सत्ता पाने की होड़ में हर राजनीतिक पार्टी या तो उच्च वर्ग यानी उद्योगपतियों को साध लेती है और हजारों करोड़ रुपयों को लोन बता कर बांट देती है और बाद में कुछ उद्योगपति हजारों करोड़ का सरकार को चूना लगा देेश छोड़कर भाग जाते हैं ,जिसका खामियाजा किसी सरकार को नहीं भुगतना पड़ता है अगर कोई इन हजारों करोड़ रुपयों का बोझ उठाता है तो वह है मिडिल क्लास,सत्ता पाने की होड़ में हर दूसरी सरकार हजारों करोड़ का बोझ मिडिल क्लास पर डाल देती है।
सिक्के के दूसरे पहलू को देखा जाए तो वहां गरीब और किसान खड़ा है ,आजादी के 70 साल के बाद भी गरीब शब्द देश से नहीं हटा है ऐसा लगता है मानो गरीब को गरीब रखना हर सरकार की जिम्मेदारी सी हो गई है कोई भी सरकार गरीबी को जड़ से खत्म करने एवं किसानों को उन्नत बनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती ,सरकार आज भी ₹20 किलो के गेहूं ,चावल एक रुपए किलो में गरीबों में बांट रही है बाकी बचे ₹19 रुपयों का बोझ मिडिल क्लास पर मढा जा रहा है ,घर ,शिक्षा ,बिजली ,स्वास्थ्य, आदि सब कुछ फ्री ,हर आदमी को रोजगार उपलब्ध ना कराने की नाकामी के चलते हजारों करोड़ रुपए गरीबों पर खर्च कर सारा बोझ मिडिल क्लास के माथे मढा जाा रहा है ।
किसानों की बात करें तो सत्ता में काबिज होने के लिए हर राजनीतिक पार्टी देश के किसानों को उन्नत बनाने की बजाए ,नाकारा और बेईमान बनाने पर तुली है, कोई कहता है बिजली माफ तो कोई कहता है कर्ज माफ, अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए हजारों करोड़ का कर्ज माफ करने लिए आतुर है लेकिन राजनीतिक पार्टियां यह भूल जाती है की कर्ज माफी के हजारों करोड़ों रुपए ना तो राजनीतिक पार्टियों के हैं ना सरकार के बल्कि ये पैसे आम जनता के हैं, बेचारा मिडिल क्लास दिनोंदिन महंगाई के बोझ के तले दबता चला जा रहा है, एक दिन बिजली का बिल जमा ना करने पर दूसरे दिन बिजली काट दी जाती है, महीने के 5-10 हजार कमाकर अपना घर चलाने वाले मिडिल क्लास को सरकार ने कई तरह के टैक्स के तले भी दबा रखा है।ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों राजनीतिक पार्टियां ये भूल जाती है की सरकार बनाने में मिडिल क्लास का भी योगदान उच्च और निम्न वर्ग के बराबर ही होता है,जिस दिन मिडिल क्लास ने इन बढ़ते बोझ से तंग आकर हथियार डाल दिए उस दिन सरकार को देश चलाना भारी पड़ सकता है, आखिर क्यों हर कोई मिडिल क्लास ,जो कि देश की रीड की हड्डी कहलाती है उसे तोड़ने पर तुला है।
