सरकार गरीबों के नाम पर 2 रुपए किलो चावल, 2 रुपए किलो गेहूं दे रही है जबकि सरकार यह 20 रुपया किलो में खरीदती है, ऐसे मैं आपका सवाल यह होगा कि यह 18 रुपए? ,तो सरकार कहती है कि यह पैसे पप्पू देगा, बात यहीं रुक जाती तो ठीक थी लेकिन उसके बाद आता है फ्री का दौर ,हर चुनाव के ठीक पहले सारे कर्ज माफ़, बिजली फ्री ,शिक्षा फ्री, स्वास्थ्य फ्री, घर फ्री और उसके बाद जाति के आधार पर पक्षपात कर आरक्षण देकर नोकरी फ्री, जैसी फ्री की रेवड़ी बांटने का रिवाज अब सरकारों ने शुरू कर दिया है,और इस फ्री की रेवड़ी के पैसे? ,तो सरकार यह कहती है कि यह पैसे पप्पू देगा।
मध्य प्रदेश मैं आगामी चुनाव के चलते घोषणावीर मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि आपका अभी तक का बिजली का बिल चाहे वह लाखों रुपए हो माफ्र,ओर आगे से ₹200 प्रतिमाह, ऐसे में आपका यह सवाल होगा कि यह लाखों रुपए ? एवं अगर कोई ₹1000 की बिजली प्रतिमाह जलाता है तो 800 रुपए?, तो ऐसे में मध्य प्रदेश सरकार यह कहती है कि यह करोड़ों रुपए पप्पू देगा, अब मिडिल क्लास महोदय, अगल बगल मत झांकिए, पप्पू आप ही है, और यह करोड़ो की फ्री की रेवड़ी आपके माथे ही बंट रही है।
जब चुनाव होते हैं और जनता वोट देने जाती है तब आपसे यह सवाल नहीं होगा ,की आप अमीर हैं ,गरीब हैं , मिडिल क्लास या किस जाति या धर्म संप्रदाय से हैं ,सरकार सबके वोटों से बनती है और सरकार की जिम्मेदारी होती है कि सब को रोजगार मिले और हर वोटर को समान हक मिले लेकिन सत्ता में आते ही राजनेता पहले अपना घर भरता है ,और मुनाफा तो दूर ,करोड़ों के कर्ज तले दबी सरकार फ्री का खेल शुरू करती है , तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस प्रकार किसी एक का हक मारकर दूसरे को फ्री देना ,सरकार की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाता है ,और सवाल यह भी उठता है कि आखिर यह फ्री का खेल कब तक और क्या इस फ्री के खेल से गरीबी खत्म हो सकती हैं? ,सरकार का काम है लोग को रोजगार मुहैया कराना लेकिन रोजगार मुहैया ना करा कर किसी को सब कुछ मुफ्त, वह भी किसी और की जेब से ,तो ऐसा करके एक व्यक्ति विशेष को सरकार ना सिर्फ रोजगार न करने के लिए प्रोत्साहित करती है बल्कि उसे हमेशा के लिए गरीब रहने पर भी मजबूर करती है।
बाहर हाल अमीर और अमीर बनता जा रहा है ,ओर गरीब सबकुछ फ्री मिलने के चलते कुछ करना नही चाहता , प्राइवेट नौकरी कर जैसे तैसे अपना परिवार पाल रहे मध्यम वर्गीय पर साल दर साल सरकार फ्री की रेवड़ी बांटकर आखिर कब तक यह भार डालती रहेगी, और ऐसे में एक मध्यमवर्गीय सरकार से यह पूछने को बाध्य है कि वह वोट किसको दे?, और क्यों दे?, क्योंकि आज के समय में हर राजनीतिक पार्टी की कार्यशैली यही है।
