प्रतिदिन खोखला करते जा रहे है।
बाहर हाल जनता में चर्चा यही है कि जनप्रतिनिधि अगर इसी तरह स्वार्थी विचारधारा से प्रेरित होकर जनता के साथ धोखा करते रहेंगे, तो भविष्य में यह लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा, इसमें कोई आश्चर्य नहीं होनी चाहिए।
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]]>The post 34 साल बाद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, केंद्र सरकार की मंजूरी appeared first on Nationalive....
]]>इससे पहले 1 मई को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने NEP, 2020 की समीक्षा की थी,कोरोना वायरस महामारी के कारण नया शैक्षिक सत्र सितंबर-अक्टूबर में शुरू होगा। ऐसे में सरकार का लक्ष्य है कि नए सत्र के शुरू होने से पहले नई शिक्षा नीति को पेश कर दिया जाए। मसौदा नीति ने यह भी सुझाव दिया है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय के रूप में फिर से रजिस्टर्ड किया जाना चाहिए।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाले विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा इस मसौदे को तैयार किया गया था,नई शिक्षा नीति के मसौदे को लेकर कुछ गैर-हिंदी भाषी राज्यों की तरफ से हिंदी को थोपे जाने को लेकर चिंता जताई गई थी, इस बात को लेकर एचआरडी मंत्रालय ने उन्हें आश्वासन दिया।
मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि नई शिक्षा नीति में इस क्षेत्र से जुड़े कई मुद्दों को हल कर लिया गया है। उनका कहना था कि नई शिक्षा नीति के बाद युवाओं के लिए उच्चतर शिक्षा हासिल करना पहले की तुलना में आसान हो जाएगा।
नई शिक्षा नीति आने में सालों साल लग गए। रफेल सालों इंतज़ार के बाद आया है। तीन तलाक, 370, 35A खत्म होने में बरसों गुज़र गए। राम मंदिर बनने की शुरुआत होने में अंतहीन समय लग गया। ऐसे कितने ही काम है जो सालों से लटके थे पर अब हो रहे। फिर भी ‘वो’ पूछते हैं कि 6 साल में हुआ क्या है-सुशांत सिन्हा एग्जीक्यूटिव एडिटर इंडिया टीवी.(ट्वीट)
नई शिक्षा नीति प्रतिभा और रचनात्मकता को बढ़ावा देकर नए भारत के निर्माण का स्वप्न पूर्ण करेगी-रमेश मेंदोला ,विधायक इंदौर.(ट्वीट)
आज #NewEducationPolicy को #Cabinet की मंज़ूरी मिलने पर प्रधानमंत्री @narendramodi जी को धन्यवाद।
बेहतर और सही शिक्षा ही राष्ट्रनिर्माण की नींव है। भारत को विश्व पटल पर स्थापित करने में शिक्षा की अहम भूमिका है। निश्चित ही नई शिक्षा नीति नये भारत के निर्माण में सहायक होगी-रामविलास पासवान,उपभोक्ता मामलात मंत्री, भारत सरकार(ट्वीट).
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]]>The post एनकाउंटर स्थायी हल नहीं,सिस्टम का आत्ममंथन आवश्यक… appeared first on Nationalive....
