शिप्रा किनारे धोती-कुर्ता पहने कोई तीर्थ पुरोहित लैपटॉप पर काम करते नजर आए तो चौंकिएगा नहीं। ये आज के दौर के युवा तीर्थ पुरोहित हैं। भले ही इनका कार्य पारंपरिक है, मगर तालीम ऊंची हासिल की है। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं और तकनीक में भी कुशल। देश-विदेश के यजमान ऑनलाइन भी इनसे अनुष्ठान करा सकते हैं। समय के साथ तीर्थ क्षेत्र की तस्वीर भी बदलती जा रही है।
तीर्थनगरी अवंतिका में सैकड़ों पुजारी-पुरोहित परिवार हैं। कई पीढ़ियों से ये कर्मकांड सहित अन्य धार्मिक क्रियाएं करा रहे हैं। अधिकांश परिवारों में युवा भी पारंपरिक कार्य ही अपना रहे हैं। हालांकि उनकी सोच जुदा है। कई युवा संस्कृत, वेद अथवा ज्योतिष में डिग्री लेने के बाद ही इस क्षेत्र में आ रहे हैं। उनका कहना है कि वेदविद्या और कर्मकांड की शिक्षा तो घर पर ही मिल जाती है, मगर वैज्ञानिक दृष्टि से धर्म को समझने के लिए आधुनिक ज्ञान भी उतना ही जरूरी है।
वैज्ञानिक प्रक्रिया है कर्मकांड
वेद में एमए पं. मनीष डिब्बावाला बताते हैं कि कर्मकांड पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसके बारे में अच्छी तरह से यजमानों को समझाने के लिए आधुनिक ज्ञान भी उतना ही जरूरी है। यही कारण है कि पहले विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, इसके बाद पारंपरिक कार्य को अपनाया।
यजमान को बताते हैं वैज्ञानिक पक्ष
वेद में एमए पं.दिनेश शर्मा कहते हैं कि उनकी तरह कई युवा उच्च शिक्षित हैं और अब ज्यादा बेहतर तरीके से वैदिक धर्म का मर्म लोगों तक पहुंचा रहे हैं। पूरा प्रयास होता है कि धार्मिक विधि के दौरान यजमान को इसके वैज्ञानिक पक्षों के बारे में भी बताया जाए।
तकनीक को अपनाने का लाभ
संस्कृत में एमए और आचार्य उपाधि प्राप्त पं. गौरव उपाध्याय बताते हैं नई तकनीक को अपनाने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे हम अधिक से अधिक लोगों तक धर्म को पहुंचा सकते हैं। आज विदेशों में बसे भारतीय भी ऑनलाइन कर्मकांड करा पा रहे हैं।
