कर्तव्यों की अनदेखी कर भ्रष्टाचार और बेशर्मी का नंगा नाच कर रहे हैं ,प्रशासनिक अधिकारी

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कर्तव्यों की अनदेखी कर भ्रष्टाचार और बेशर्मी का नंगा नाच कर रहे हैं ,प्रशासनिक अधिकारी
क्या प्रशासनिक अधिकारियों के गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली ने ले ली मासूम बच्चों की जान?
उज्जैन,किसी घर के चिराग बुझने का दर्द क्या होता है वह ऐसे आपने कर्तव्यों की अनदेखी कर गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली एवं भ्रष्टाचार को प्राथमिकता देने वाले प्रशासनिक अधिकारी क्या जाने , ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि पूरे सिस्टम में ही भांग घुली हुई है, सुबह सुबह हाथों में लोकतंत्र का बखान करने वाली किताबें लेकर मासूम बच्चे स्कूल जाते हैं लेकिन शायद उन मासूम बच्चों को यह मालूम नहीं है कि भारत के लोकतंत्र में जो सिस्टम है वह कितना भ्रष्टाचार की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है और सड़ चुका है, क्योंकि जिम्मेदार अधिकारी ,जिनकी जिम्मेदारी है कि मासूम बच्चों को जो स्कूल वाहन स्कूल ले जाता है वह वाहन एक प्रशिक्षित वाहन चालक द्वारा चलाया जा रहा है या नहीं, किस वाहन में कितने बच्चे बैठने की क्षमता है, और कितने ठूंस ठूंस कर बैठाए जा रहे हैं, उस वाहन में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं या नहीं ,वाहन स्कूल से अनुबंधित है या नहीं, इस प्रकार के प्राथमिक नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना है,वे अधिकारी हाइवे पर वसूली करते नजर आते हैं।
एक प्राइवेट जीप में अर्थात जो स्कूल वाहन के रूप में रजिस्टर्ड ना किया हुआ और बिना किसी स्कूल से अनुबंधित, एवं जिस वाहन की बैठक क्षमता 9 या 10 बच्चे की अधिकतम हो जिसमें क्षमता से दोगुना बच्चे ठूंसते हुए ले जाए जाते हैं, उस वाहन के चालक के पास समुचित ड्राइविंग लाइसेंस है या नहीं, उस प्राइवेट जीप का फिटनेस है नहीं ,इन सभी पहलुओं की जांच करना आखिर किस प्रशासनिक विभाग की जिम्मेदारी है? और इन सब नियमों की अनदेखी करने के बाद कोई वाहन चल रहा है और उस वाहन के चलते अनेक मासूमों की जान चली जाती है, कई घरों के चिराग जिसके कारण बुझ जाते हैं तो ऐसे में यह गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली का जिम्मेदार आखिर कौन है, आखिर क्यों सफेद पोश अपनी कुर्सी का रुतबा और वाह वाही लूटने के लिए अस्पतालों में फोटो खिंचवाने के लिए बेताब हुए जा रहे हैं ,उन्हें इन बच्चों की हत्या के पीछे का कारण क्यों नहीं दिख रहा है ।
अगर जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य को भली-भांति निभाते तो शायद इस तरह का हादसा होने से बच जाता , यह हादसा ग्रामीण क्षेत्र या तहसील क्षेत्र में हुआ है, जहां के स्कूल वाहनों और अन्य वाहनों की जांच नियमित रूप से होना तो दूर की बात है, उज्जैन शहर में तमाम स्कूलों में चलने वाले वाहनों में खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है ,आलम यह है कि स्कूल वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चों को ठूसा जा रहा है, स्कूल वाहनों में कैमरा ,जीपीएस एवं सुरक्षा संसाधन नहीं के बराबर हैं, कई स्कूल बसों का फिटनेस एवं परमिट नहीं है, इसके बाद अमूमन स्कूल वाहनों में बच्चों को सुरक्षित चढ़ाने उतारने के लिए समुचित स्टाफ नहीं है, बच्चों को ट्राफिक भरी रोड पर छोड़ दिया जाता है, वहीं बच्चों के पालकों से कागजी नियमों को धता बताकर मनमाना पैसा वसूला जा रहा है, ना कोई देखने वाला है ना कोई सुनने वाला है, ऐसे में इन स्कूल बस संचालकों द्वारा नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुए स्कूल बसें चलाई जा रही है, ऐसे में इन स्कूल बसों के द्वारा दुर्घटना की पुनरावृत्ति ( ईश्वर ना करें ) होने पर आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा? क्योंकि हमेशा की तरह स्कूल प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेगा और प्रशासन ड्राइवर पर कुछ मामूली धाराएं लगाकर लीपापोती कर देगा, ऐसे में सवाल ये उठता है कि इस तरह के हादसों का मूल जिम्मेदार आखिर कौन है? और इस प्रकार के गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई आखिर कब होगी?, क्योंकि जब ऐसे गैर जिम्मेदाराना अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होती है तब तक ऐसे हादसे को होने से रोका नहीं जा सकता है और ना ही उन मासूम बच्चों की मौत का सही प्रायश्चित हो पाएगा।


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