“अगर किसी एक तरफा बयान के आधार पर किसी सामान्य नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहे तो समझिए कि हम सभ्य समाज मैं नहीं रह रहे “(जस्टिस आदर्श कुमार गोयल के अनुसार)।
तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने अपने अंतिम पड़ाव में सितंबर 1989 को संसद में एससी एसटी एक्ट पास करवाया, कई साल तक लगातार इस एक्ट के दुरुपयोग की याचिकाओं के चलते ,मार्च 2018 मैं सुप्रीम कोर्ट ने 1989 एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए जांच उपरांत दोषी पाए जाने पर गिरफ्तारी होने ,एवम कुछ और संशोधन किए ।
उसके बाद दलित संगठनों का देशभर में विरोध शुरू हुआ ,कई संगठनों के उग्र प्रदर्शन के चलते एक दर्जन से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गँवाई ,सरकारी और गैर सरकारी अरबों रुपए की संपत्ति का नुकसान हुआ।
सर्वप्रथम कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरते हुए आरोप लगाया कि मोदी सरकार दलितों के हितों की रक्षा नहीं कर पा रही एवं इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने की मांग की, इस मांग का BSP सहित कई विपक्षी पार्टियों ने समर्थन किया, वहीं सत्ता पक्ष मैं भी रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी सहित कई सांसदों ने कांग्रेस के सुर में सुर मिलाया और सरकार को आगाह किया की अध्यादेश ना लाने पर देशभर में उग्र प्रदर्शन किया जाएगा ,अत्यधिक बाहरी और अंदरूनी दबाव एवं 2018- 19 के विधानसभा और लोकसभा के चुनाव मैं दलित विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने आनन फानन में अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्क्रिय कर दिया ।
आरक्षण का दंश झेल रहे स्वर्णिम वर्ग जिसने कांग्रेस और BJP दोनों को सरकार बनाने मैं अपने अमूल्य वोटों का योगदान दिया, लेकिन बदले में उपेक्षा एवं कठोर एससी एसटी एक्ट मैं जकड़ दिया गया, इसके उपरांत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा मंच से प्रमोशन में आरक्षण के विरोध में कोर्ट के फैसले को ना सिर्फ चुनौती दी बल्कि दलितों के हित में कई घोषणाएं की ,वही कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा भी कांग्रेस को दलित हितेषी पार्टी बताया।
उपरोक्त घटनाक्रम के चलते कांग्रेस और BJP दोनों से क्षुब्ध एवम उपेक्षा के चलते स्वर्णिम वर्ग मैं इन दिनों विरोध के स्वर तेज हो गए हैं एवं यह मुद्दा मोदी सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है।
सरकार हो या विपक्ष देश की जनता चाहे वह किसी भी धर्म ,जाति ,संप्रदाय से हो ,एक समान होती है लेकिन राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है की अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए उन्होंने जनता के बीच धर्म जाति के आधार पर बंटवारा कर दिया है।
इस परिपेक्ष को देख कर उपरोक्त न्यायाधीश महोदय की बात पर सत्यता की मुहर लग जाती है ,राजनैतिक पार्टियों की कार्यप्रणाली जनता के साथ एक छलावा सी लगती है ,और ऐसे में हम कह सकते हैं की लोकतंत्र ,न्यायतंत्र को कमजोर करता दिख रहा है जो कि एक चिंतनीय विषय है।
