भ्रष्टाचार ,अधिकार ,महंगाई ,कानून इन सब के चलते जनता के सरकार से मतभेद हो सकते हैं, मांगे हो सकती है ,और सरकार तक अपनी बात पहुचाने के, हड़ताल ,अनशन एवं न्यायालय जैसे कई तरीके हो सकते हैं ।
ऐसा ही एक उदाहरण ,भ्रष्टाचार पर रोक लगे इसके लिए लोकपाल बिल लाने की मांग को लेकर अन्ना हजारे द्वारा अनशन किया था, जिसे की व्यापक जन समर्थन भी मिला और इसी आंदोलन की गोद में राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते,” आप पार्टी का जन्म हुआ, पार्टी के प्रमुख वर्तमान में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह कह कर पार्टी बनाई थी की हम सत्ता में आएंगे तो लोकपाल बिल लाकर रहेंगे ,लेकिन सत्ता पाने के बाद अन्ना हजारे को उनकी माँग लोकपाल बिल समेत दरकिनार कर दिया गया।
आरक्षण एवं एट्रोसिटी एक्ट पूरे देश में लागू है, लेकिन इसके विरोध को लेकर एक राजनैतिक पार्टी ,सपाक्स का उदय मध्यप्रदेश में हुआ है , इस मुद्दे पर संगठन करणी सेना गांधीवादी की भूमिका में दिख रही है, जिनका की सरकार से विरोध इन दोनों मुद्दों पर है एवं अपनी मांग पूरी होने तक आंदोलन करने की बात हो रही है ,जिन्होंने साफ कर दिया है कि वे ना तो राजनैतिक पार्टी बनाएंगे ना चुनाव लड़ेंगे, वही सपाक्स पार्टी ने मध्यप्रदेश में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने का ऐलान कर दिया, ऐसे में चर्चा इस बात की भी है की सपाक्स पार्टी जोकि आरक्षण और एट्रोसिटी एक्ट की मांग को लेकर सत्ता में आना चाहती है ,कहीं आप पार्टी पार्ट 2 साबित ना हो जाए ,इस पर करणी सेना वेट एंड वॉच कि रणनीति पर काम कर रही है ।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि किसी भी मुद्दे या मांग को मनवाने के लिए क्या राजनीतिक पार्टी बनाना ही एकमात्र हल है ,और क्या किसी मांग को ढाल बनाकर किसी संगठन पर राजनैतिक रंग चढ़ जाने के बाद उसके रंग ना बदलने की कोई गारंटी है।
बाहर हाल सपाक्स पर राजनीतिक रंग चढ़ चुका है, आने वाले विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की जनता उनका कितना सपोर्ट करती है, और करणी सेना के सपोर्ट पर कितना खरा उतरती है, और बीजेपी एवं कांग्रेस को इससे कितना लाभ या हानि होती है, इसका जवाब 2018 के चुनाव परिणाम ही बता पाएंगे।
