
उज्जैन ,नया शिक्षा सत्र 2018-19 शुरू हो गया है ,पिछले 2 माह से पालक प्रशासन से गुहार लगा रहै है, ज्ञापन पर ज्ञापन दे रहे हैं की प्राइवेट स्कूल निजी पब्लिशर्स की महंगी किताबें पालको को खरीदने पर मजबूर कर रहे हैं, प्रशासन द्वारा NCERT की किताबों से प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का आदेश जारी कर भूल गए और वे जानने की कोशिश भी नहीं कर रहे की आदेश का पालन हो रहा है या नहीं ,लगातार पालकों द्वारा शिकायत करने के बाद भी किसी प्रकार की कोई प्रशासनिक हलचल नहीं हुई, नतीजतन प्राइवेट स्कूलों ने प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें पालक को खरीदने पर मजबूर कर दिया और मजबूरी वश पलकों ने ₹40 की किताब को ₹400 मैं खरीदा ,एक एक बच्चे का वार्षिक कोर्स हजारों रुपए मैं बिका और देखने वाला कोई नहीं खुलेआम मनमानी दुकानों पर लाखों की खरीद-फरोख्त हुई, ऐसे में पालकगण अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं ,और ये कह रहे हैं की अंधेर नगरी और चौपट राजा ।
यह मामला कोई नया नहीं है हर साल यही होता आ रहा है
पालकों को मुंह की खानी पड़ती है और प्रशासन मूकदर्शक बना देखता रहता है ऐसे में पालको को लगता है कि प्रशासन नाम की कोई संस्था मौजूद ही नहीं है ।और बात राजनीतिक लोगों की कहे तो इस पर वह भी चुप्पी साधे बैठे हैं क्योंकि हर तीसरे राजनेताओं के अपने बड़े-बड़े स्कूल एवं कॉलेज चल रहे हैं 21वी सदी में मानो यह सबसे अच्छा धंधा साबित हो रहा है जिसमें कि कोई मोल भाव नहीं और कमाई करोड़ों की,
पिछले 10 सालों में प्राइवेट स्कूल एवं कॉलेजों की मानो बाढ़ सी आ गई है सरकार द्वारा शिक्षा के मापदंड को कोई लागू नहीं कर रहा ,सरकार को खुद पता नहीं है की प्राइवेट स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों में बच्चों को क्या पढ़ाया जा रहा है अथवा वह पढ़ाने लायक है भी या नहीं। बात अगर किताबों की ही हो तो और बात है लेकिन इस क्षेत्र में लूट के और भी तरीके हैं सभी स्कूल अपने हिसाब से मनमानी फीस वसूल रहे हैं ,स्कूल ड्रेस पर स्कूल का मोनो लगा होना चाहिए, टी-शर्ट पर स्कूल का नाम बकायदा प्रिंट किया होता है ,बेल्ट पर भी मोनो, ब्लेजर पर भी स्कूल का मोनो यहां तक की मोजे पर भी स्पेशल रिमार्क किए जाते हैं, स्कूल बस का किराया भी मनमाना वसूला जाता है ,ना कोई देखने वाला है ना कोई सुनने वाला, कार्रवाई तो बहुत दूर की बात है ,खुलेआम करोड़ों का धंधा चल रहा है ,अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो जिम्मेदार है वह चुप क्यों हैं लगातार प्रशासन के आदेश की अवमानना से जनता में प्रशासनिक अधिकारीयो की छवि धूमिल होती जा रही है ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह इस विषय पर सख्त रवैया अपनाएं और प्रशासन को भी अपने आदेशों का सख्ती से पालन करवाना होगा अन्यथा प्राइवेट स्कूल बच्चों के कंधे पर बंदूक रखकर पालकों की जेब काटते रहेंगे और बच्चों के भविष्य के साथ यूं ही खिलवाड़ होता रहेगा