]]>आवश्यकता इस बात की भी है कि न्यायिक व्यवस्था भी आत्ममंथन करें क्योंकि जब कोई अपराध करता है तब आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति यह जानता है की अपराध करने के बाद उसे सरेंडर करना है एवं अदालत उसे जेल भेज देगी एवं जेल में रहकर वह अपने अपराधों के सारे साक्ष खत्म कर देगा एवं अदालत में साक्ष की कमी के चलते वह मुक्त हो जाएगा, गैंगस्टर विकास दुबे ने 2001 में तत्कालीन राज्यमंत्री संतोष शुक्ल की शिवली थाने में घुसकर सरेआम हत्या कर दी थी, बावजूद इसके इस हत्याकांड में उसे कोई सजा नहीं हुई, 2006 में वह इस केस से बरी हो गया, पुलिसकर्मियों ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी थी, ऐसे में अपराधियों को अपराध करने के लिए बल मिलता है एवं इस दांव पेंच में राजनीतिक संरक्षण का भी बड़ा योगदान होता है इसलिए न्यायिक व्यवस्था को भी आत्ममंथन करने की आवश्यकता है अन्यथा अपराध पर लगाम लगाना संभव नहीं होगा।
पुलिस विभाग जिस पर जनता की सुरक्षा का भार होता है एवं जनता की सुरक्षा की शपथ लेकर वे इस कर्तव्य को निभाते हैं लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए चंद सिक्कों में अपना जमीर बेंचकर अपने ही महकमे के साथ विश्वासघात करके अपने ही सिपाहियों की जान के दुश्मन बन जाते है, ऐसे जयचंद पूरे पुलिस विभाग की छवि को न सिर्फ धूमिल करते हैं बल्कि जनता के पुलिस के प्रति विश्वास पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हैं ,अपराधियों का एनकाउंटर समस्या का हल नहीं हो सकता और यह हिटलर शाही का प्रदर्शन करता है जिसका लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं एवं नाही भारत का संविधान इसकी इजाजत देता है, अर्थात पुलिस विभाग को भी आत्ममंथन की आवश्यकता है।
बहर हाल वर्तमान परिदृश्य में राजनीतिक दलों को इस बात पर आत्ममंथन करना होगा कि अगर भविष्य में भारत के लोकतंत्र को जीवित रखना है तो ऐसे भस्मासुर रूपी बाहुबलियों को राजनीतिक संरक्षण से मुक्त करना होगा देश सेवा एवं जन सेवा के अभियान में अराजकता का कोई स्थान नहीं होता एवं अगर किसी राजनीतिक दल में कोई अराजक शामिल होता है तो वह भविष्य में उस पार्टी के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है, इस विषय में राजनीतिक दलों को संज्ञान लेना आवश्यक है, न्यायिक व्यवस्था में भी आवश्यक बदलाव करने की आवश्यकता है ताकि किसी को न्याय मिलने में देरी ना हो क्योंकि न्यायिक व्यवस्था में देरी होने पर अपराधी के अपराध के साक्ष्य को प्रभावित करने की संभावना बढ़ जाती है वहीं पुलिस महकमे को अपनी जिम्मेदारी समझने की आवश्यकता है पुलिस अगर अपने कर्तव्य पर अडिग एवं सख्त है ,तो कोई अपराध अपने पैर पसारने की हिमाकत नहीं कर सकता ।
विकास दुबे ने गुनाह किया है तो गुनाहगार पूरा सिस्टम है, क्योंकि इस सिस्टम में बदलाव नहीं किया गया तो हर दिन सेंकडों विकास दुबे जन्म लेंगें,ओर यह क्रम चलता रहेगा,क्योकि इस अराजकता को गढ़ने में लोकतंत्र का हर तंत्र (न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायका, मीडिया ) जिम्मेदार हैं ओर सभी को आत्ममंथन की आवश्यकता है।
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]]>The post तारणहार के साथ अन्याय … appeared first on Nationalive....
]]>आवश्यकता इस बात की भी है कि लॉक डाउन खत्म होने के बाद अब लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा किये जाने की,लेकिन कुछ लोगों ने इस महामारी के चलते आर्थिक संकट से ग्रसित लोगों की मजबूरी का फायदा उठाना शुरू कर दिया है, हालात यह हैं कि एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी ,दिहाड़ी मजदूर की दिहाड़ी मजदूरी से भी कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं, प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों को उनकी आर्थिक तंगी का फायदा उठाकर ब्लैकमेल किया जा रहा है ,कंपनी के मालिकों द्वारा कर्मचारियों को खुले रूप में यह कहा जा रहा है की कोरोना काल के चलते उनके व्यवसाय को घाटा हुआ है और ऐसे में वह कर्मचारियों को पूर्वा अनुसार वेतन देने में असमर्थ हैं ऐसे में कर्मचारियों को आधे वेतन पर काम करना पड़ेगा, जो कर्मचारी नहीं कर सकता है वह स्वेच्छा से अपनी नौकरी छोड़ कर जा सकता ,इस प्रकार कर्मचारी मजबूरी वश आधे वेतन पर काम करने को मजबूर हैं और नौकरी से निकाले जाने के डर ने उनके मुंह को भी बंद कर दिया है सवाल अपने परिवार का पेट पालने का है, इस प्रकार के हालात प्राइवेट सेक्टर हॉस्पिटल, स्कूल ,कॉलेज ,होटल ,रेस्टोरेंट, उद्योग, सभी तरह के मार्केटिंग जॉब, आदि में काम करने वाले कर्मचारियों के हो रहे हैं, मरता क्या न करता वाली स्थिति कर्मचारियों के साथ बनी हुई है लेकिन सरकार सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनी हुई ।
