उज्जैन के सप्त सागरों की हालत देखकर श्रद्धालु कहने को मजबूर हैं कि उज्जैन के जनप्रतिनिधि जहां पानी बताएं वहां कीचड़ भी नसीब नहीं होता ।
बात सोलह आने सच भी लगती है की सत्ता में काबिज नेताओं ने जैसे उज्जैन का नाम मिट्टी में मिलाने का फैसला कर लिया है ,पिछले कई सालों से उद्योगों के बंद होने के बाद यहां की जनता बेरोजगारी से जूझ रही है जिसका की कोई हल नजर आता नहीं दिख रहा ,बावजूद इसके यहां की जनता के धैर्य की प्रशंसा करनी होगी जो धार्मिक नगरी का तमगा मिलने पर भी खुश हो गई फिर क्या था नेताओं के हवाई फायर शुरू ,पवित्र नगरी ,पर्यटन स्थल, स्मार्ट सिटी आदि आदि बनाएंगे लेकिन उज्जैन को दिया क्या जीरो बटे सन्नाटा।
इन दिनों दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु रोज उज्जैन के 84 महादेव एवं सप्त सागर के दर्शन का लाभ लेने आ रहे हैं लेकिन जब वे यहां के जलकुंभी ,गंदगी ,सूअर ,मवेशी एवं कीचड़ से लेस सप्त सागरों को देखकर निराश होते हैं तो उज्जैन का सिर शर्म से झुक जाता है लेकिन यहां के नेताओं ,जनप्रतिनिधियों, शासन-प्रशासन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि वह सालों से ऐसी ही सेवाएं देते आ रहे हैं ,जिनका अपना विकास देखकर उज्जैन की जनता की आंखें चौंधिया रही है लेकिन उन्होंने उज्जैन का विकास ना होने देने की कसम खा रखी है।
ऐसे में उज्जैन की जनता को प्रदेश के मुखिया से उम्मीद है की वह हर काम बाबा महाकाल का आशीर्वाद लेकर शुरू करते हैं तो एक बार महाकाल मंदिर के पीछे रूद्र सागर के जल से आचमन कर हर हर महादेव किया जाए तभी 2018 -19 मेंं कुछ बदलाव दिखे तो दिखे।
