” ये हे प्रेम की परिभाषा”

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आजकल की भागदौड़ की जिंदगी में हम इतने व्यस्त हो गए हैं की इंसानों का इंसान से प्रेम एक औपचारिकता रह गया है ऐसे में अगर कोई वानर से इतना प्रेम करता है तो इसको एक अचंभा ही कहेंगे और हो भी क्यों ना इंसानों का वानर से नाता भी बहुत गहरा है
जब किसी से प्रेम हो जाता है तो वह अपनी तमाम हदें पार कर देता है ऐसा ही एक इंसान का एक वानर से प्रेम अपने सारे हदें पार करता दिखाई पड़ता है

रामायण में हनुमानजी ने दिखा दिया कि प्रेम की पराकाष्ठा क्या होती है जब माता सीता ने हनुमान जी को खुश होकर अपने गले से मोतियों की माला दी तो हनुमान जी ने उसे बड़े आश्चर्य से देखा और एक-एक मनका तोड़कर उसमें अपने राम और सीता को ना पाकर पूरी माला तोड़ दी जब माता सीता ने पूछा कि मैंने आपको इतनी कीमती मोती की माला दी और आपने उसे तोड़ दी तब हनुमान जी बोले जिसमें मेरे प्रभु नहीं है वह मेरे लिए कोई काम की नहीं तो वहां खड़े कुछ लोगों ने कहा कि क्या तुम्हारे अंदर तुम्हारे प्रभु हैं क्या, तब हनुमान जी ने अपना सीना चीरते हुए अपने प्रभु श्री राम और सीता जी के दर्शन कराएं यह प्रेम की पराकाष्ठा नहीं तो क्या है, हम इंसान किसी से प्रेम करते हैं तो वह अलग-अलग व्यक्ति विशेष के लिए अलग अलग हो सकता है किसी के लिए प्रेम किसी के लिए ईर्ष्या किसी के लिए क्रोध हो सकता है क्योंकि हम दिमाग से सोचते हैं और जब कोई किसी से प्रेम दिमाग का उपयोग करके करता है तो उस प्रेम में सच्चाई हो इसमें संदेह्न होता है
लेकिन यह जानवर होते हुए भी इंसान से ज्यादा बुद्धिमान होते हैं क्योंकि इनके प्रेम में न छोटा बड़ा न जाति धर्म और ना ही ईर्ष्या द्वेष होता है यह प्रेम निस्वार्थ निस्वार्थ प्रेम होता है और निस्वार्थ प्रेम दिल से ही हो सकता है प्रेम की परिभाषा तो कोई इनसे सीखे। जीवन में हम अपना पराया तेरा- मेरा मैं ही रह जाते हैं और इसके चलते कई बार हम अपनों को भी खो देते हैं और जब भी किसी के प्रेम के बीच में तेरा -मेरा आ जाता है तो वह प्रेम फीका पड़ने लग जाता है और उसमें सच्चाई कम होती जाती है, लेकिन हम यह सोचें की हमारे पास तो दिल और दिमाग दोनों हैं तो क्या हम ईर्ष्या द्वेष छोड़कर अपनों से इतना प्रेम नहीं कर सकते?
जब कोई किसी सेे निस्वार्थ प्रेम करता है तो वह प्रेम अमर हो जाता है।


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