सस्ती लोकप्रियता और करोड़ों रुपए के लिए जानबूझकर किसी की अस्मिता एवं मान सम्मान का हनन करने वाली फिल्म एक ऐसी इतिहास की घटना जिसमें एक क्रूर मुगल शासक के कारण हजारों महिलाओं ने अपनी अस्मिता बचाने के लिए जौहर किया या यूं कहें कि अलाउद्दीन खिलजी उन हजारों महिलाओं का हत्यारा था ,ऐसी ऐतिहासिक घटना जिसमें न सिर्फ राजपूत समाज बल्कि हिंदुस्तान की संस्कृति और महिलाओं के मान सम्मान को तार तार किया, फिल्मकार जानबूझकर ऐसी फिल्में बनाते हैं|
फिल्म में कई आपत्तिजनक दृश्य भी थे जिसे बाद में हटाया गया यहां तक की फिल्म का नाम भी परिवर्तित किया गया तो क्या नाम परिवर्तन से फिल्म काल्पनिक हो जाती, नहीं
तो क्या फिल्म बॉर्डर, कारगिल, दंगल जैसी इस तरह की तमाम फिल्मों को काल्पनिक नहीं कहा जा सकता है इस प्रकार की फिल्में जो ऐतिहासिक घटना से प्रेरित होकर बनाई जाती है उन्हें काल्पनिक कहना गलत होगा, हा क्रिश ,रोबोट ,या कार्टून फिल्म जैसी फिल्मों को काल्पनिक घटना पर आधारित फिल्में कहा जा सकता है यह बात फिल्मकार भी जानते हैं
ऐसे में सवाल यह उठता है की जब भारत के इतिहास एवं संस्कृति पर काल्पनिक घटना का नाम देकर फिल्में बनाना है तो जनता फिल्मकार से सवाल करती है कि क्यों आज तक बाबर, हुमायूं ,औरंगजेब, अकबर, मोहम्मद गौरी ,अलाउद्दीन खिलजी जैसे मुगल शासकों द्वारा हिंदुस्तान पर गई क्रूरता और अत्याचार पर फिल्में बनाने की हिम्मत वह क्यों नहीं जुटा पाते, फिल्मकार ऐसी फिल्में बनाएं और बाद में उसे काल्पनिक कहानी का नाम दे दें।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आजकल के फिल्मकार सस्ती लोकप्रियता और चंद पैसों के लिए किसी भी हद तक जाने को क्यों तैयार हो जाते हैं क्यों भारत के इतिहास एवं संस्कृति और महिलाओं के मान सम्मान का मजाक बनाने से उन्हे परहेज नहीं है ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदुस्तान में रहने वाले इस प्रकार की छोटी मानसिकता वाले फिल्मकार जानबूझकर इस प्रकार की फिल्में बनाते हैं जिससे लोगों के आत्मसम्मान को आघात पहुंचे लोगों को धर्म और जाति के आधार पर लड़ाया जा सके ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोकप्रियता मिले और उनकी फिल्में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाएं
ऐसे में हिंदुस्तान की सरकार को सख्ती दिखाना होगा ,ताकि आगे से कोई फिल्मकार इस प्रकार की फिल्में ना बना सके।
