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जीवन-मंत्र Archives - Nationalive... https://nationallive.in/archives/category/जीवन-मंत्र Wed, 27 May 2020 10:11:31 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 https://nationallive.in/wp-content/uploads/2023/03/Mice-Logo-2.png जीवन-मंत्र Archives - Nationalive... https://nationallive.in/archives/category/जीवन-मंत्र 32 32 जो डटेगा वही टिकेगा और वही बढ़ेगा.. https://nationallive.in/archives/1975 https://nationallive.in/archives/1975#respond Wed, 27 May 2020 10:08:29 +0000 http://nationallive.in/?p=1975 सूर्योदय के लिए सूर्य को अंधेरे से, हरियाली के लिए बसंत को पतझड़ से और गंगा स्वरूप होने के लिए एक नाले को कंकर – पत्थरों से टकराना अथवा लड़ना ही होता है। ठीक इसी प्रकार बेहतरीन व अच्छे दिनों के लिए मनुष्य को बुरे दिनों से अवश्य लड़ना पड़ता है अथवा तो बुरे दिनों […]

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सूर्योदय के लिए सूर्य को अंधेरे से, हरियाली के लिए बसंत को पतझड़ से और गंगा स्वरूप होने के लिए एक नाले को कंकर – पत्थरों से टकराना अथवा लड़ना ही होता है। ठीक इसी प्रकार बेहतरीन व अच्छे दिनों के लिए मनुष्य को बुरे दिनों से अवश्य लड़ना पड़ता है अथवा तो बुरे दिनों का सामना करना ही पड़ता है।

प्रभु श्री राम ने लंका को जीता मगर जीतने से पहले कितनी – कितनी विषमताओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
पाण्डवों ने महाभारत युद्ध जीता अवश्य मगर उसके मूल में भी अनगिन कठिनाइयां और विपत्तियां ही छुपी हुई हैं।

निसंदेह ये जीवन यात्रा ऐसी ही है। यहाँ किसी बीज को वृक्ष बनने के लिए एक लंबी अवधि तक सर्व प्रथम जमीन में मिट्टी के नीचे दबना होता है। समय आने पर वो बीज अंकुरित तो हो जाता है मगर उसके बाद भी कभी तीखी धूप तो कभी कड़ाके की सर्दी का सामना करते हुए न जाने क्या – क्या विषमताएं अपने ऊपर झेलनी पड़ती हैं।

धीरे-धीरे वो बढ़ने जरुर लगता है मगर यहां भी पग पग पर उसकी डगर आसान नहीं होती है। कभी आंधी, कभी तूफान, कभी ओलावृष्टि तो कभी अतिवृष्टि का सामना करते हुए वही बीज एक दिन विशाल वृक्ष का रूप ले चुका होता है। अब कभी अपने पत्तों द्वारा, कभी अपनी टहनियों द्वारा,कभी अपनी लकड़ियों द्वारा, कभी अपनी शीतल छाँव द्वारा तो कभी अपने मधुर फलों द्वारा  परोपकार और परमार्थ करके एक वंदनीय और सम्माननीय जीवन जी पाता है।

याद रखना दिन बुरे हो सकते हैं मगर जीवन नहीं। धैर्य, साहस, सावधानी और प्रसन्नता का कवच परिस्थितियों को भी आपका दास बना सकता है।

जो डटेगा वही टिकेगा और वही बढ़ेगा!

    🙏 मनोज की कलम से 🙏

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माता पिता, समाज,धर्मगुरु भी अपनी जिम्मेदारी तय करें.. https://nationallive.in/archives/1635 https://nationallive.in/archives/1635#respond Wed, 04 Dec 2019 04:34:03 +0000 http://nationallive.in/?p=1635 कोई कहता है कि कानून को इतना सख्त बनाएं कि कोई दरिंदा किसी बेटी के साथ घिनौनी वारदात  ना कर पाए ,उसेेे फांसी दी जाए  ,कुछ का कहना हैै कि फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाए जिसमें जल्द से जल्द अपराधी को उसकेेे किए की सजा मिल सके ,लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह […]

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कोई कहता है कि कानून को इतना सख्त बनाएं कि कोई दरिंदा किसी बेटी के साथ घिनौनी वारदात  ना कर पाए ,उसेेे फांसी दी जाए  ,कुछ का कहना हैै कि फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाए जिसमें जल्द से जल्द अपराधी को उसकेेे किए की सजा मिल सके ,लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह सब कदम लगभग हर रोज पूरे देश में , हर राज्य में बेटियों के साथ हो रही दरिंदगी  को रोक पाने के लिए काफी है?

कोई परिवार  यह जानने की कोशिश  नहीं करता  कि उनके बच्चे का  रहन सहन  चाल चलन  एवं  मानसिकता का स्तर  किस ओर जा रहा है कोई समाज  जिम्मेदारी  लेने को तैयार नहीं होता  की हमारी भारतीय संस्कृति  हमारे समाज से , परिवारों से  विलुप्त होती जा रही है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि  इस तरह  बेटियों के साथ घिनौने कृत्य  होने के बाद विरोध स्वरूप आक्रोश प्रगट करना  एवं मोमबत्ती  जलाकर  उस आत्मा की शांति के लिए  प्रार्थना करना, क्या समाज की जिम्मेदारी  बस यहीं  पर खत्म हो जाती है?, क्या ऐसा करने से वहशी दरिंदों की मानसिकताा में परिवर्तन हो पाएगा? शायद नहीं.

