एक अजब सी धुंध है छाई

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चुनावी गीली लकड़ी में चिंगारी पड़ गई है प्यारे,         आग नहीं धुआं फैला है, इसमें ना भटकना तू प्यारे,

धुआं फैलाकर जनता से छद्म युद्ध की हो रही है तैयारी, संभल के रहना लक्ष्य से ना डिगना ,धुंध छटेगी होगा सवेरा थोड़ी हिम्मत रखना तू प्यारे,

तनिक छलावे, बहकावे से मत बहक जाना, सुन सबकी कर अपने मन की , नून तेल लहसुन ” प्याज” की खातिर हाथों से अनमोल हीरे खोए हैं प्यारे,

वीर शिवाजी महाराणा लक्ष्मी बाई और पृथ्वीराज जैसे वीरों को छद्म युद्ध ने समा लिया था इनको अपने में, सौ अंग्रेजों, दो सौ मुगलों की  गुलामी  झेल चुके हैं प्यारे , अब हिंदुस्तान में निकला है सूरज  ग्रहण ना लगने  देना  प्यारे, चीन रूस  खड़ा अकड़ के  क्योंकि राजा कड़क है प्यारे, भारत में भी बब्बर शेर अब कम ही बचे हैं प्यारे,

फिर  बिछ चुकी हैै चौपड चुनाव की, शकुनि की चाल को अब समझना है प्याारे ,अपनी काबिलियत पर है हमें भरोसा हाथ में कटोरा मत उठा प्यारे,  हिंदू-मुस्लिम सिख- इसाई दुनिया में हैं शान हमारी यही प्यारे,  चुनावी धुंध सब बांट रही है, इसे परखना है प्यारे, धर्म जाति संप्रदाय से ऊपर उठकर हिंदुस्तान को विश्वगुरु बनानाा है प्यारे।

एक कवि अपनी रचना के माध्यम से हिंदुस्तान के नोजवानों को धर्म जाती सम्प्रदाय को बांटने वाली चुनावी धुंध से सचेत रहने का आग्रह करता है ,कोई भी देश विकाशशील तभी बन सकता है जब जनता एकजुट हो,जनता की आपसी फुट का नतीजा हिंदुस्तान भुगत चुका है।

 


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