प्राइवेट सेक्टर के मालिकों का इस प्रकार का रवैया यह प्रदर्शित करता है कि वह स्वार्थी हो गए हैं और मौका परस्ती का प्रदर्शन कर अपने कर्मचारियों के साथ इंसाफ नहीं कर रहे हैं, इस बात से जान कर भी अंजान बने हुए हैं कि इन्हीं कर्मचारियों ने उनके व्यवसाय को दिन रात मेहनत करके उन्नति के शिखर पर पहुंचा कर करोड़ों का फायदा पहुंचाया और यही वे कर्मचारी भी होंगे जो उनके कोरोना काल के चलते हुए नुकसान की भरपाई करा कर पुनः उनके व्यवसाय को उन्नति के शिखर पर पहुंचाएंगे ,यह बात हर व्यवसाय के मालिक को समझने की आवश्यकता है क्योंकि एक कर्मचारी के पूरे परिवार की आस ,विपत्ति के समय व्यवसाय के मालिक पर टिकी होती है एवं उन्हें विश्वास होता है कि हर विपत्ति में मालिक उनके परिवार के साथ खड़ा हुआ और यही विश्वास उन्हें दिन रात मेहनत कर मालिक के व्यवसाय को चार चांद लगाने में सहायक होता है ।
बहरहाल,इसमें ध्यान देने वाली बात सरकार के लिए यह है कि प्राइवेट सेक्टर के मालिक आधे वेतन की मौखिक घोषणा कर रहे हैं, कर्मचारियों को किसी प्रकार का कोई आधा वेतन किए जाने का लेटर नहीं दिया जा रहा है एवं कंपनी में वह कर्मचारी पूर्वा अनुसार वेतन पर ही कार्य करता हुआ दिखाया जा रहा है, ऐसे में कंपनी अपने कर्मचारियों के साथ यह अन्याय या अपराध कर रही है ,और ऐसे में सरकार के श्रम विभाग को चाहिए कि वह छापामार कार्रवाई करते वह इन विभिन्न प्राइवेट सेक्टर की जांच करें एवं कर्मचारियों के साथ इस प्रकार का आपराधिक कृत्य करने वाले व्यवसाय के मालिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें ,क्योंकि सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन से कम पर कार्य करवाना कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है।
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]]>The post कोरोना काल में जीवन संजीवनी साबित हो रही है, आयुर्वेदिक औषधी… appeared first on Nationalive....
]]>केरल एवं गुजरात में लॉक डाउन के अंतराल में आयुर्वेदिक काढ़े के अच्छे परिणाम आने के चलते आयुष मंत्रालय ने अब इस आयुर्वेदिक काढ़े को पूरे देश में कोरोना संक्रमित मरीज को देना शुरू कर दिया है, मध्य प्रदेश के उज्जैन आयुष विभाग की प्रमुख डॉक्टर मनीषा पाठक ने बताया कि आयुर्वेदिक त्रिकटु काढ़ा (सौंठ, पीपली, काली मिर्च) का निशुल्क वितरण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है ,इसकी सेवन विधि -1 लीटर पानी में एक चम्मच त्रिकटु काढा डालकर आधा होने तक उबालें एवं प्रति व्यक्ति 100ml प्रतिदिन सुबह खाली पेट सेवन करें, 1 सप्ताह तक इसे ले सकते हैं ,इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है एवं साधारण सर्दी, जुखाम ,बुखार में आराम मिलता है ,इसके अलावा संशमनी वटी का भी वितरण किया जा रहा है ,जिसके लोगों के स्वास्थ्य पर अच्छे परिणाम दिख रहे हैं, वहीं आयुष विभाग होम्योपैथिक औषधि आर्सेनिक एल्बम 30, जिसका कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए उपयोग किया जा रहा है एवं बहुत अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।
धनवंतरी आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉक्टर ओ पी शर्मा ने नेशनल लाइव को बताया कि कोरोना संक्रमण के पॉजिटिव मरीजों को आयुर्वेदिक आरोग्य कशायम काढ़ा (सौंठ, काली मिर्च ,यष्टिमधु, गिडूची, भूमि आमल्कि, पीपली ,हरितकी )के मिश्रण से तैयार काढ़े को हल्दी एवं गुड़ के साथ सेवन कराया जा रहा है एवं इसके बहुत अच्छे परिणाम आ रहे हैं ,कई मरीजों की रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है एवं वे स्वस्थ होकर घर जा रहे हैं, सभी क्वॉरेंटाइन सेंटरों पर इसका वितरण किया जा रहा है, वहीं साधारण व्यक्ति त्रिकटु चूर्ण काढ़ा का सेवन कर सकता है ,जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कोरोना संक्रमण से बचाव किया जा सकता है।
