अहिंसा के पुजारी एवं सिद्धांतों के धनी महात्मा गांधी को आज उनकी 150वीं जन्म शताब्दी पर याद किया गया, किंतु आधुनिकता की दौड़ एवं स्वार्थ सिद्धि के चलते , हम देख रहे हैं कि गांधीवाद विलुप्त हो रहा है, गांधीवाद का प्रथम संदेश “स्वदेशी को अपनाना ” ,जिससे देश के हर नागरिक को रोजगार मिले और देश आर्थिक आधार मजबूत हो ,लेकिन हो रहा बिल्कुल विपरीत ,हमारे देश के युवाओं का सहारा लेकर कई देश विकास की ऊंचाइयों को छू रहे हैं ,वहीं विदेशी चीजों को अपनाकर हम गुलामी की ओर अग्रसर है ।
गांधीवाद का दूसरा संदेश” नशा मुक्त राष्ट्र का निर्माण” शराब, तंबाकू एवं तंबाकू से बनी वस्तुओं के निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध ,करोड़ों अरबों के राजस्व आय के चलते नशा मुक्त राष्ट्र के निर्माण की कल्पना धूमिल होती दिखाई पड़ रही है।
“सर्व धर्म समभाव “,धर्म और जाति के आधार पर जनता को बांटने वाली नीतियां आजकल हर राजनैतिक पार्टियों की सूची में प्रथम स्थान रखती है ।
“सादा जीवन उच्च विचार “,आधुनिकता की दौड़ में पश्चिमी सभ्यता इस कदर हावी हो चुकी है कि जिसमें सादा जीवन की कल्पना करना मुश्किल हो रहा है ,आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया ,नतीजतन जीवन का असंतुलन ,और उच्च विचार की बात करना भी व्यर्थ है, 2 साल ,5 साल की मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार ,मनुष्य की विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है ,सत्ता पाने की होड़ राजनैतिक पार्टियां अपने मूल सिद्धांतों और विचारधाराओं से समझौता कर रही है।
“गौ हत्या पर प्रतिबंध” एक चिंता का विषय बन चुका है ।”विदेशी भाषा का विरोध”, हिंदुस्तान की पुरातन भाषा संस्कृत विलुप्तता की कगार पर है, वहीं आजादी के 70 साल बाद भी हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है ,विदेशी भाषा की जड़ें दिनोंदिन मजबूत होती जा रही है।
“सत्यता ” एक ऐसा शब्द है जो की किताबों में उपदेशों के रूप में सुशोभित है।
गांधीवाद में “अहिंसा” प्रमुख स्थान रखती है, किंतु हिंसा का सहारा लेकर अपने स्वार्थ को सिद्ध करना आजकल जनसामान्य की नियति बन चुका है, अहिंसा वादी विचारधाराओं के कंधे पर पैर रखकर लोग सत्ता का सुख भोग रहे ।
जिस गांधी ने मुद्रा या धन से मोह त्याग कर, सत्य और अहिंसा को अपनाया ,उस गांधी को ना सिर्फ उस मुद्रा पर स्थान मिला बल्कि राष्ट्रपिता एवं महात्मा भी बनाया ,सीधे शब्दों में यही गांधीवाद का सार है ,जिसे आजकल की युवा पीढ़ी को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
