जल नही,पैसा है तो कल है

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जीवन यापन के लिए हर प्राणी मात्र की प्रमुख आवश्यकता है “जल “और इसीलिए यह कहा जाता है कि जल है तो कल है लेकिन आजकल का राजनीतिक दृष्टिकोण बिल्कुल उल्टा है उनका दृष्टिकोण है पैसा है तो कल है।

मध्य प्रदेश सरकार उज्जैन में गहरा रहे जल संकट पर गंभीर नहीं है बनिस्पत इसके के यहां लगातार जनसंख्या वृद्धि के चलते उज्जैन के पेयजल स्रोत छोटे पड़ते जा रहे हैं जिसके चलते यहां जल संकट की स्थिति बनती जा रही है इसको कैसे दूर किया जाए और नए पेयजल स्त्रोत तैयार किया जाए, बल्कि कोई क्षिप्रा को चुनरी ओड़ा रहा है, तो कोई नर्मदा क्षिप्रा पंपिंग स्टेशन के बिजली के बिल का रोना रो रहा है, तो कोई गंभीर में चैनल नाली कटिंग ,ऐसे में यह सवाल लाज़मी है कि उज्जैन की जनता के पेयजल समस्या के निवारण के प्रति कोई गंभीर नहीं है ।

सरकार क्षिप्रा शुद्धिकरण, क्षिप्रा गहरीकरण, क्षिप्रा सौंदर्य करण, क्षिप्रा प्रवाही करण ,क्षिप्रा घाट पर पर्यटन स्थल आदि एक ही क्षिप्रा के अनेक योजनाओं का नाम देकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार अरबों रुपए का बट्टा लगा चुकी है, नेताओं ने अपनी जेबें लबालब कर ली है और क्षिप्रा जस की तस है।

क्षिप्रा शुद्धिकरण के चलते खान नदी का गंदा पानी क्षिप्रा में ना मिले इसके लिए अरबों रुपए की खान डायवर्सन योजना विफल हो गई और क्षिप्रा मैं आज भी खान नदी का गंदा पानी मिल रहा है, पूरे शहर का गंदा पानी भी क्षिप्रा में मिल रहा है।पूरी क्षिप्रा नदी जलकुंभी से लबालब है ऐसा लगता है मानो क्षिप्रा में पूरे साल जलकुंभी की खेती होती है।

सिहस्त महापर्व के बाद तो मानो ऐसा लगता है कि मोक्ष दायनी क्षिप्रा का सारा मिनरल वाटर साधु संत अपने कमंडल में भरकर ले गए , ऐसे में सवाल यह उठता है कि अरबों रुपए का चूना लगाने के बाद भी क्षिप्रा को सरकार मोक्ष क्यो ना दिला पाई और सवाल यह भी उठता है कि वह अरबों रुपए किसकी जेब में गए, और अब तो हालात यह हैं की जो क्षिप्रा में डुबकी लगाएगा उसका मोक्ष तय है ।

विगत कई सालों से उज्जैन की जनता के पेयजल का प्रमुख एक मात्र साधन गंभीर जो कि कागजों में उज्जैन शहर को 2 साल तक पेयजल उपलब्ध करा सकता है हर साल के अंत में खासकर मई-जून के आते आते चैनल कटिंग नाली कटिंग शुरू हो जाती है और इस को देख कर लगता है कि सरकार उज्जैन शहर के पेयजल को लेकर गंभीर नहीं हैै ,दूसरा नर्मदा क्षिप्रा लिंक योजना के नाम पर अरबों रुपए लगा चुकी है लेकिन उसके बाद भी नतीजा सिफर ,उज्जैन की जनता की पेयजल समस्या जस की तस बनी हुई है ऐसे में सवाल यह उठता है कि हर चुनाव में हर पार्टी इन्ही सब मूलभूत सुविधाओं की आपूर्ति को लेकर जनता को आश्वस्त करती है लेकिन चुनाव के बाद इन्हीं मुद्दों से नेताओं की जेब लबालब हो जाती है और समस्याएं जस की तस ।

केंद्र सरकार ने उज्जैन को स्मार्ट सिटी बनाने का बीड़ा उठाया है लेकिन क्षिप्रा के शुद्धिकरण या यूं कहें की खान डायवर्सन के नाम पर अरबों रुपए का बट्टा लगा चुकी है और आगे क्या कोई स्मार्ट कदम उठाएगी कहना मुश्किल है ,वही विगत 15 सालों से उज्जैन की जनता ने शिवराज सरकार पर भरोसा जताया और उज्जैन की जनता की पेयजल समस्या दूर करने की उम्मीद भी उन्हीं से थी लेकिन कोई नतीजा नही ,न सरकार को चिंता है और ना विपक्ष को यह मुद्दा दिखाई दे रहा है ,ओर अब ऐसा लगता है कि अगले दो चुनावी साल 18-19 तक क्षिप्रा और उज्जैन की जनता को और इंतजार करना पड़ सकता है ।


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