आयुर्वेदिक कॉलेज अधीक्षक डॉक्टर जे पी चौरसिया ने नेशनल लाइव को बताया कि शासन ,प्रशासन के निर्देशानुसार त्रिकटु काढ़े का निशुल्क वितरण कंटेंटमेंट क्षेत्र में किया जा रहा है ,यह लगभग 1लाख से अधिक लोगों में इसका वितरण किया जा चुका है एवं आरोग्य कशायम काढ़ा लगभग 750 कोरोना संक्रमित मरीजों को अब तक दिया जा चुका है और इसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आए हैं, इसके अलावा होम्योपैथिक आर्सेनिक एल्बम 30 गोलियों का वितरण भी लगभग 3 लाख लोगों को किया जा चुका है ,उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं ग्रामीण क्षेत्र में आशा कार्यकर्ता एवं आयुर्वेदिक डॉक्टर एवं आयुष विभाग की टीम आयुर्वेदिक काढ़ा वितरण एवं स्वास्थ्य परीक्षण कर कोरोना वारियर्स के रूप में निरंतर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
धन्वंतरि आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के पूर्व अधीक्षक डॉक्टर यू एस निगम ने बताया कि भारत में आयुर्वेद का पुरातन काल से उपयोग किया जा रहा है एवं आयुर्वेदिक औषधियां बहुत सारे असाध्य रोगों में कारगर सिद्ध हो रही है ,च्वयनप्राश ,अश्वगंधा ,गिलोय, मुलेठी, त्रिकटु काढ़े का उपयोग ,रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने एवं सर्दी, जुखाम, बुखार आदि में किया जाता रहा है, इसके अलावा गर्म पानी पीना भी लाभदायक होता है, बाहर निकलते समय नाक में अणु तेल या तिल तेल की दो दो बूंद डालने से संक्रमण की संभावना कम हो जाती है।
यूं तो भारत में आयुर्वेद का इतिहास पुरातन काल से है एवं इसका उपयोग भारत में कई युगों से हो रहा है लेकिन कुछ सालों से योग गुरु बाबा रामदेव ने आयुर्वेदिक औषधियों की खूबियों की जानकारी देकर लोगो को इसके उपयोग करने के लिए प्रेरित किया है एवं भारत सहित दुनियां के कई देशों में आयुर्वेदिक औषधियों के उपयोग के बढ़ते प्रचलन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
आयुर्वेदिक औषधि के विक्रेता व धन्वंतरी आयुर्वेद भवन उज्जैन के संचालक रोमेश शर्मा ने जानकारी दी कि पूरे साल च्यवनप्राश,काढ़ा, आसवअरिष्ट का विक्रय होता है, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते लोगों का आयुर्वेदिक औषधियों के अच्छे परिणाम होने के चलते लोगों में इसके उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है एवं लोगों का आयुर्वेदिक औषधियों के प्रति विश्वास भी बढ़ रहा है।
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ एच के उपाध्याय ने बताया कि कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव की कोई कारगर दवा अभी विश्व के किसी भी देश के पास नहीं है, जिसके चलते विश्व के कई बड़े देशों में कोरोना संक्रमण ने मानव जीवन को गहरी क्षति पहुंचाई है लेकिन वहीं सवा सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले भारत में कोरोना संक्रमण, विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा कम क्षति पहुंचा पाया है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत ,आयुर्वेदिक औषधियों के उपयोग से कोरोना संक्रमण की रोकथाम करने में कामयाब हुआ है एवं आयुर्वेदिक औषधियां इसकी रोकथाम करने में काफी कारगर सिद्ध हुई है और अब विश्व उसका, अनुसरण कर रहा है।
बहरहाल इन सभी विशेषज्ञों का अनुभव यह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि भारत में आयुर्वेद की असीम संभावनाएं हैं एवं भारत का प्राकृतिक परिदृश्य आयुर्वेदिक औषधियों का भंडार है, और इसी के चलते भविष्य में भारतीय आयुर्वेदिक औषधियों की पूरे विश्व में असीम संभावनाएं हैं एवं भारत के आत्मनिर्भर होने की दिशा में भारतीय आयुर्वेदिक औषधियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
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]]>The post लोकतंत्र पर मंडरा रहा है “खतरा” appeared first on Nationalive....
