स्वच्छता अभियान के तहत पिछले कई दिनों से या यूं कहो कि महीनों से यह प्रचार किया जा रहा है की उज्जैन स्वच्छता अभियान में नंबर वन होगा लेकिन होगा कैसे ,पता नहीं ।
विगत कई महीनों से उज्जैन में शिप्रा नदी हो या रुद्र सागर गंदगी और जलकुंभी का अंबार लगा हुआ है लेकिन ऐसा लगता है मानो शासन, प्रशासन को खुली आंखों से भी दिखाई नहीं दे रहा या देख कर भीअनदेखा कर रहा है,पिछले साल भी इस जलकुंभी ने प्रशासन को लाखों रुपए दिलाए थे, महीनों इंतजार के बाद बारिश में जब नदी पुर आई तो सारी जलकुंभी अपने साथ ले गई और प्रशासन के सारे पैसे बच गए इस बार भी प्रशासन ने कुछ ऐसा ही सोच रहा था लेकिन इस बार बारिश ने उनका साथ नहीं दिया ,नदी पुर आई नहीं और जलकुंभी और गंदगी नदी में आज भी बरकरार है ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब प्रशासन हर साल जलकुंभी ओर क्षिप्रा में गंदगी की सफाई के नाम पर लाखों रुपए लेता है तो इसकी समयपर रोकथाम और सफाई क्यों नहीं की जाती ।
शासन ,प्रशासन द्वारा स्वच्छता अभियान में नागरिकों से हर महीने सफाई के नाम पर वसूली करता है ना सिर्फ वसूली करता है बल्कि यह दावा भी करता है की स्वछता अभियान में उज्जैन को नंबर वन बनाना है लेकिन उज्जैन की जनता और शासन के लाखों रुपए स्वच्छता अभियान में लगाए जाने के बाद भी, लगता नहीं उज्जैन दसवां नंबर भी प्रदेश में हासिल कर पाएगा,तो क्या यह माना जाय कि स्वच्छता अभियान के नाम पर यह लाखों रुपए कागजी घोड़े बनकर दौड़ रहे है।
सिहस्थ आने से पहले क्षिप्रा नदी में कान्ह नदी का गंदा पानी न मिले इसके लिए शासन पहले ही करोड़ों का बट्टा लगा चुकी है, इसके बाद आज भी कान्ह नदी का गंदा पानी क्षिप्रा में मिलता आ रहा है ,तो क्या इसी तरह शासन प्रशासन जनता के पैसे का दुरुपयोग करती रहेगी ,आखिर क्यों प्रशासन सख्ती नहीं दिखा रहा ।
क्या इसी प्रकार स्वच्छता अभियान मैं उज्जैन नंबर वन बनेगा ?
