अस्तित्व बचाने की होड़

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कहते हैं की समय किसी का भी हमेशा एक सा नहीं होता, 60 साल देश पर राज करने वाली पार्टी आज ठीक से विपक्ष भी नहीं कहला पा रही ,पूरे देश पर अपना परचम लहराने वाली पार्टी आज कुछ राज्यों तक ही सिमट गई, वहीं दूसरी और वर्तमान सत्ताधारी पार्टी ने ठीक उल्टा साबित किया,कैसे, बजाय इसके की ,इसके पीछे का कारण क्या है यह ढूँढने के, विभिन्न राजनीतिक दल जो अपने ही राज्यों में अपना अस्तित्व बचाने में असमर्थ हो रहे, यह दर्शाकर एक होने की कोशिश कर रहे हैं कि वह समान विचारधारा के हैं ,लेकिन वास्तविकता अपने अस्तित्व बचाने की है, विचारधारा समान होती तो शायद इतने दल जन्म ही नहीं ले पाते ,सत्ता पाने की होड़ में कल तक जो एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे ,आज क्या उत्तर प्रदेश, क्या बिहार, क्या बंगाल तो क्या दिल्ली ,की विचारधारा यकायक समान कैसे होने लगी, लेकिन इतिहास गवाह है कि जब जब अपने अल्पकालीन स्वार्थ के चलते विभिन्न असमान विचारधारा वाले दल एक साथ आए हैं ,तब तब देश को एक अल्पकालीन अस्थिर सरकार मिली है, बजाय इसके की हालिया स्थिति के लिए अपने अंतर मन को टटोलकर कमियों को दूर कर अपने आप को सशक्त बनाने के ,विभिन्न दल अपनी विचारधाराओं से समझौता करने की कोशिश कर रहे हैं ,सिर्फ इसलिये की सत्ता मिल सके। वर्तमान में देश की जनता की मानसिकता मैं बड़ा बदलाव देखने में आ रहा है अब आम चुनाव में पहले जैसे चुनावी मुद्दे ,हम पानी, बिजली ,सड़क ,शिक्षा, स्वास्थ्य देंगे ,कर्ज माफी ,सब कुछ फ्री जैसे मुद्दे जोर नहीं पकड़ पा रहे हैं, अब तो चाहे कोई भी पार्टी हो और कोई भी नेता हो ,टिकेगा वही जो जमीनी हकीकत मैं काम करेगा ,तो ऐसे में चुनाव के पूर्व असमान विचारधारा और चुनाव के बाद अपनी विचारधाराओं से समझौता कर सत्ता पाकर सरे बाजार आंसू बहाना, यह जनता के विश्वास का हनन साबित हो रहा है।

बुद्धिजीवियों की माने तो सत्ता पक्ष से ज्यादा शक्तिशाली विपक्ष होता है, जो सरकार कि न सिर्फ निंदा करता है ,बल्कि उसे देश हित में कार्य करने के लिए बाध्य भी करता है और ऐसा करके वह सत्ता पक्ष से अधिक सशक्त छवि जनता के सन्मुख प्रस्तुत करता है ,सत्ता और विपक्ष समय-समय पर बदलते रहते हैं लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता ने एक सशक्त नेता विपक्ष ,जिसका लोहा सत्ता पक्ष ने भी माना और अपनी अलग छवि प्रस्तुत की, देश और अन्य दल को मानने पर बाध्य किया कि एक छोटा विपक्ष भी सशक्त होता है।

बाहर हाल देश में समान विचारधारा की बात चल रही है, कितने दलों की और कितने दिनों तक विचारधारा समान होती है यह तो समय ही बताएगा ,लेकिन बात तो जब होती की,” मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल, मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया”।


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