भारत के सही मायने में लाल एवं बहादुर ,भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे, एक विशाल एवं सिद्धांत वादी व्यक्तित्व के धनी , जिनकी सच्चाई और ईमानदारी की कई गाथाएं इतिहास में विद्यमान है ,साथ ही उनके कार्यकाल में भारतीय सेना की विजय गाथा भी स्वर्णिम अक्षरों में सुशोभित है,” जय जवान जय किसान”,जैसे उपदेशों से उनकी विचारधारा से स्पष्ट परिचय होता है, जिस देश का जवान सशक्त हो ,तो समझा जाता है देश की जनता सुरक्षित है ,वहीं जिस देश का किसान आर्थिक रूप से सुदृढ़ एवम उन्नत हो उस देश का विकास सुनिश्चित होता है।
बहरहाल ये तो थी शास्त्री की विचाधारा एवम कार्यकाल की बात ,लेकिन वर्तमान में किसान की बात कहे, तो किसान दिनों दिन कर्ज़ तले दबता जा रहा है,शास्त्री जी के लाड़ले किसान उनके जन्म शताब्दी पर दिल्ली की सड़कों पर दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर होता दिखा, किसानों को अपनी फसल का वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा ,आजादी के कई दशक के बावजुद आज भारत का किसान बदहाल एवम लाचार है, बावजूद इसके भारत की तमाम राजनैतिक पार्टियां किसान को उन्नत बनाने की बजाय सत्ता पाने के लिए जनता को धर्म और जाति के आधार पर बांटने में लगी है ।
वहीं अगर भारत की सीमाओं के रक्षक जिनके हाथों में भारत की जनता खुद को सुरक्षित महसूस करती है, खुद सरकारों के हाथों की कठपुतली बन कर रह गए हैं, न पर्याप्त वेतन है, ना ही सुविधाएं, शहीद सैनिकों के परिवार बदहाली का जनजीवन जीने को मजबूर हैं,ओर सैनिकों की मजबूरी यह है कि वे अपने हक के लिए विरोध प्रदर्शन भी नही कर सकते,ऐसे में भारत का रक्षक आर्थिक रूप से सुदृढ़ ,एवम उनके परिवार की सुरक्षा सरकार की नीतियों में प्रमुख प्राथमिकता होना चाहिये।
वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए ऐसा महसूस होता है कि भारत के सच्चे सपूत लाल बहादुर का जय जवान जय किसान का सपना अभी अधूरा है, न जवान की जय है ना किसान की जय है लेकिन सही मायनों में लाल बहादुर शास्त्री को सच्ची श्रद्धांजलि तभी अर्पित होगी और भारत विकास की ऊंचाइयों को छूूयेेगा ,जब भारत का किसान उन्नत एवं भारत का जवान सशक्त होगा।
