
आजादी के 70 साल से ज्यादा होने के बाद भी हमारी विचारधारा और उसके आधार पर देश किस दिशा में आगे बढ़ रहा है यह एक सोचनीय और चिंतनीय विषय है !
हमें और हमारी सरकारों को इन 70 सालों में आरक्षण ने क्या दिया और हमने इसके कारण क्या कीमत चुकाई है और भविष्य में भी आरक्षण जारी रहने के क्या परिणाम हो सकते हैं इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है !
क्या इतने सालों के बाद भी आजकल की परिस्थिति को देखते हुए आरक्षण पर समीक्षा की आवश्यकता नहीं है?क्योंकि आरक्षण के लागू करते वक्त भी यह आवश्यकता महसूस की गई थी की हर 10 साल में इसकी समीक्षा की जाएगी और इसके आधार पर आगे जारी रहना और इसमें संशोधन पर विचार कर आगे लागू किया जाएगा, लेकिन आजकल राजनीतिक दृष्टिकोण इस पर ना होकर वोट लेने का साधन मात्र रह गया है!
समाज कोई भी हो धर्म कोई भी हो हर क्षेत्र में अमीर और गरीब होते हैं इसको किसी जाति विशेष या धर्म से जोड़ना अनुचित होगा,किसी भी जाति विशेष जो आरक्षण पाती हो मैं सभी गरीब हो ऐसा जरूरी तो नहीं और सामान्य वर्ग की जाती जो आरक्षण ना पाती हो सब अमीर हो यह भी जरूरी नहीं है ,लेकिन ऐसा मान भी लिया जाए तो गरीब को अमीर और पिछड़े को अगड़ा या संपन्न बनाने का सिर्फ यही तरीका है ?सरकार गरीबों एवं पिछड़ों जो कि किसी भी जाति या धर्म का हो उसकी मदद मनरेगा, प्रधानमंत्री रोजगार योजना आदि आदि के द्वारा कर सकती है ,गरीब के होनहार बच्चों को तन, मन ,धन से मदद कर सकती है इसमें जाति विशेष का कोई स्थान नहीं है,परीक्षा और नौकरी के लिए उसे अपनी काबिलियत को साबित करना होगा अगर 100 में से 10 नंबर पाने वाले को प्राथमिकता आरक्षण के माध्यम से दी जाएगी और 100 में से 80 नंबर लाने वाले की उपेक्षा की जाती है तो यह न्याय संगत नहीं होगा और आने वाले समय में देश को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा ,यही भारत की विडंबना है कि 80% वाले आरक्षण के चलते उपेक्षा का शिकार होते हैं ,वही काबिल नौजवान विदेशों में नौकरी पाकर वहां की जीडीपी बढ़ा रहे हैं ,काबिलियत से समझौता भारत को छोड़कर दुनिया के किसी भी देश मैं नहीं किया जाता !
आज जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक पार्टियां जातिगत राजनीति को बढ़ावा ना देकर हर गरीब को उसका हक और हर काबिल को उसकी जगह मिले, इसके लिए अब आरक्षण की समीक्षा आवश्यक महसूस हो रही है देश तभी आगे बढ़ेगा जब नौजवान चाहे वह किसी भी धर्म ,जाति का हो आरक्षण की बैसाखी का सहारा ना देकर प्रतिभा को प्राथमिकता मिले, समाज का हर वर्ग यह चाहता है कि अब आरक्षण की समीक्षा हो !
इसी के चलते जनता सरकार को सचेत कर रही है की “प्रतिभा मारोगे तो प्रगति कहां से लाओगे”!
