एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन एवं आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांगों को लेकर करणी सेना की अगुवाई में सपाक्स सहित सभी अनारक्षित समाज के लोगों ने एक ऐतिहासिक रैली और सभा का आयोजन उज्जैन में किया गया ,जिसमें करीब 2 से 3 लाख लोग सम्मिलित हुए ,रैली करीब 5 किलोमीटर लंबी थी और रोड खचाखच भरी थी, इसकी एक विशेषता थी की इतनी कड़ी धूप में राजपूतों के साथ राजपूतानियों ने भी कंधे से कंधा मिलाकर इस रैली में हिस्सा लिया ,बिना किसी हिंसक घटना के शांतिपूर्वक इस महारैली मैं सरकार एवं आरक्षण ,एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ नारे लगे ,जिसकी गूंज भोपाल और दिल्ली तक सुनाई दी, करणी सेना का कहना है कि अगर हमारी मांगों पर तवज्जो ना दी गई तो वह आने वाले समय में इससे भी बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा, एवं वह आने वाले विधानसभा चुनाव में ना तो कोई पार्टी बनाएंगे और ना चुनाव लड़ेंगे लेकिन हमारा सपोर्ट उस प्रत्याशी को होगा जो हमारे इस मिशन में हमारा साथ देगा ।
साथ ही करणी सेना ने कांग्रेस को भी खूब खरी खोटी सुनाई उन्होंने कहा कि 2002 में तत्कालिक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा प्रमोशन में आरक्षण को लागू करवाया गया जिसका परिणाम 2003 में मध्य प्रदेश की जनता ने उनको बाहर का रास्ता दिखाया, उन्होंने यह भी कहा कि हमारे अब तक चुप रहने को हमारी कमजोरी ना समझा जाए , राजपूत अपने आन बान और शान और अपने हक की लड़ाई के लिए तलवार उठाना भी जानता है लेकिन अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
लेकिन इस तारतम्य में कांग्रेस की ओर से किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की गई और नो कमेंट्स की स्थिति में उन्होंने चुपचाप इस नजारे को देखा, ज्ञात रहे की सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद पूरे विपक्ष एवं NDA के कुछ घटक दलों ने एकजुट होकर मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाने के लिए मजबूर किया ,वही सड़कों पर भी खूब हिंसक प्रदर्शन देखा गया।
बाहरहाल करणी सेना का कहना है कि इन मुद्दों के चलते आने वाले चुनाव में कांग्रेस को समर्थन नहीं देंगे लेकिन BJP का भी समर्थन नहीं करेंगे और नोटा का बटन भी नहीं दबाएंगे ऐसे में सवाल यह था कि फिर आगे की रणनीति क्या?, तो जवाब था की वेट एंड वॉच की नीति है अभी ,आगे कि रणनीति सरकार द्वारा इन मुद्दों पर उठाए कदम के अनुसार होगी।
इन दोनों मुद्दों पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इन दिनों चुप्पी साध रखी है, अब देखना यह है कि अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फसी मोदी सरकार, कदम पीछे लेती है तो अपने ही घटक दलों एवं आरक्षित वर्ग को नाराज करती है एवं ऐतिहासिक कदम आगे बढ़ाना भी इतना आसान नहीं दिखता।
लेकिन एक बात तो तय है कि इस महारैली को करके करणी सेना ने सरकार की आंखों में उजाला ड्रॉप जरूर डाल दिया है, जिसके चलते सरकार को 2018 और 19 का चुनाव स्पष्ट दिख रहा है।
