” सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का”

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शासन, प्रशासन द्वारा बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जाती है और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा आदेश जारी करके यह मान लेते हैं की उनके आदेश का पालन हो रहा है लेकिन असलियत में प्रशासनिक तंत्र को मानो जंग सा लग गया है
जुलाई 2016 मेंउज्जैन के तत्कालीन कलेक्टर द्वारा स्कूल बस के किराए को किलोमीटर के हिसाब से तय किया गया एवम वर्तमान जिलाधीश द्वारा पुनः इसको तय किए जाने पर सभी प्रशासनिक अधिकारी आरटीओ, डीईओ समेत स्कूल प्रशासन एवं स्कूल बस संचालक समस्त कलेक्टर की मीटिंग में मौजूद रहे सबकी सहमति से किराया तय किया गया जोकि न्यूनतम 5 किलोमीटर तक ₹400 रखा गया
जुलाई 2016 से जुलाई 2017 आ गया लेकिन स्कूल बस संचालकों द्वारा तय किराये से कहीं अधिक 550 से 600रु तक वसूला गया जिसकी शिकायत पालको द्वारा ,मीडिया द्वारा कई बार कलेक्टर को आरटीओ को एवं डीईओ को गई लेकिन आश्वासन देकर प्रशासनिक अधिकारियों ने अपना पल्ला झाड़ लिया इसमें देखने वाली बात यह है की जिलाधीश के आदेशों का पालन करना और करवाना दोनों प्रशासनिक अधिकारियों को था लेकिन सब कुछ जानते हुए भी किसी भी स्कूल बस संचालक पर कोई कार्यवाही नहीं की गई लेकिन हाल ही में स्कूल प्रशासन एवं बस संचालको की आरटीओ,एवम डीईओ से मुलाकात हुई और जो मौजूदा स्कूल बस किराया जोकि पालको द्वारा वसूल किया जा रहा है यानी 500 से 600 रुपए जोकि कलेक्टर के आदेश से कहीं ज्यादा है वह भी स्कूल बस संचालकों को कम लग रहा है अतः उन्होंने मांग की है की न्यूनतम किराया ₹700 किया जाए इस पर प्रशासनिक अधिकारी जिन पर जिम्मेदारी है कलेक्टर के आदेश का पालन करवाने की वही स्कूल बस संचालक को सुझाव देते हैं कि बस किराया बढ़ाने का एक आवेदन तो लाइए वह आवेदन हम कलेक्टर के सम्मुख प्रस्तुत करेंगे ताकि किराए में बढ़ोतरी की जा सके
जिलाधीश महोदय भी सब कुछ जानते हुए भी अपने आदेश की अवमानना पर आंखें मूंद रहे हैं और किसी एक पालक द्वारा स्कूल बस संचालकों की शिकायत का इंतजार कर रहे हैं ऐसे में अगर समूह में शिकायत ना कर एक अकेला पालक किसी स्कूल बस संचालक शिकायत करता है तो स्कूल प्रशासन के ब्लैक मेलिंग का शिकार हो जाता है ऐसे में पालक अब मुख्यमंत्री ऑनलाइन शिकायत का दरवाजा खटखटाने की सोच रहे हैं या कुछ पालक मिलकर मुख्यमंत्री जी को लिखित में शिकायत कर सकते है,जाहिर सी बात है कि जिलाधीश द्वारा जुलाई 2016 मैं जो आर्डर किया गया था उस पर 1 साल बीत जाने पर भी अमल नहीं हो पाया है और जिन पर जिलाधीश के आदेश को पालन करवाने की जिम्मेदारी है वही किराया बढ़ाने का प्रस्ताव स्कूल बस संचालकों द्वारा मंगवा रहे हैं ऐसे में तो यही कहा जाएगा कि अब सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का |


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