]]>चिंतनीय विषय यह है कि भारत का लोकतंत्र राजनीतिक दलों के निज स्वार्थ की राजनीति के कारण ख़तरे में है या यूं कहें कि विलुप्तता की ओर अग्रसर हो रहा है कैसे आइए हम इसको समझते हैं।
लोकतंत्र में सरकार चुनने के लिए जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए अनेक राजनीतिक दलों में से अपने पसंदीदा जनप्रतिनिधि को चुनते हैं लेकिन जब उम्मीदवार विजयी होकर जनप्रतिनिधि बनता है ,तब वह धन ,एवम राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते जनता के विश्वास के साथ विश्वासघात करता है और ऐसे में वह अपने नैतिक मूल्यों एवं अपने उसूलों से भी समझौता करता है,कहने का तात्पर्य यह है कि जनता ने किसी पार्टी से वैचारिक समानता के चलते उस पार्टी के उम्मीदवार को अपना मत दिया एवं अपना जनप्रतिनिधि चुना, लेकिन चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि अपने से विपरीत विचारधारा वाले दल में अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते शामिल हो जाता है , ऐसा करके वह अपने स्वार्थ की सिद्धि कर लेता है ,लेकिन उसके समर्थकों पर इसका गहरा मानसिक प्रभाव पड़ता है और उनका अपने नेता ,जनप्रतिनिधि के प्रति विश्वसनीयता कम हो जाती है।
आजकल लोकतंत्र में ऐसा प्रतीत होता है जैसे जनप्रतिनिधियों का कोई धर्म ,ईमान या चुने हुए जनप्रतिनिधि का जनता के प्रति कर्तव्य के कोई मायने नहीं है उनके लिए धन ,ऐश्वर्य, जनता एवं पार्टी और अपने उसूलों से भी ऊपर कैसे हो जाता है ?,लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि चुने जाने की प्रक्रिया को चुनाव की संज्ञा दी जाती है और जनता के ही करोड़ों रुपए खर्च इस प्रक्रिया में किए जाते हैं ताकि एक मजबूत लोकतंत्र का निर्माण किया जा सके और देश का विकास हो , लेकिन चुनाव के कुछ समय बाद ही बड़े-बड़े फाइव स्टार होटलों एवं रिसोर्ट में चंद सिक्कों में ये चुने हुए जनप्रतिनिधि, लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार को बेच देते है, इसका सीधा सा तात्पर्य यह है कि नेताओं को लोकतंत्र में सरकार चुनने की प्रक्रिया को ताक पर रखने में कुछ मिनट भी नहीं लगते हैं और जनता मूकदर्शक बनकर रह जाती है ,जिससे लोकतंत्र का हनन होता है और इससे जनता का लोकतंत्र के प्रति विश्वास दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है।
जनता का मानना यह है कि किसी भी व्यक्ति को अगर किसी विपरीत विचारधारा वाले दल में शामिल होना ही है, तो उसका चुनाव से पूर्व दूसरे दल में शामिल होना नीतिगत माना जा सकता है ,लेकिन चुनाव के पूर्व जो नेता विपरीत विचारधारा वाले विरोधी दल को जनता के सामने उसकी अनीति को सरे बाजार उजागर करता है एवं अपने दल को जनता का हितेषी एवम सर्वोपरि साबित करता है ,और जनता उसपर विश्वास करती है और उसे अपना जनप्रतिनिधि चुनती है ,लेकिन चुनाव के बाद वही नेता सत्ता का सुख भोगने के लिए विरोधी दल से हाथ मिला लेता है, ये अनीति कहलाती है और जनता एवं उस नेता के समर्थक अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं एवम लोगों के मन में ठगा जाने की वजह से उस नेता एवं उस दल के प्रति अविश्वसनीयता घर कर जाती है ,बस यहीं से लोकतंत्र के हनन की शुरुआत होती है ,क्योंकि जनता का मताधिकार का