
180 परिवारों को बसाने और बेघर करने का दोषी आखिर कौन?
आखिर 5 साल बाद अचानक मुहिम के क्या हैं मायने
उज्जैन,कांग्रेस से विधायक महेश परमार ने सिंहस्थ क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमण हटाने की मुहिम को रोकने के लिए न सिर्फ एसडीएम के पांव पड़े बल्कि अतिक्रमण किए जाने के वक्त प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशैली पर भी प्रश्न चिन्ह लगाए, विधायक परमार ने आरोप लगाए कि 2004 से लेकर 2023 तक सिंहस्थ क्षेत्र में हुए अतिक्रमण के वक्त नगर निगम के अधिकारी यहां के जनप्रतिनिधि और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी आंखों पर पट्टी क्यों बंधी रखी थी, अगर उज्जैन की जनता ने सिंहस्थ भूमि पर अतिक्रमण किया है तो उसके लिए यहां के कॉलोनाइजर ,सत्ताधारी जनप्रतिनिधि एवं प्रशासनिक अधिकारी भी दोषी हैं और अगर अतिक्रमण कर्ताओं के घरों को ध्वस्त किया जा रहा है तब ऐसे में कॉलोनाइजर, सत्ताधारी जनप्रतिनिधि एवं विशेष तौर पर प्रशासनिक अधिकारियों पर भी कार्यवाही की जानी चाहिए, क्योंकि इतने सालों में हुए अतिक्रमण को चुपचाप न्योछावर लेकर अपनी आंखें बंद करने वाले प्रशासनिक अधिकारी इसमें सबसे बड़े दोषी हैं, वहीं प्रशासन सिंहस्थ भूमि में अतिक्रमण हटाने को लेकर भी दोहरी नीति अपना रहा है जिसमें सिंहस्थ भूमि पर 2016 के बाद किए हुए अतिक्रमण को ही हटा रही है लेकिन 2004 से लेकर 2016 तक सिंहस्थ भूमि पर किए हुए अतिक्रमण को नहीं हटा रही है और इसके पीछे का कारण भी स्पष्ट नहीं कर पा रही है, इससे स्पष्ट है कि प्रशासन सत्ताधारी जनप्रतिनिधियों के इशारे पर अतिक्रमण हटाने की मुहिम में मनचाहा बदलाव कर रही है,लेकिन इन सबके बीच हमेशा से ही प्रशासन अपने प्रशासनिक नुमाइंदो को बचाते आ रहा है इसके उदाहरण उज्जैन में कई हैं शांति पैलेस होटल, मन्नत गार्डन,आदि जैसे कई बड़े उदाहरण हैं जिसमें अतिक्रमण के तौर पर बहुमंजिला होटल बन जाती है और अचानक उसे अतिक्रमण या अवैध बता दिया जाता है और उसे ध्वस्त कर दिया जाता है लेकिन प्रशासनिक अधिकारी जोकि न्योछावर लेकर न सिर्फ परमिशन देते हैं बल्कि मुंह और आंख पर सालों तक पट्टी बांध लेते हैं लेकिन मुहिम के वक्त प्रशासन अपने भ्रष्टाचारी नुमाइंदों को बचा ले जाता है।
जैसे-जैसे मध्य प्रदेश में चुनाव नजदीक आ रहे हैं उज्जैन की राजनैतिक फिजा में बड़ी तेज गति से परिवर्तन दिखाई दे रहा है सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष दोनों अपने अपने पासे बिछाने में लगे हैं लेकिन इन सबके बीच में उज्जैन की जनता मोहरा बन कर रह गई है , यहां यह समझना जरूरी है कि सिंहस्थ को गुजरे 5 साल हो चुके हैं और अचानक यह मुहिम क्यों और किसके कहने पर चलाई गई है और न सिर्फ 5 साल से बल्कि 2004 के बाद से ही अचानक सिंहस्थ क्षेत्र में लगातार अतिक्रमण किया जा रहा है,या यूं कहें कि कराया जा रहा है, 2004 से लेकर 2012 तक उज्जैन उत्तर के सिंहस्थ क्षेत्र में जमकर अतिक्रमण हुआ लेकिन 2012 से लेकर अब तक उज्जैन दक्षिण के समस्त क्षेत्र विशेषकर इंदौर रोड पर और आसपास के शिप्रा किनारे क्षेत्रों में लगातार तेजी से अतिक्रमण हुआ है, लेकिन इस सिंहस्थ क्षेत्र अतिक्रमण मुक्त अभियान में 2016 से पहले के अतिक्रमण की बात नहीं की जा रही है, और इन सब के बीच उज्जैन के सत्ताधारी जनप्रतिनिधि मुंह पर पट्टी बांधे क्यों बैठे हैं? विनोद मिल से लेकर सिंहस्थ क्षेत्र के अतिक्रमण हटाने की मुहिम के दौरान उज्जैन उत्तर ,दक्षिण और सांसद सभी मुक दर्शक क्यों बने हुए, यह सब सवाल उज्जैन की जनता के मन में चल रहे हैं।
वर्तमान में सिंहस्थ क्षेत्र में अतिक्रमण हटाओ मुहिम की हद में लगभग 180 घर आ रहे हैं जिनमें गुलमोहर रामनगर और ग्यारसी नगर तीनों कॉलोनी या शामिल है जिन्हें सरकार उखाड़ फेंकना चाहती है लेकिन 180 परिवार भरी ठंड में कहां जाएंगे इसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है, टूटा फूटा और आधा विपक्ष इन बेघर परिवारों के साथ हमदर्दी दिखा रहा है लेकिन इनकी हमदर्दी का प्रशासन पर कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है इससे पहले भी विनोद मिलकर मजदूरों के मकान ध्वस्त करने पर प्रशासन ने टूटे-फूटे विपक्ष की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया और सभी मकानों को ध्वस्त कर दिया ऐसे में स्पष्ट है कि सत्ताधारी दल मनमानी पर उतर आया है और 2004 से लेकर 2016 तक सत्ताधारी पक्ष के जनप्रतिनिधियों के इशारे पर सिंहस्थ भूमि पर किए हुए अतिक्रमण को इस अतिक्रमण हटाओ मुहिम में स्पर्श नहीं कर रहा है आखिर उन्हें क्यों बख्शा जा रहा है ? प्रशासन इसका उत्तर नहीं दे पा रहा है।
लेकिन इन सबके बीच में जनता सब देख भी रही है और समझ रही है और इस दर्द को झेल भी रही है एवम आने वाले चुनाव में इसके लिए उचित जवाब भी दे सकती है।
