
पाड़ों की लड़ाई में बागड का नुकसान
निगम के भ्रष्टाचारियों को सजा आखिर कब मिलेगी?
सफेदपोश की सरपरस्ती के कारण बच रहे हैं निगम के भ्रष्टाचारी अधिकारी
उज्जैन,आखिर ये कहां का न्याय है कि जब जी चाहा चाय से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया,जी हां हम बात कर रहे हैं अतिक्रमण और अवैध निर्माण को ध्वस्त करने की,भरी ठंड में गरीबों के घरोंदों को ध्वस्त किया जा रहा है, लेकिन इस कार्यवाही में भी पक्षपात स्पष्ट नजर आ रहा है,आखिर अमीरों के आगे कानून भी क्या नतमस्तक है?
अतिक्रमण करना और अवैध निर्माण करना बेशक ठीक नहीं है और इसे सही भी नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलू बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि रिश्वत लेना जितना बड़ा अपराध है उतना ही रिश्वत देना भी, लेकिन प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने या अवैध निर्माण को ध्वस्त करने की कार्यवाही हमेशा एक तरफा ही होती है, जबकि इसका दूसरा पहलू यह है की अतिक्रमण और अवैध निर्माण को बढ़ावा देने वाला नगर निगम प्रशासन ही है और नगर निगम प्रशासन ना सिर्फ इसको बढ़ावा देता है बल्कि हर माह लाखों रुपए की इनकम इसके माध्यम से नगर निगम वसूल करता है,नगर निगम के अधिकारी इस भ्रष्टाचार में संलिप्त होते हैं।
शहर में कई अवैध कॉलोनियां हैं जिसमें नगर निगम के अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार की चादर ओढ़कर भवन निर्माण करने की अनुमति दी गई है, नगर निगम द्वारा सड़क ,नाली ,बिजली, पानी आदि की सुविधाएं मोहिया कराई जाती है और बकायदा हाउस टैक्स भी वसूलते हैं लेकिन कई सालों के बाद उस कॉलोनी को अवैध घोषित कर दिया जाता है और वही नगर निगम के नुमाइंदे उस अतिक्रमण और अवैध निर्माण को ध्वस्त करने पहुंच जाते हैं, लेकिन सवाल ऐसे में यह उठाता है की अवैध निर्माण या अतिक्रमण नगर निगम के अधिकारियों की सहमति और उनकी नाक के नीचे हो रहा होता है तब ऐसे में निगम के अधिकारी भी बराबरी के दोषी होना चाहिए, लेकिन बड़ी कुशलता से नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारी बच जाते हैं और गरीबों के घरौंदे ध्वस्त कर दिए जाते हैं।
आखिर क्यों उन नगर निगम के अधिकारियों को उनके द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की सजा नहीं मिलती?
प्रशासन द्वारा सप्त सागरों में से एक गोवर्धन सागर पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण हटाने की करवाई की जा रही है जिसमें कई दुकानों और कई मकान को प्रशासन के आदेश पर नगर निगम के नुमाइंदों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया, अतिक्रमण और अवैध निर्माण है तो वह है हटाना ही चाहिए लेकिन बता दें की गोवर्धन सागर 35 बीघा जमीन पर फैला हुआ है और शासन प्रशासन द्वारा अवैध निर्माण हटाने की करवाई गरीब बस्तियों की तरफ की जा रही है लेकिन असल में गोवर्धन सागर का एक बड़ा हिस्सा शहर के नामी गिरामी व्यापारियों के द्वारा हड़प लिया गया है और जहां व्यापारियों की आलीशान बिल्डिंग बनी हुई है लेकिन आखिर ऐसा क्या कारण है की प्रशासन को कई आलीशान अवैध बिल्डिंग से लेस विक्रमादित्य क्लॉथ मार्केट वाला हिस्सा दिखाई नहीं देता है और क्यों प्रशासन को नगर निगम के वे भ्रष्ट अधिकारी दिखाई नहीं देते हैं जिन्होंने इस अवैध निर्माण की अनुमति दी और जिन्होंने इस अवैध क्षेत्र की रजिस्ट्री की जबकि सबसे पहले सजा के हकदार यही नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारी हैं।
शहर के किसी भी हिस्से में अवैध निर्माण की अनुमति अगर निगम के अधिकारी नहीं देते हैं और रजिस्ट्रार अधिकारीयों द्वारा अवैध क्षेत्र की रजिस्ट्री नहीं की जाती है, ऐसे में अवैध निर्माण कार्य होने पर पूर्ण विराम लग जाता है लेकिन लाखों रुपए अनुमति देने के लिए न्योछावर के रूप में लिए जाने के बाद भी निगम के भ्रष्टाचारी अधिकारी कैसे बचे हुए हैं?
उज्जैन में सात सागर हैं और लगभग सभी सागरों पर अवैध निर्माण एवं अतिक्रमण किया गया है इन्हीं सप्त सागरों में से एक है पुष्कर सागर जहां अब सागर सिर्फ एक तलैया के रूप में रह गया है जबकि पुष्कर सागर प्रशासनिक कागजों में लगभग 7बीघा क्षेत्रफल का है लेकिन वास्तविकता में यहां एक पुरी कॉलोनी बस चुकी है ऐसे में सवाल यह उठाता है की यह कॉलोनी आखिर यहां बसाई किसने? किसने यहां भवन बनाने की अनुमति दी अगर भवन बनाने वाला दोषी है तो भवन बनाने की अनुमति देने वाला भी बराबर का दोषी होना चाहिए।
सिंहस्थ क्षेत्र की बात करें तो पूरे सिंहस्थ क्षेत्र में अवैध निर्माण धड़ल्ले से किया जा रहा है जहां कई सफेदपोश बाहुबलीयों द्वारा बड़े-बड़े गार्डन, होटल और कई अवैध कालोनियां बसा दी गई है लेकिन जब भी अतिक्रमण हटाने की बारी आती है गरीब के घरोंदो को ध्वस्त कर दिया जाता है और बाहुबली सफेदपोश बेदाग और बेगुनाह कहलाए जाते हैं, आखिर शासन प्रशासन को इन बाहुबली सफेदपोश द्वारा किया गया अवैध निर्माण क्यों नजर नहीं आता? क्यों अमीरों और बाहुबली नेताओं के द्वारा किए गए अवैध निर्माण को ध्वस्त करने की प्रशासन हिम्मत नहीं जूटा पाता ।
बहरहाल यहां एक कहावत को याद कर लेते हैं कि पाडों की लड़ाई में बागड का नुकसान होना तो तय है, इस कहावत का यहां क्या मतलब है इस पर हम किसी और दिन विस्तृत चर्चा करेंगे, लेकिन शासन प्रशासन को यह नहीं भूलना चाहिए की यह लोकतंत्र है जहां जनता भी न्याय करना जानती है और न्याय अन्याय को भली-भांति समझती भी है, शासन प्रशासन को चाहिए की सिक्के के दोनों पहलुओं को देखा जाना चाहिए और दोनों पहलुओं के दोषियों पर कार्यवाही एक समान की जाना चाहिए अन्यथा जनता का विश्वास लोकतंत्र पर नहीं रह जाएगा।