दिल्ली की निर्भया एवम हैदराबाद की डॉक्टर रेड्डी ,इनके साथ हुए घिनोने कृत्य, जो जनता के सामने उजागर हुए हैं, लेकिन छोटे छोटे गांवों में शहरों में इस तरह के घिनौने कृत्य होते हैं ,छोटी-छोटी बच्चियों को वहशी दरिंदे अपनी हवस का शिकार बना कर उनकी हत्या कर देते हैं लेकिन आम जनता तक यह जानकारी पहुंच नहीं पाती, लेकिन सवाल फिर वही है की क्या कुछ दरिंदों को उनके किये की सज़ा देने भर से बेटियों के साथ हो रही दरिंदगी रुक जाएगी?,क्योंकि मानसिक दरिंदगी को पैदा करने वाले संसाधनो के चलते व्यक्ति के मस्तिष्क में दरिंदगी रोज़ पनप रही है, मानसिक रोग विशेषज्ञों का यह माननाा है की इसे मानसिक रोग कहा जा सकता है  विशेषज्ञों का  मत है कि भारतीय संस्कृति में पिछले कुुुछ सालों में जबरदस्त बदलाव देखा गया है जिसके चलते सामूहिक परिवार जिसमें दादा- दादी ताऊ- ताई चाचाा -चाची भाई- बहन सब एक साथ संयुक्त निवास करते थे  जहां परिवार का हर एक सदस्य अनुशासन की डोर से  बंधा होता  था,संयुक्त्त परिवार लगभग खत्म होने से आजकल की युवा पीढ़ी के  रहन सहन एवं मानसिकता पर गहरा असर  देखा जा रहा है ,भााागदौड़ भरी जीवनशैली के चलते माता पिता, यह तक जाननेे की कोशिश नहीं करते  की  उनके बच्चों की दिनचर्या क्या है ,वहीँ मनोरंजन की आड़ में अश्लील वेबसाइट  एवं  मोबाइल एप्स पर  खुलेआम अश्लीलता परोसी जा रही है जिस पर सरकार का कोई अंकुश नहीं  है , और माता-पिता को इतनी फुर्सत नहीं  कि वे यह देखें कि कहीं  उनका बच्चा  इस तरह की अश्लील वेवसाइट तो नही देख रहे ,बच्चों की मानसिकता को वहशी बनाने में इनकी प्रमुख भूमिका होती हैं, सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की वेबसाइटो  के भारत मे प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाये।

केंद्र एवम राज्य सरकार ,महिला एवम बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दोनों की बराबर होती हैं,  अब वक्त की मांग है कि सरकार महिला सुरक्षा जागरूकता अभियान की शुरुवात करें एवं एक विशेष पुलिस बल हो जो सिर्फ महिला सुरक्षा पर ही सक्रिय हो, शराब की दुकानों के आसपास असामाजिक तत्वों की पहचान की जाय, एक देश भर में महिला सुरक्षा मोबाईल एप सरकार की ओर से लांच किया जाय, ये जनता के सुझाव है सरकार के लिए, वहीँ हर धर्म के धर्मगुरु  भी यह जिम्मेदारी तय करें कि जिस धर्म को समाज को वह मार्गदर्शित करते हैं उसमें बच्चों में संस्कार ,शिक्षा, एवम परवरिश का ज्ञान पलकों को दिया जाय,सामाजिक संगठन भी इसके लिए आगे आएं , हर समाज मे महिला एवम बेटियों की सुरक्षा के लिए एक संगठन हो जो इस विषय मे अपनी जिम्मेदारी तय करें,हर माता पिता की भी यह जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों की दिनचर्या ,रहन सहन पर विशेष ध्यान दें, उन्हें अनुशाषित परवरिश दें,क्योकि कुकृत्य से पीड़ित बेटियां भी किसी ना किसी माता पिता की होती है ,वहीं दुष्कर्म करने वाला दुष्कर्मी भी किसी माता पिता का बेटा होता हैं, अतः हर पहलू में जिम्मेदारी माता पिता की भी बनती हैं।

मानसिकता में स्वच्छता ,एवम अनुशात्मक संस्कार से भी कुछ हद तक बेटियों के साथ हो रहे घिनोने कृत्यों पर रोक लगाई जा सकती हैं ,वहीँ कानून में सख्ती  तो एक महत्वपूर्ण बिंदु  है ही।

 

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सच्चे मित्र बिना है ,जीवन रिक्त https://nationallive.in/archives/1433 https://nationallive.in/archives/1433#respond Thu, 22 Aug 2019 19:33:21 +0000 http://nationallive.in/?p=1433 भगवान श्री कृष्ण का अवतार एक ऐसा अवतार रहा  जिसमें  बाल लीला से लेकर  महाभारत तक  इस संसार को  मानव जीवन की सभी अवस्थाओं के अनुभवों से  अवगत कराया, बाल्यकाल से  ही दुष्टों का सम्हार करते हुए  उन्होंने यह संदेश दिया कि जीवन में कितनी ही विपदा  क्यों ना आए इंसान  सत्य  और धैर्य  के […]

