2017 मैं हुए गुजरात चुनाव में हमने देखा की विकास पर आरक्षण भारी पड़ा ,पाटीदार आरक्षण की आग के कारण BJP के लिए गुजरात चुनाव की जीत फीकी पड़ गई ,वही अब 2018 में होने वाले 3 राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले आरक्षण की आग को चिंगारी दी जा चुकी है,
पिछले कई सालों से शांत स्वर्णिम समाज जिसमे की ब्राम्हण ,क्षत्रीय जैसे कई समाज आते है ,मैं अचानक आरक्षण को लेकर सक्रियता बढ़ती जा रही है ,और इसके पीछे सिक्के के दोनों पहलू काम कर रहे हैं ,एक तरफ साल-दर-साल आरक्षण से वंचित होने के बाद भी स्वर्णिम समाज चुप्पी साधे था और आरक्षण पाने वाले उसका लाभ ले रहे थे ,फिर आखिर क्या वजह रही की मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को विकास से ज्यादा आरक्षण का मुद्दा उठाना मंच से उचित लगा, वहीं दूसरी ओर ऐसा लगता है कि 10 साल के शासनकाल के बाद कांग्रेस के पास बताने को कुछ भी नहीं ,ओर अर्जुन ओर एकलव्य दोनो का साथ ओर हाथ चाहती है।
ज्ञात रहे की सुप्रीम कोर्ट के अनुसार मौजूदा आरक्षण मे अब और बढ़ोतरी करना किसी भी पार्टी या सरकार के लिए संभव नहीं है ,जैसा कि गुजरात चुनाव में, किसी भी पार्टी के जीतने पर पाटीदारों को आरक्षण देना संभव नहीं था ,इसी प्रकार 2018 में इन तीन राज्यों में होने वाले चुनाव के परिणाम किसी भी पार्टी के पक्ष में हो लेकिन स्वर्णिम समाज को आरक्षण देना संभव नहीं दिखता ,बावजूद इसके ठीक चुनाव से पहले आरक्षण कि आग को चिंगारी आखिर कौन लगा रहा है और इस समाज को बांटने वाले मुद्देसे हासिल क्या होगा यह समझने वाली बात है ।
ऐसे में देखने वाली बात यह है कि 21वी सदी में विकास की बात क्यो हर पार्टी के लिए द्वितीय श्रेणी में आती हैं,ओर 70 सालों की आजादी के बाद भी अंग्रेजो की नीति” फूट डालो ओर राज करो” पर हर पार्टी की नीति चल रही है, लेकिन अब इस सदी में लोगों की मानसिकता मैं बदलाव दिखता नजर आ रहा है अब जनता सरकार उसी की बनाएगी जो विकास को प्राथमिकता देगा क्योंकि जातिगत आरक्षण जेसी नीति किसी भी देश को विकास की उचाईयो तक नही पहुँचा सकती।
अब देखना यह है कि जनता “विकास का साथ या आरक्षण का हाथ” थामती है।
