
क्या राजनीति का शिकार हुए,महाकाल प्रशासक और निगम आयुक्त
उज्जैन, मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के महाकाल लोक के लोकार्पण की तैयारियों से पूर्व दो दौरों में दो प्रशासनिक अधिकारियों को उज्जैन से विदाई दी गई, आखिर प्रधानमंत्री के आने से पूर्व इन दोनों प्रशासनिक अधिकारियों से क्या गुस्ताखी हुई ,ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर आनन-फानन में दो प्रशासनिक अधिकारियों को क्यों हटाया गया, क्या यह राजनीति का शिकार हुए हैं? यह प्रश्न उज्जैन की जनता प्रदेश के मुखिया से कर रही है।
ज्ञात रहे कि शिवराज सिंह चौहान के महाकाल लो के लोकार्पण की की तैयारियों के बीच प्रथम दौरे के तुरंत पश्चात महाकालेश्वर मंदिर प्रशासक गणेश धाकड़ को हटा दिया गया, एवं दूसरे दौरे के तुरंत बाद निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता को भी हटा दिया गया दोनों प्रशासनिक अधिकारियों को हटाने के विषय कोई ठोस वजह शासन की ओर से नहीं बताई गई, ऐसे में सवाल यह है कि क्या यह राजनीति के शिकार हो गए हैं, इनके जाने से किसको फायदा और नुकसान होने वाला है।
गौरतलब है कि महाकालेश्वर मंदिर प्रशासक कुछ समय पूर्व महाकालेश्वर मंदिर में भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या के आगमन पर हंगामा के मामले में युवा मोर्चा के प्रदेश संगठन ने नगर एवं ग्रामीण जिलाध्यक्षों सहित 18 कार्यकारिणी सदस्य और कार्यकर्ताओं को युवा मोर्चा की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया था,महाकाल मंदिर में हुए घटनाक्रम के मामले में भाजयुमो के प्रदेश सह कार्यपालन मंत्री उमाशंकर राजपूत ने प्रदेशाध्यक्ष वैभव पवार के निर्देशानुसार नगर जिलाध्यक्ष अमय शर्मा और ग्रामीण जिलाध्यक्ष नरेंद्र सिंह जलवा सहित 18 कार्यकारिणी सदस्य और कार्यकर्ताओं को युवा मोर्चा की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया था, जबकि इस मामले में महाकालेश्वर मंदिर प्रशासक रहे गणेश धाकड़ का कहना था कि प्रशासन की ओर से सिर्फ तीन लोगों के गर्भ गृह में प्रवेश करने की अनुमति प्राप्त हुई थी लेकिन ऐन वक्त पर कई लोगों के गर्म गर्भ ग्रह में जबरदस्ती प्रवेश करने की कोशिश की गई इसके चलते उन्हें रोका गया था, इस हादसे के तुरंत बाद से ही महाकालेश्वर मंदिर प्रशासक पर हटाए जाने की तलवार लटकी हुई थी ऐसी चर्चा प्रशासनिक गलियारों में चल रही थी, और उसके बाद अगर बात करें हम नए प्रशासक की तो नए प्रशासक संदीप सोनी आते ही सुर्खियों में है कुछ दो नगर निगम में अपर आयुक्त रहते हुए और उनके आने के बाद भी महाकालेश्वर मंदिर में लगातार अनियमितताएं हो रही है, ऐसे में महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्थाओं में नए प्रशासक आने के बाद क्या बदलाव हुआ है।
वहीं बात करें निगम आयुक्त की अंशुल गुप्ता अपने सख्त रवैया के कारण पिछले कई समय से चर्चा का विषय बने हुए थे एक के बाद एक नगर निगम में भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों पर शिकंजा करते हुए पीयूष भार्गव, विजय गोयल, सुनील जैन,पवन लोढ़ा,सुबोध जैन ,प्रदीप सेन पर प्रमुख रूप से शिकंजा कसते हुए कार्रवाई की गई बावजूद इसके नगर निगम उज्जैन में सालों से अपनी ऊंची पहुंच के माध्यम से फेविकोल का मजबूत जोड़ की तरह यह भ्रष्टाचारी अधिकारी अपने पद पर बने हुए हैं यह ना तो उज्जैन की जनता कह रही है और ना ही हम यह सारे अधिकारी नगर निगम में करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने के चलते नगर निगम आयुक्त द्वारा जांच पड़ताल करने के बाद इन पर कार्रवाई हुई है लेकिन नगर निगम आयुक्त के नोटिस एवं सस्पेंशन को भी यह अधिकारी घोल कर पी गए हैं, अपनी ऊंची पहुंच के कारण यह अधिकारी करोड़ों रुपए का चूना उज्जैन नगर निगम को लगाने के बाद आज भी नगर निगम उज्जैन में एक नहीं बल्कि अपने पद के साथ अनेक विभागों के प्रभार के साथ बने हुए हैं और इन पर शिकंजा कसने वाले अधिकारी को तुरंत प्रभाव से हटा दिया गया ऐसे में सवाल ये उठता है कुछ समय पूर्व ही आए नगर निगम आयुक्त को तुरंत प्रभाव में यहां से क्यों हटा दिया गया, गौर करने वाली बात यह भी है कि निगमायुक्त के उज्जैन से विदाई के फरमान के तुरंत बाद उज्जैन नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा पटाखे फोड़ कर खुशियां मनाई गई , ऐसे में सवाल ये उठता है कि नगर निगम अधिकारी एवं कर्मचारी निगमायुक्त के जाने पर इस तरह दिवाली क्यों मना रहे हैं क्या वास्तविक में भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्टाचार को मिटाने वाले से ज्यादा प्रभावी हैं, आखिर कब उज्जैन का नगर निगम भ्रष्टाचार मुक्त होगा
बहर हाल इन दोनों ही प्रशासनिक अधिकारियों के आनन-फानन में हटाने पर सवालिया निशान अभी तक लगा हुआ है और उज्जैन की जनता प्रदेश के मुखिया से पूछ रही है कि इन दोनों ही अधिकारियों को हटाने के पीछे क्या कारण है और इनकी जगह पर आए नए अधिकारियों में क्या विशेषता है?, दोनों ही अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने पर तरह का कदम उठाया जाना उचित ठहराया जा सकता था लेकिन उज्जैन में चर्चा यह है कि भ्रष्टाचार को मिटाने वाले अधिकारियों का क्या यही इनाम है?, तो क्या वास्तविक में उज्जैन के प्रशासनिक अधिकारी राजनीति का शिकार हुए हैं? यह प्रश्न अभी भी बरकरार है।
