समलैंगिक विवाह की कल्पना मानवता के लिए अभिशाप – डॉ अवधेशपुरी महाराज

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समलैंगिक विवाह की कल्पना मानवता के लिए अभिशाप – डॉ अवधेशपुरी महाराज
डॉ अवधेशपुरी महाराज ने सुप्रीम कोर्ट को लिखा पत्र
देश में लाखों प्रकरण लंबित फिर समलैंगिक विवाह जैसे अमानवीय, अप्राकृतिक विषय के वैधीकरण हेतु बहस पर सुप्रीम कोर्ट क्यों कर रहा अमूल्य समय नष्ट
उज्जैन। देश में लाखों प्रकरण लंबित होने के बाद भी समलैंगिक विवाह जैसे अमानवीय, अप्राकृतिक, अतार्किक, औचित्यहीन व भारतीय सभ्य संस्कृति के विपरीत विषय के वैधीकरण हेतु बहस कर माननीय सुप्रीमकोर्ट का अमूल्य समय नष्ट न करने के सन्दर्भ में एक पत्र परमहंस डॉ. अवधेशपुरी महाराज ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चन्द्रचूड़ को लिखा है।
स्वस्तिक पीठाधीश्वर डॉ. अवधेशपुरी महाराज ने पत्र ज्ञापन के माध्यम से कहा कि सनातन संस्कृति में विवाह सांस्कृतिक एवं पारिवारिक मूल्यों के संरक्षण का एक पवित्र मांगलिक संस्कार है। भारत जैसे वैदिक राष्ट्र में इसकी सुदीर्घ सनातन परंपरा रही है जो कि विशुद्ध रूप से प्राकृतिक न्याय पर आधारित है। क्या यह विडंबना नहीं है कि हमारे पास ऐसी विशुद्ध प्राकृतिक, मानवीय, मर्यादित, सांस्कृतिक एवं तार्किक होने के साथ-साथ व्यावहारिक व मानवीय गरिमा के अनुरूप विवाह पद्धति के होते हुए भी एक अप्राकृतिक, अमानवीय, अमर्यादित, असांस्कृतिक, अतार्किक, अव्यावहारिक एवं मानवीय गरिमा के विरुद्ध समलैंगिक विवाह जैसे औचित्य ही न विषय पर माननीय सुप्रीम कोर्ट का अमूल्य समय नष्ट किया जा रहा है। कितना अच्छा होता कि हम इस अमूल्य समय का सदुपयोग देश में लाखों लम्बित प्रकरणों के समाधान में करते।
अवधेशपुरी महाराज ने कहा कि मैं राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति का एक शुभचिंतक होने के नाते माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस आश्चर्यजनक व्यवहार से न केवल आश्चर्यचकित हूँ बल्कि स्तम्भित भी हूँ। मैं नहीं समझ पा रहा कि जिस अप्राकृतिक सम्बन्ध को पशु पक्षी भी स्वीकार नहीं करते उसे सुप्रीम कोर्ट वैधीकरण की मुहर लगाकर सर्वाधिक चेतना सम्पन्न मानव समाज पर क्यों थोपना चाहता है? यदि हम ऐसी परिसंकल्पना भी कर रहे हैं तो हम मानवता को पशुता से भी निकृष्ट श्रेणी में ले जाना चाहते हैं। समलैंगिक विवाह की सोच से शुभ विवाह जैसा पवित्र माँगिलक संस्कार कलंकित होकर मानवता के लिए अमंगलकारक होगा। यह सोच न केवल भारत जैसे राष्ट्र की दिव्य वैदिक मान्यताओं व परम्पराओं के लिए अभिशाप होगी बल्कि पारिवारिक, सामाजिक व नौतिक मूल्यों तथा संस्कारों के लिए पतन कारक व मानवीय अस्तित्व के लिए अनिष्टकारी होगी। अवधेशपुरी महाराज ने माननीय सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह ऐसे अनुपयोगी, असंभव समाजद्वार अस्वीकार्य विषय पर अपना अमूल्य समय नष्ट न कर देश में लम्बित प्रकरणों के समाधान पर समय का सदुपयोग करने का कष्ट करे।


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