
*संपादकीय
“उपेक्षा की अपेक्षा नहीं थी”, एक पत्रकार का चिंतन
पत्रकार आखिर कौन ?, शहरों को स्मार्ट सिटी बनाते बनाते अधिकारी,जनप्रतिनिधि सभी जरूरत से ज्यादा स्मार्ट हो गए,सब अपनी मर्जी के मालिक हो चले हैं,जहां इनकी जो मर्जी है वह किया जा रहा है,जनता के भविष्य ,और उनकी रायशुमारी का कोई महत्व है ना ही कोई सरोकार,क्योंकि राजा करे वो न्याय ,और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया पोस्टमेन का स्वरूप लेता जा रहा है,जिसकी कलम में चाटुकारिता की स्याही भरी जा रही है।
करोड़ों रुपए लगाकर उज्जैन के विकास की गाथा लिखी जा रही है ,बाबा महाकाल का दरबार सज रहा है और सजना भी चाहिए क्योंकि बाबा महाकाल ही उज्जैन के पालनहार हैं उनके बिना उज्जैन का कोई अस्तित्व नहीं है, मध्यप्रदेश शासन और उज्जैन प्रशासन महाकाल के दरबार “महाकाल लोक” के लोकार्पण की पुरजोर तैयारी कर रहे हैं लेकिन जरूरत इस बात की है कि शासन-प्रशासन की निगाह में मीडिया का अर्थ संपूर्ण मीडिया होना चाहिए क्योंकि मीडिया की पहचान और उसकी हैसियत को किसी “दो तराजू “में तोला नहीं जा सकता, पत्रकारिता की पहचान और उसकी हैसियत एक पत्रकार की कलम होती है,शासन प्रशासन को चाहिए कि किसी भी पत्रकार की कलम को कमतर नहीं समझना चाहिए ।
पत्रकार की कलम वही लिखती है जो समाज ,शासन ,प्रशासन या लोकतंत्र के परिदृश्य में दिखता है,जनता के लिए क्या हितकर है और क्या अ हितकर, लेकिन चाटुकारिता का पत्रकारिता में कोई स्थान नहीं हो सकता, अंग्रेजों की राज करने की कुटिल मानसिकता थी जिसमें “फूट डालो और राज करो” ,आजकल लोकतंत्र का परिदृश्य अंग्रेजों की मानसिकता से प्रेरित नजर आता है, जिसमें लोकतंत्र के नुमाइंदों की कार्यशैली को जो भाटशैली में परिवर्तित नहीं कर पाता है, उसे दरकिनार कर दिया जाता है, शायद उसे पत्रकार कहलाने का हक भी नहीं, मैनेजमेंट गुरुओं के मार्गदर्शन में शासन प्रशासन की कार्यप्रणाली को अमलीजामा पहनाया जाता है , लेकिन कबीर दास जी ने वर्षों पहले अपने दोहे में एक सफल व्यक्ति या सफल शासक बनने का राज बताया था , “निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय”।
कहने का तात्पर्य है कि लोकतंत्र के सफलतम संचालन के लिए निंदक अर्थात मीडिया का बड़ा महत्व है , गुटबाजी ,चाटुकारिता और भ्रष्टाचार से प्रेरित निंदक कभी भी सफलतम लोकतंत्र का निर्माण नहीं कर सकते, इसलिए शासन प्रशासन को मीडिया के महत्व पर चिंतन करने की आवश्यकता है, क्योंकि मीडिया का अर्थ संगठन ,गुटबाजी नहीं हो सकता, एक पत्रकार स्वतंत्र रूप से मीडिया कहलाता है इसलिए गुटबाजी के फेर में स्पष्टवादी पत्रकारों को दरकिनार करना लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए चिंतनीय विषय है।
मनोज उपाध्याय
पत्रकार 🖋️