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भगवान श्री कृष्ण का अवतार एक ऐसा अवतार रहा  जिसमें  बाल लीला से लेकर  महाभारत तक  इस संसार को  मानव जीवन की सभी अवस्थाओं के अनुभवों से  अवगत कराया, बाल्यकाल से  ही दुष्टों का सम्हार करते हुए  उन्होंने यह संदेश दिया कि जीवन में कितनी ही विपदा  क्यों ना आए इंसान  सत्य  और धैर्य  के साथ अडिग रहकर विपदा का मुकाबला करता है तब दुश्मन बलवान होने के बाद भी परास्त हो जाता है।

श्री कृष्ण का बाल्यकाल कई कठिनाइयों को प्रदर्शित करता है वहीं यह  सन्देश  भी देता है की कठिनाई आने पर इंसान को कभी विचलित नहीं होना चाहिए ।

भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के संदेश में  मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग का उल्लेख किया गया है और वह है  “मित्रता”, इंसान के जीवन में एक सच्चा मित्र का होना अति आवश्यक है ,वह कोई भी हो सकता है भाई ,बहन ,पत्नी ,संगी ,साथी ,मित्र के बगैर जीवन का अधूरा माना गया है भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला मैं मित्रता को निभाने की पराकाष्ठा का प्रदर्शन किया है ,मित्र वही जो दुख सुख ,हानि लाभ, जस अपजस, मैं अपने मित्र का परछाई बनकर साथ दे और जिसके जीवन में एक ऐसा सच्चा मित्र हो उसका जीवन धन्य हो जाता है ।

भगवान श्री कृष्ण ने अपनी शिक्षा ऋषि सांदीपनि के उज्जैन स्थित आश्रम में ग्रहण की, जहां उनके सहपाठी थे “सुदामा”,   सुदामा  श्री कृष्ण के  परम मित्र कहलाए, श्री कृष्ण के साथ  जब सुदामा  लकड़ी लेने  जंगल  की ओर  रवाना हुए  तब  गुरु माता  ने  कुछ मुट्ठी चने पोटली में बांधकर सुदामा को दिये  और कहा कि   भूख लगे तो दोनों मिलकर खा लेना ,लकड़ी का गट्ठर लिए कृष्ण और सुदामा जंगल से गुजर रहे थे कि अचानक वर्षा प्रारंभ हो गई और वह एक  स्थान पर रुक कर वर्षा के रुकने का इंतजार करने लगे ,बारिश के दौरान भूख लगने के चलते पूरे चने अकेले सुदामा के ही खा जाने पर  भगवान श्री कृष्ण ने उपदेश दिया कि हे सुदामा मित्रता का मूल सिद्धांत है ,एक दूसरे के प्रति दृढ़ विश्वास, ईमानदारी ,एवम प्रेम होना आवश्यक है, मित्रता वही जो मित्र के बिना कहे उसके मन की बात जान ले।

जिस स्थान पर वह रुके थे उज्जैन के समीप उस स्थान को नारायणा ग्राम के नाम से जाना जाता है यहां  आज भी  वह लकड़ी के गट्ठर  विद्यमान है  एवं  दुनिया में  एकमात्र मित्रता के प्रतिक के रूप में  कृष्ण एवं सुदामा का मंदिर  है, ऐसा माना जाता है कि जो भी  व्यक्ति  यहां मित्रता की मूरत  के  दर्शन करता है  उसे जीवन में  सच्चा मित्र  जरूर मिलता है ,एवम मित्रता निभाने की प्रेरणा मिलती है ,श्री कृष्ण ने संदेश दिया  की मित्रता  करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है मित्रता निभाना,श्री कृष्ण सुदामा मिलन इसका जिवंत प्रसंग है ,

सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

मित्रता  में धनवान, निर्धन,लोभ, मोह ,ईर्ष्या, कपट ,अहंकार का कोई स्थान नहीं है,मित्रता तो प्रेम ,त्याग, तपस्या, एवम अटूट विश्वास का प्रतीक है।

भगवान श्री कृष्ण ने अपने भाई एवम सखा अर्जुन का महाभारत में अंतिम क्षण तक विपत्ति में साथ दिया ,वहीं सखी द्रोपदी की लाज के रक्षक बने।

भगवान श्री कृष्ण ने अपने उपदेश में कहा है कि  जीवन मे विपदा ही सच्चे मित्र से परिचय कराती हैं।

मित्रता का प्रतीक स्थल नारायणा ,उज्जैन से 30 किलोमीटर महिदपुर जाने के रास्ते मे स्थित है ।

जीवन मे मित्र के महत्व को जानने के लिए ,हमे इस पवित्र स्थान के दर्शन का लाभ लेना चाहिए।

श्री कृष्ण जन्मोत्सव की शुभकामनाएं

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