जनता चुनाव के जरिए अपने जनप्रतिनिधि को चुनती है, और वह इसलिए की जनप्रतिनिधि ,सदन और सरकार के माध्यम से उनके क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण करे एवम सरकार की जनता के लिए हितग्राही नीतियों को जनता तक पहुंचाएं ,लेकिन असल में होता उल्टा ही है ,चुनाव के वक़्त प्रत्याशी अपने बड़े नेताओं को ढाल बनाकर एवं समस्याओं का निराकरण करने का आश्वासन देकर सत्ता में काबिज हो जाते हैं ,लेकिन चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि (पार्षद, विधायक, सांसद) अपने क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण करना तो दूर वह अपने क्षेत्रों को जानते तक नहीं है, उज्जैन के BJP नेता सुरेंद्र सांखला ने जनप्रतिनिधियों द्वारा अपने क्षेत्र की सीमाएं बताने पर 100000 का इनाम देने की घोषणा की गई, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र के प्रति कितने जागरुख़ है, चुनाव के बाद उन्हें अपने क्षेत्र से कोई सरोकार नहीं रहता ,बल्कि यूं कहें कि वे अगले 5 साल चुनाव में लगे पैसों की रिकवरी मैं लगाते हैं।
उज्जैन संसदीय क्षेत्र बाड़कुम्मेद केे केसुुनी ग्रामीण क्षेत्र मैं सड़क नहीं बनने को लेकर रोष स्वरूप ग्रामीणों ने सांसद से कहा की ,रोड नहीं तो वोट नहीं ,तो जवाब में सांसद महोदय ने भी कहा कि वोट भले ही मत देना लेकिन सड़क अब 2019 के चुनाव के बाद ही बनेगी, इसमें गौर करने वाली बात यह है कि 2019 में सांसद महोदय का कार्यकाल पूरा हो जाएगा और अगला सांसद कौन होगा यह 2019 का लोकसभा चुनाव बताएगा लेकिन इससे यह स्पष्ट है की अपने क्षेत्र की समस्याओं की टोकरी हर जनप्रतिनिधि हर 5 साल में अगले जनप्रतिनिधि पर रखकर चलता बनता है, यही कारण है कि समस्याएं जस की तस बनी रहती है,ओर हर चुनाव में बड़े नेताओं को ढाल बनाकर जनप्रतिनिधियों का चेहरा बदल जाता है लेकिन कार्यशैली वही रहती है।
ऐसे में आजकल के इस चुनावी दौर मेंं पार्टी कोई भी हो ,जनता को उस बड़ी ढाल के पीछे के व्यक्ति को जांचने-परखने की आवश्यकता है, जनता कि स्थानीय समस्याओं का निराकरण उनका स्थानीय जनप्रतिनिधि ही हल कर सकता है जो की एक कुशल व्यक्तित्व वाला जनप्रतिनिधि ही कर सकता है ,वह बड़ी ढाल नहीं जिस का सहारा लेकर वह सत्ता में आते हैं ,इसलिए जरूरत इस बात की है कि जनता द्वारा स्थानीय जनप्रतिनिधि का चुनाव बड़ी पार्टी या बड़े नेता को देख कर ना हो।
