मानव जीवन में सब कुछ मिला हो ,लेकिन सब कुछ होते हुए भी एक सच्चे मित्र के बिना जीवन अधूरा एवं कुछ नहीं मिलने के बराबर होता है ,बात मित्रता की हो और श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रसंग ना हो यह तो संभव नहीं है, श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता का इतिहास हजारों साल पुराना है ,और यह उज्जैन एवं उज्जैन से 30 किलोमीटर दूर नारायणा ग्राम वासियों का सौभाग्य है कि इसे श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की जन्म स्थली कहा गया है , उज्जैन में महर्षि सांदीपनि के आश्रम में श्री कृष्ण और सुदामा ने अपनी शिक्षा प्राप्त की एवं गुरुकुल परंपरा अनुसार स्वर्ण गिरी पर्वत से लकड़ियां लाते समय रास्ते में बारिश के चलते नारायणा ग्राम मैं ही रात्रि विश्राम किया ,गुरु माता द्वारा दोनों के लिए दिए गए कुछ मुट्ठी चने जो कि अकेले सुदामा द्वारा खा जाने पर श्री कृष्ण द्वारा यहीं मित्रता का पाठ पढ़ाया।
नारायणा ग्राम की एक और विशेषता है जहां मंदिर में भगवान श्री कृष्ण अपने मित्र सुदामा के साथ विराजित हैं उनके द्वारा इकट्ठी की गई लकड़ियां ,एवम इस मंदिर के आसपास ऐसी कई स्मृतियां ,जैसे आज भी वहां जाने से मानो सजीव हो उठती है ।
श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता स्थली नारायणा मैं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर उज्जैन के इस्कॉन मंदिर से एक रथ यात्रा प्रारंभ होकर ,उज्जैन शहर में होकर नारायणा ग्राम पहुंचती है जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर, इस श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता स्थली पर ऐसी मित्रता को अपने जीवन में अनुसरण करने का संकल्प लेते है ,अगर जीवन में मित्रता के अनमोल रहस्य की अनुभूति करना है तो एक बार नारायणा ग्राम जरूर जाना चाहिए यहां के कण-कण में मित्रता का अनमोल रहस्य आज भी मौजूद है।
कलयुग में एक सच्चे मित्र की बात कहें तो एक स्वप्न जैसा प्रतीत होता है लेकिन भगवान श्री कृष्ण के मित्रता के लिए इस नारायणा ग्राम से दिए उपदेश का अनुसरण करें तो ऐसा संभव है, जिसमें कहा गया है कि एक सच्चा मित्र पाने के लिए शुरुआत खुद से करना आवश्यक है।
