निगम के मक्कारों पर कोई नियम कानून लागू नहीं होते
क्या जनता को सबक सिखाने अब रोड पर आना होगा?


उज्जैन, स्मार्ट सिटी के नाम पर उज्जैन शहर की बेरोजगार जनता से नगर निगम हजारों रुपए प्रतिमाह अनेक प्रकार के टैक्स और सफाई के लिए वसूलते है लेकिन वास्तविकता में शहर के हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं और इसके लिए जिम्मेदार नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारीयों की मक्कारी पूर्ण कार्य शैली है आलम यह है की शहर के सभी सार्वजनिक शौचालय बद इंतजाम के शिकार हो रहे हैं, नानाखेड़ा ,टावर एवं फ्रीगंज, गोपाल मंदिर, महाकाल क्षेत्र ,इंदौर गेट ,आगरा रोड ,पूरे उज्जैन के किसी भी शौचालय में उज्जैन नगर निगम कमिश्नर निरीक्षण करने की जहमत उठाते हैं तो वह पाएंगे की किसी भी शौचालयों के यूरिनल की सीट टूटी हुई है ड्रेन करने के पाइप निकल लिए गए हैं कहीं पानी की टंकी है तो पानी नहीं है और कहीं कहीं पानी की टंकी तक गायब हो चुकी है वॉश बेसिन नल की टोटी समेत गायब हो चुके हैं लाइट बल्ब, फिटिंग सहित गायब हो चुके हैं चारों तरफ गंदगी का आलम है, ऐसे में लाखों रुपए लगाने के बाद भी नगर निगम ने शहर में जगह-जगह गंदगी के अड्डे बना रखे हैं स्वच्छता सर्वेक्षण में कई बार मुंह की खाने के बाद भी नगर निगम के अल अधिकारी शहर की परिस्थिति और मक्कारी नगर निगम अधिकारियों की कार्यशैली को देखने झांकते तक नहीं है।
दूसरी ओर पूरे शहर में आवारा पशुओं का जमघट लगा हुआ है जगह-जगह चौराहों पर मुख्य मार्गों पर गली मोहल्ले में कॉलोनी में आवारा पशु जिसमें गाय, कुत्ते और सूअर बहुतायत में देखे जा सकते हैं, आलम यह है की मध्य प्रदेश सरकार की पुरी कैबिनेट शहर में मौजूद होने के बावजूद एवं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उज्जैन आगमन के समय भी उज्जैन के गली और चौराहों पर आवारा मवेशियों के विचरण में कोई बदलाव नहीं देखा गया और परिस्थितियों आज भी वही हैं भोपाल से फरमान जारी हुआ है की अब आवारा मवेशी सड़कों पर दिखने पर मवेशी मालिकों पर हजार रुपया का जुर्माना लगाया जाएगा लेकिन उज्जैन नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारी के पास आवारा मवेशियों को देखने का समय है और जुर्माना लगाने का तो प्रश्न ही नहीं उठाता है क्योंकि आवारा मवेशियों के मालिकों और नगर निगम अधिकारियों की साठ गांठ इतनी तगड़ी है, कि नगर निगम के अधिकारी आवारा मवेशियों को पकड़ने के नाम पर लाखों रुपए के कागजी घोड़े दौड़कर सरकार से वसूलते हैं और कुछ मवेशी पकड़ भी लेते हैं तो दूसरे रास्ते से पुनः छोड़ देते हैं, कुछ गौशालाओं में मवेशी रखते भी हैं तो उनके रखरखाव के लिए लाखों रूपयों का बिल प्रतिमाह सरकार से वसूलते हैं, और मवेशियों के मालिकों से पैसा लेकर पुनः मवेशियों को उनके हवाले कर देते हैं और इस तरह पूरे साल यह चक्र चलता रहता है इसमें नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारी को नियमित रूप से आए होती रहती है और मवेशी मालिकों को भी कोई समस्या नहीं होती।

उज्जैन की जनता हर नए नगर निगम कमिश्नर के आने पर आशा करती है की नगर निगम के कर्मचारी और अधिकारियों की कार्यशैली में अब परिवर्तन जरूर आएगा और भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारी पर कार्यवाही की गाज गिरेगी, लेकिन उज्जैन नगर निगम और उज्जैन शहर को वास्तविक में स्मार्ट बनाने वाला कोई सिंघम कमिश्नर उज्जैन को नहीं मिला है, वहीं सत्ता पक्ष का सभापति और महापौर होने के बाद भी शहर में कोई बदलाव नजर नहीं आया आलम यह है की शहर के कई वार्ड ऐसे भी हैं जहां नवनिर्वाचित पार्षद जनता के हाल जानने के लिए उन्होंने अपने क्षेत्र में झांका तक नहीं है।
बहर हाल उज्जैन शहर को यूं हवा में हम स्मार्ट शहर नहीं का सकते क्योंकि जब तक सरकारी विभाग के कर्मचारी की कार्यशैली में ईमानदारी का मिश्रण नहीं होगा, और जिम्मेदार अधिकारी जब तक भ्रष्ट अधिकारी एवं कर्मचारी पर सख्त करवाई नहीं करते हैं, तब तक कोई भी शहर स्मार्ट नहीं बन सकता, ऐसे में जनता के पास अब एक ही रास्ता बचता है की वह अपने क्षेत्र की समस्याओं के निवारण के लिए सड़कों पर आकर प्रदर्शन कर, मक्कार अधिकारी, कर्मचारी और नेता नगरी को जगाने का काम करे।

