भविष्य वक्ताओं ने लिखा है कि कलयुग में भारत विश्व गुरु बनेगा ,जिसकी सत्यता पर किंचित भी संदेह नहीं है ,लेकिन भारत के विश्व गुरु बनने की आकांक्षा को हम ब्राह्मण की उपेक्षा कर साकार नहीं कर सकते, इतिहास गवाह है कि जब जब ब्राम्हणों की उपेक्षा हुई है, इसका परिणाम बताने की आवश्यकता नहीं है ,ब्राह्मण को गरीब सुदामा बनकर जीवन यापन करना मंजूर है लेकिन उसके स्वाभिमान के साथ कोई समझौता मंजूर नहीं ।
वोटों की राजनीति के चलते आरक्षण रूपी कुरीति का उदय हुआ ,जिसके कारण गरीब ब्राह्मणों के साथ अन्याय एवं उनके बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेलने की पुरजोर कोशिश की गई, ब्राह्मणों के मंदिरों पर सरकार द्वारा कब्जे किये गये और उनके भरण पोषण के लिए मिली जमीन को सरकार द्वारा नीलाम कि जाकर कुछ हिस्सा ब्राह्मणों को दिया जाने लगा ,जिसके चलते ब्रह्मण अपने परिवार को पालने की स्थिति में भी ना रहा, दशकों से आरक्षण का दंश झेलने के बाद भी, ब्राम्हण ने आरक्षण की मांग नहीं की बल्कि आज भी सरकार को ब्राह्मणों का यही संदेश है कि आरक्षण जाति के आधार पर ना होकर आर्थिक आधार पर होना चाहिए।
वोटों की राजनीति के लिए कानून को कुरूप बनाकर ब्राह्मणों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश की जा रही है,जबकी एक देेेश एक कानून की नीति होना चाहिए।
अभी तक यह भ्रांतियां फैली थी कि ब्राम्हण कभी एक नहीं हो सकते लेकिन उज्जैन में हुए ब्राह्मण महाकुंभ मैं लाखों ब्राह्मणों की गर्जना ,भोपाल से दिल्ली तक सुनाई दी जिसके चलते ना सिर्फ सरकार के मुख मंडल पर चिंता की लकीरें अंकित हो गई बल्कि ब्राह्मणों के अधिकारों के हनन के विषय में चिंतन करने को भी मजबूर कर दिया,इस ब्राम्हण महाकुंभ ने समस्त राजनीतिक पार्टियां को स्पष्ट संकेत दिए की अब फुुुट डालो और राज करो की नीति नहीं चलेगी ,सभी राजनीतिक दल गरीब सुदामा की आर्थिक स्थिति को समझें और समाज के हर वर्ग को जाति के तराजू में ना तोल कर सबके लिए समानता का अधिकार की नीति पर चलें।
ब्राह्मण के भगवान श्री परशुराम स्वरूप को हिंदुस्तान कि किसी भी राजनैतिक पार्टी या सरकार मैं सहन करने की क्षमता नहीं है ,भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए हिंदुस्तान के समस्त राजनैतिक पार्टियों को ब्रह्मण के अधिकारों की उपेक्षा के रास्ते पर पूर्ण विराम लगाना होगा।