प्रयोग महत्वहीन साबित होता है एवं जनता का किसी राजनीतिक दल को दिया बहुमत अर्थहीन साबित हो जाता है, जहां जनप्रतिनिधि कुछ ही सालों में अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि करके अनैतिकता से धन संपदा अर्जित कर लेता है, तो वहीं जिस जनता ने जिन मुद्दों को लेकर अपना जनप्रतिनिधि चुना है , जनता उन मुद्दों के साथ दशक दर दशक उसी अवस्था में जीने को मजबूर होती है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर भारत के लोकतंत्र में जनता के साथ यह धोखा कब तक चलता रहेगा और ऐसे में जनता के करोड़ों रुपए खर्च करके चुने हुए लोकतंत्र की क्या अहमियत रह जाती है।
यह भारत के राजनीतिक एवं लोकतांत्रिक भविष्य के लिए बहुत चिंताजनक(ख़तरा)एवं चिंतन का विषय भी है लोकतंत्र में व्यक्तिगत स्वार्थ का कोई स्थान नहीं होता, सच कहें तो राजनीति में कुछ व्यापारियों के शामिल होने से राजनीतिक दलों की यह दशा हुई है ,जब लोकतंत्र में राष्ट्रहित एवं जनहित ही सर्वोपरि होगा ,तभी उस देश का विकास संभव होगा।
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]]>पूरी दुनिया कोरोना से जंग लड़ रही है। भारत ने इस जंग में अब तक अहम भूमिका निभाई है ,लेकिन अब भारत वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन WHO में अहम भूमिका निभाएगा, डॉक्टर हर्षवर्धन ने जापान के डॉ हिरोकी नाकातानी की जगह ली।
WHO संयुक्त राष्ट्र की संस्था है, जो इंटरनेशनल पब्लिक हेल्थ की जिम्मेदारी निभाता है, मौजूदा वक्त में WHO कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में अहम भूमिका निभा रहा है ,WHO की स्थापना 1948 में हुई थी ,इसके 194 सदस्य देश हैं।
भारत तीन साल तक एक्जीक्यूटिव बोर्ड का सदस्य बना रहेगा, एक्जीक्यूटिव बोर्ड में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली 194 सदस्य देशों में से 34 देश चुनती है,ये सभी देश अपने अपने देश से एक व्यक्ति को चुनते हैं, जो हेल्थ के क्षेत्र में जानकारी रखते हैं,इस तरह से 34 सदस्य देश 34 प्रतिनिधि चुनते हैं,इन प्रतिनिधिओं में से एक को अध्यक्ष यानी चेयरमैन चुना जाता है,यह पद 1 साल के लिए होता है।
डॉ हर्षवर्धन जिस एक्जीक्यूटिव बोर्ड के अध्यक्ष बने हैं, वह काफी अहम है दरअसल, WHO वर्ल्ड हेल्थ असेंबली (WHA) और एग्जिक्युटिव बोर्ड से संचालित होता है,यानी WHA जो नीतियां बनाती हैं, उन्हें प्रभाव में लाने के लिए ये बोर्ड काम करता है, इसके अलावा स्वास्थ्य नीतियों में यह बोर्ड WHA को सलाह भी देता है, यह बोर्ड और WHA मिलकर एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार करते रहे, जहां दुनिया के स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा होती है और समस्याओं का समाधान खोजा जाता है।
दुनिया में कोरोना वायरस से हाहाकार मचा है,ऐसे में चीन को लेकर WHO की भूमिका पर सवाल उठ रहे है,ऐसे में डॉ हर्षवर्धन को यह पद मिलना काफी अहम माना जा रहा है, दरअसल, स्वास्थ्य के क्षेत्र में WHO संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञ एजेंसी है,इस संस्था पर पूरे विश्व की स्वास्थ्य की समस्याओं के समाधान की जिम्मेदारी है।
वीडियो DD न्यूज़ के सौजन्य से
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