अगर हम 2005 से 2018 के बीच की बात करें , विशेषतः पेट्रोल और डीजल की तो, कांग्रेस और BJP दोनों के शासनकाल मैं दाम 80रु से कम भी हुए और ज्यादा भी रहे ,और महंगाई का रेश्यो भी लगभग बराबर सा रहा , लेकिन लगातार दामों में बढ़ोतरी चिंता का विषय है ,और इसी के चलते 10 सितंबर के कांग्रेस का भारत बंद का आवाहन अपने विपक्ष में होने का कर्तव्य निभाता दिख रहा है, लेकिन इस बंद की विशेषता यह है कि भारत बंद कांग्रेस की अगवानी में बुलाया गया, लेकिन इसमें महागठबंधन की एकता की झलक साफ साफ दिखाई दी ,चाहे बिहार में आरजेडी हो, उत्तर प्रदेश में एसपी और बीएसपी ,यहां तक की दिल्ली की अरविंद केजरीवाल कि आप पार्टी ने भी इसका समर्थन किया और भारत बंद के चलते महागठबंधन ने मोदी सरकार को अपनी एकता दिखाने की कोशिश की।
और यही महागठबंधन की एकता इन दिनों ना सिर्फ बीजेपी बल्कि RSS के लिए भी सिर दर्द बनती दिख रही है, संभवतः इसी के चलते RSS द्वारा हाल ही में दिया एक विवादित बयान सामने आया, जिसमें कहा गया कि कई जंगली कुत्ते मिलकर एक शेर का शिकार कर सकते हैं ,और सामान्यतः BJP को स्वर्णिम वर्ग की पार्टी बताया जाता आया है लेकिन इन दिनों सवर्णों की बीजेपी से नााराज़गी केे चलते संभवतः RSS द्वारा हिंदुओं की एकजुटता की बात भी कहीं गई ,दरअसल N D A गठबंधन को बरकरार रखना एवं महागठबंधन की एकता मोदी सरकार के लिए एक चुनौती बनती जा रही है।
वही महागठबंधन की बात करें तो राहुल गांधी जब से मानसरोवर यात्रा से लौटे हैं ,एक्टिव नज़र आ रहे हैं और महागठबंधन को मजबूत करने का प्रयास करते दिख रहे हैं ,लेकिन महागठबंधन की राह भी आसान नहीं दिख रही पशोपेच सिर्फ़ प्रधानमंत्री कैंडिडेट का नहीं बल्कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों का अपना वर्चस्व भी है, वहीं कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व सीमित राज्य में ही बचा है ,बाहर हाल राहुल गांधी की तैयारी,और 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन ,2019 में कांग्रेस का भविष्य तय करेगी।
वहीँ सवर्णों की बीजेपी से नाराज़गी ओर महागठबंधन की एकता को हल्के में लेने की भूल ना सिर्फ शिवराज सरकार पर बल्कि मोदी सरकार पर भी भारी पड़ सकती हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा की NDA ओर महागठबंधन की आगे की रणनीति क्या होगी।
