केंद्र सरकार ने महज साढ़े तीन साल के कार्यकाल में पिछली सारी सरकारों को पेट्रोल, डीजल के दामों में पछाड़ दिया है, यूं तो पहले ही गर्मी से पारा चढ़ा हुआ है और उस पर पेट्रोल के दामों ने जनता की जेबों में आग लगा रखी है
अगर बात बड़े मियां की करें तो कर्नाटक शपथ विधि मैं विपक्षी एकजुटता ने न सिर्फ माहौल को गरमा दिया है बल्कि उनको सोचने पर मजबूर कर दिया है ,उस पर पेट्रोल मूल्य वृद्धि का मुद्दा पारे को और चढ़ा रहा है ऐसे में जनता यह सवाल कर रही हैं की काले धन को भारत में लाकर लोगों की जेबें भरने की बजाए उल्टी कटती जा रही है ,वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की माने तो पेट्रोल के दाम बढ़ाना एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया बावजूद इसके की पिछले 2 साल से क्रूड आयल के दाम पहले की अपेक्षा कम है तो ऐसे में लगातार पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी सरकार की रणनीति पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है ,पिछले 3 सालों में इन बढ़ती कीमतों से तेल कंपनियों को करोड़ों का मुनाफा हो चुका है ,और वह मुनाफा किसकी जेबें काटकर वसूला गया यह जग जाहिर है ।
बात अगर छोटे मियां की करें तो लगता है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ,मध्यप्रदेश सरकार का सारा घाटा पेट्रोल डीजल के दामों में टैक्स जोड़कर वसूलना चाहते हैं जितने का पेट्रोल नहीं उससे ज्यादा टैक्स के नाम पर वसूली या यूं कहें मध्य प्रदेश में पेट्रोल सोने से घड़ावन महंगी साबित हो रही हैं ,पेट्रोल डीजल की कीमतों में मध्यप्रदेश का नाम सबसे अव्वल नंबर पर आ रहा है ऐसे में जनता केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार से यह सवाल कर रही है कि क्या पूर्ण बहुमत के यही मायने हैं ,या यूं कहें कि 5 साल तक मनमानी करने का पूर्ण बहुमत, लगातार पेट्रोल डीजल के भाव में बढ़ोतरी से जनता की रोजमर्रा की चीजों के मूल्यों में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है यहां तक की ₹10 की पानी की बोतल 20 रुपये की हो गई हैं, दूध ,सब्जी ,किराना आदि के मूल्य में भी वृद्धि इसी की वजह से हो रही है ऐसे में जनता केंद्र सरकार सेे पेट्रोल के दामों पर लगाम लगाने एवं राज्य सरकार से टैक्स में कटौती की गुहार लगा रही है ,अन्यथा ऊंट किस करवट बैठ जाएं यह हमने कर्नाटक में देख लिया
