आस्था पर आघात

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ऐसा प्रतीत होता है कि, हिंदुस्तान में हिंदू संस्कृति और धर्म पर प्रतिबंध लगा कर, कुचलने एवं उसे गहरा आघात पहुंचाने की कोशिश की जा रही है, प्रथम पूज्य गजानन को बड़े आदर सत्कार और धूमधाम से स्थापित कर गणेश उत्सव मनाया जाता है लेकिन जब गणेश विसर्जन की बारी आती है,तो जल प्रदूषण का हवाला देकर पार्थिव गजानन के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया जाता है, जिसे देख कर लगता है कि मानो त्यौहार को मना कर गलती की।

इसके बाद आता है नवरात्रि का त्योहार उस समय भी कुछ इस प्रकार का दृश्य ही देखने को मिलता है ,होली खेलने पर भी जल प्रदूषण होने का हवाला दिया जाता है ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदू संस्कृति को जमींदोज करने की कोशिश हो रही है ।

ऐसे में जल प्रदूषण की दुहाई देने वालों से जनता का सवाल है कि हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी उज्जैन की मोक्ष दायिनी शिप्रा में आज भी न सिर्फ खान (कान्ह) नदी का प्रदूषित पानी ,बल्कि कई गंदे नाले शिप्रा में मिलकर शिप्रा को प्रदूषित कर रहे हैं हालात यह है कि शिप्रा का जल आचमन योग्य भी नहीं है, भरे सिंहस्थ में शिप्रा नदी में गंदे नाले ने उफनकर  शासन प्रशासन की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाया था, वहीं हर वर्ष ऐसा प्रतीत होता है मानो शिप्रा नदी एवं तालाबों  में जलकुंभी की खेती होती है जोकि बाढ़ में बहकर लाखों का लाभ दे जाती है ,जल प्रदूषण पर शासन-प्रशासन की पोल उस समय खुल गई जब दो बार स्वच्छता में नंबर वन रहे इंदौर को थोड़ी सी बारिश मैं गंदे नाले उफनने के चलते सबसे गंदा शहर बना दिया ,और यह किस्सा सिर्फ मध्य प्रदेश तक सीमित नहीं है बल्कि भारत में कई नदियां प्रदूषण की हद को पार कर चुकी है, जिसमें प्रमुख गंगा नदी ,जिसकी सफाई  में हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी गंगा आज भी मैली है, तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हिंदू त्योहारों से ही जल प्रदूषण होता है ?और नहीं, तो आखिर क्यों हिंदू धर्म और आस्था पर आघात किया जाता है अगर मिट्टी के गणेश विसर्जन से जल प्रदूषण होता है तो गंदे नाले एवं उद्योगों के प्रदुषित जल के नदियों में मिलने पर शासन-प्रशासन आंखें क्यों मूंद लेते हैं ।

गणपति विसर्जन की इन तस्वीरों को देख कर हर शख्स दुख और आक्रोश से भर जाता है और वह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि हिंदू देवी देवताओं की स्तुति क्या हम उनका अपमान करने के लिए करते हैं, यह चिंतनीय विषय है, ऐसे में शासन-प्रशासन को अपनी कार्यप्रणाली दुरुस्त करने की आवश्यकता है ताकि किसी के धर्म और आस्था पर आघात ना हो एवम् जरूरत इस बात की भी है पूरे साल नदियों को प्रदूषित करने वाले स्रोतों की रोकथाम करने के उपाय खोजकर उनका निदान किया जाय।


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