मैली क्षिप्रा ने बुलाया है  ,क्या यह कहने को मजबूर होंगे प्रधानमंत्री  ?

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मैली क्षिप्रा ने बुलाया है ,क्या यह कहने को मजबूर होंगे प्रधानमंत्री ?
वाराणसी में प्रधानमंत्री जी ने कहा था, मां गंगा ने बुलाया है
उज्जैन, इसे उज्जैन का दुर्भाग्य कहेंगे या मोक्ष्यदायिनी क्षिप्रा का ,क्योंकि जो मोक्षदायिनी क्षिप्रा कहलाती है, उसका उद्धार बरसों बरस से नहीं हो पा रहा है और दिन प्रतिदिन मैली होती जा रही है, आलम यह है कि मोक्षदायिनी क्षिप्रा का जल आचमन योग्य भी नहीं है, उसी मोक्षदायिनी क्षिप्रा का जल भरकर प्रधानमंत्री भगवान महाकाल को अभिषेक एवम आचमन करेंगे, वहीं इसे उज्जैन की जनता का दुर्भाग्य कहेंगे क्योंकि जहां स्वयंभू बाबा महाकाल विराजमान है और उज्जैन के राजा कहे जाते हैं , और जहां अमृत की तलाश में करोड़ लोग सिंहस्थ महापर्व पर आस्था की डुबकी लगाते हैं,उस उज्जैन के हालात यह है कि जहां ना तो रोजगार है और नाही पीने योग्य पानी है।
मोक्षदायिनी क्षिप्रा सालों साल मैली रहे इसके लिए शासन प्रशासन के अधिकारी सालों से प्रयास कर रहे हैं, कुछ सालों पहले 100 करोड़ों रुपए की लागत से खान नदी का गंदा पानी शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए पाइपलाइन डाली गई थी ,लेकिन महज कुछ सालों में पाइपलाइन की योजना ध्वस्त हो गई, इंदौर एवं देवास औद्योगिक क्षेत्र का केमिकल युक्त विषैला पानी आज की मोक्षदायिनी क्षिप्रा में मिलना बदस्तूर जारी है, कुछ दिनों पूर्व करोड़ों रुपए लगाकर खान नदी पर कच्चा डेम बनाया गया था, जोकि पानी के थोड़े से बहाव बढ़ने से बह गया, लेकिन अभी भी उज्जैन के यशस्वी जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार प्रशासनिक नुमाइंदे मोक्षदायिनी क्षिप्रा को गंदे नालों के पानी मिलने से रोकने के लिए करोड़ों रुपए की योजना फिर से बना रहे यह योजना पहले की तरह ओचित्यहीन साबित होगी या मोक्षदायिनी क्षिप्रा को गंदे नालों के पानी से हमेशा के लिए निजात मिलेगी, यह आने वाला समय ही बताएगा लेकिन फ़िलहाल प्रधानमंत्री जी उसी मैली क्षिप्रा का आचमन एवम बाबा महाकाल का अभिषेक करने के लिए मजबूर होंगे।
उज्जैन की जनता और यहां के जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के आलम यह हैं कि सनातन धर्म के साधु संतों ने मोक्ष्य दायिनी क्षिप्रा को शुद्ध करने के लिए सत्याग्रह आंदोलन किया ,ताकि सिंहस्थ में मोक्ष्यदायिनी क्षिप्रा में वास्तविक में अमृत का पान करके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो सके ,लेकिन उज्जैन के सम्माननीय जनप्रतिनिधियों एवम जिम्मेदार प्रशासनिक नुमाइंदों ने उनका आश्वासन देकर सत्याग्रह भंग किया,और मैली क्षिप्रा के फिर वही ढाक के तीन पात, वहीं उज्जैन की जनता ने तो ऐसा लगता है कि मानो भंगिया के आगोश में सदा के लिए उदासीन हो गई हो ।
उज्जैन नगरी का आलम यह है कि एकमात्र उज्जैन का उद्धार करने वाला 12 साल में एक बार आने वाले सिंहस्थ पर्व पर भी ग्रहण लगता दिखाई दे रहा है ऐसा इसलिए है कि तमाम अखाड़ों के संतों ने मां क्षिप्रा के लगातार दूषित होने और कुछ भू माफियाओं द्वारा मां क्षिप्रा के किनारे अतिक्रमण करते हुए कई अवैध कालोनियां शिप्रा नदी के किनारे बसा दी है, उन सभी क्षिप्रा नदी के किनारे बसी कॉलोनियों का गंदा पानी क्षिप्रा नदी में मिलता जा रहा है और साथ ही क्षिप्रा नदी के किनारे लगने वाले सिंहस्थ के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है, इसी के चलते अखाड़ा परिषद के संतो ने क्षिप्रा नदी के किनारे की भूमि को सिंहस्थ के लिए आरक्षित करने की मांग की है अन्यथा आने वाले 2028 के सिंहस्थ को उज्जैन में नहीं लगाने की चेतावनी तक भी दी है,लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने इसको लेकर कोई सार्थक कदम नहीं उठाया है।
बहरहाल मध्य प्रदेश सरकार ,तमाम मंत्री एवं शासन प्रशासन के नुमाइंदे, करोड़ों रुपए की लागत से बने एवं कई विसंगतियों से युक्त करोड़ों खर्च करके महाकालेश्वर कॉरिडोर ,माफ कीजिएगा “शिव सृष्टि” के माननीय प्रधानमंत्री के कर कमलों से लोकार्पण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं ,यह करोड़ों की तैयारी आने वाले विधानसभा, लोकसभा चुनावों को लाभाविंत करेंगी या वास्तविक में उज्जैन की जनता को इससे कुछ लाभ होगा, यह वक्त ही बताएगा,क्योंकि बुद्धिजीवियों के माने तो 700 करोड़ के इस प्रोजेक्ट से उज्जैन की जनता को सीधे-सीधे कोई रोजगार उपलब्ध होगा ऐसा उन्हें नहीं लगता है क्योंकि इस पूरे प्रोजेक्ट का निर्माण एवं संचालन संधारण गुजरात की कंपनी के जुम्मे है ,इसके चलते पूरे प्रोजेक्ट के निर्माण में उज्जैन से बाहर के कुशल कर्मी बुलाए गए उज्जैन के युवाओं को रोजगार मिलना तो दूर,” शिव सृष्टि” में पत्थर तक उठाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।
अब देखना यह है कि वाराणसी में मां गंगा के जल का आचमन करने के उपरांत मां गंगा ने बुलाया है का उदघोष करने वाले माननीय प्रधानमंत्री , मोक्षदायिनी क्षिप्रा का उद्धार कर पाएंगे , यह आने वाला वक्त ही बता पाएगा,लेकिन फिलहाल तो माननीय प्रधानमंत्री को मोक्षदायिनी क्षिप्रा को” मैली क्षिप्रा ने बुलाया है” ऐसा कहने पर मजबूर होना पड़ेगा।


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