मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव का डंका बज चुका है राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी बढ़ रही है ,आनन फानन में करोड़ों की चुनावी सभाओं की तैयारी जोरों पर है लेकिन अगर हम उज्जैन की बात करें तो उज्जैन की जनता को पिछले 25 सालों से उस माई के लाल का इंतजार है जो अपनी चुनावी सभाओं में करोड़ों रुपए ना लगा कर किसी बड़े उद्योग की आधारशिला रखता,जिससे की उज्जैन के युवाओं को रोजगार मिलता।हवाई वादे करके सत्ता पाने की होड़ में राजनेता करोड़ों खर्च करने को मानो एक पैर पर खड़े हैं,ऐसे में सवाल यह उठता है कि चुनाव में करोड़ों खर्च करने को पैसा है लेकिन जिस जनता के आप प्रतिनिधि है उनकी बेरोजगारी दूर करने के लिए पैसा नही है।
पिछले 25 सालों मैं कांग्रेस और भाजपा मैं कोई ऐसा राजनेता नहीं आया जिसने बाबा महाकाल की नगरी की जनता की बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई ठोस कदम उठाया हो ,नए उद्योग लगाना तो दूर पुराने उद्योगों को बंद होने से भी ना बचा सके ,जबकि उज्जैन की जनता ने कई रोडपति नेताओं को करोड़पति बनते देखा है जिनके पास अपने 5 साल के शासन काल में बताने को कुछ भी नहीं है।हालात यह हैं कि अब आगामी चुनाव में मजबूरीवश नेताओं को विकास को छोड़ जातिवाद और समाजवाद का सहारा लेना पड़ रहा है ।
उज्जैन के पड़ोसी शहर इंदौर विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा,तो रतलाम शहर को मेडिकल कॉलेज जेसी सौगात मिली ,वही उज्जैन मोदी जी के दिए हुए स्मार्ट सिटी के तमगे को लगाकर बेरोजगारी से जूझ रहा है और क्यो ना हो ,उज्जैन के राजनेता एक दूसरे की सीढ़ी को गिराने में व्यस्त हैं ।
बाहर हाल उज्जैन की जनता को उस माई के लाल का इंतजार है जो उज्जैन को स्मार्ट बनाने का बीड़ा उठाएगा , हवाई वादों एवं झूठे दिलासों से अब उज्जैन की जनता के सब्र का बांध भर चुका है,और अब चुनावी दौर शुरू हो चुका है, वादों ओर घोषणाओ में उज्जैन कितने नंबर पाता है ये आने वाला वक़्त ही बताएगा।
