
600 करोड़ के प्रोजेक्ट पर लग सकता है बट्टा
महाकालेश्वर मंदिर विस्तार योजना एवं मृदा प्रोजेक्ट में दूरगामी परिणामों पर नहीं किया गया विचार
उज्जैन, महाकालेश्वर मंदिर विस्तार योजना एवं महाकालेश्वर मंदिर के पीछे मृदा प्रोजेक्ट जिसकी लागत लगभग 600 करोड़ रुपए से अधिक है लेकिन इतने बड़े प्रोजेक्ट में शासन के नुमाइंदों द्वारा अगले 50 साल के दूरगामी परिणामों को देखते हुए योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया गया है आलम यह है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट में कहां क्या बनना है यह भी पहले से स्पष्ट नहीं है ऐसा इसलिए है कि पिछले 2 साल में इस प्रोजेक्ट में कई बदलाव किए जा चुके हैं शासन प्रशासन के नुमाइंदे अपनी मर्जी से प्रोजेक्ट में मनचाहा बदलाव कर रहे हैं जिसके चलते पूरे प्रोजेक्ट पर बट्टा लग सकता है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जिस जगह अर्थात महाकालेश्वर मंदिर एवं मृदा प्रोजेक्ट चल रहा है वहां तक पहुंचने के लिए दर्शनार्थियों को सुविधाजनक मार्ग होना आवश्यक है लेकिन महाकालेश्वर मंदिर एवं मृदा प्रोजेक्ट तक पहुंचने के मार्ग अभी भी बहुत सकरे हैं जिसके कारण इन सभी मार्गों पर अमूमन दिन भर जाम लगा रहता है आइए जानते हैं हम महाकालेश्वर मंदिर एवं मृदा प्रोजेक्ट तक पहुंचने के कौन-कौन से प्रमुख मार्ग हैं जिन्हें चौड़ा किया जाना आवश्यक है।
महाकालेश्वर मंदिर एवं मृदा प्रोजेक्ट तक श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों को पहुंचने के लिए मुख्य रूप से दो मार्ग है पहला रास्ता इंदौर रोड हरी फटक ओवर ब्रिज की त्रिवेणी संग्रहालय ओर की भुजा के रास्ते मृदा प्रोजेक्ट की पार्किंग तक पहुंचा जा सकता है वहीं इस पार्किंग तक जयसिंह पुरा होते हुए भी पहुंचा जा सकता है लेकिन यह दोनों मार्ग ही इतने सकरे हैं कि रोजमर्रा के ट्राफिक के दौरान ही यहां जाम लगा रहता है , हरी फटक ओवर ब्रिज की बात की जाए तो प्रशासन की ओर से इस प्रोजेक्ट के तहत यह कहा गया था कि हरी फाटक ओवर ब्रिज की चारों भुजाएं चौड़ी की जाएगी, लेकिन कुछ समय बाद ही हरी फाटक ओवर ब्रिज की भुजाओं के चौड़ीकरण को रद्द कर दिया गया ऐसे में सवाल यह उठता है कि शासन प्रशासन के नुमाइंदों द्वारा मनमाफिक प्रोजेक्ट में परिवर्तन किया जा रहा है इसके दूरगामी दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं ऐसा इसलिए है कि जहां मृदा प्रोजेक्ट में 600 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च किया जा रहा है ऐसे में इस प्रोजेक्ट तक जनता को पहुंचने का मार्ग अगर सुलभ नहीं होगा तब ट्राफिक व्यवस्था पूरी तरीके से ध्वस्त हो सकती है, क्योंकि उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर मैं दर्शन के लिए हजारों की संख्या में एवं पर्व के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और 12 साल में एक बार उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन भी होता है जिसमें करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं ऐसे में इतने सकरे मार्ग से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं को महाकालेश्वर मंदिर एवं मृदा प्रोजेक्ट तक पहुंचाना असंभव होगा, मृदा प्रोजेक्ट की पार्किंग तक पहुंचने के लिए जयसिंह पुरा तरफ से भी मार्ग है लेकिन यह मार्ग भी सकरा होने के साथ-साथ यहां रेलवे क्रॉसिंग पर ओवर ब्रिज नहीं होने से दिन भर जाम की स्थिति बनी रहती है।
महाकालेश्वर मंदिर एवं मृदा प्रोजेक्ट तक पहुंचने के लिए दूसरा मार्ग इंदौर रोड हरी फटक ओवर ब्रिज के रास्ते बेगम बाग होते हुए मृदा प्रोजेक्ट की पार्किंग तक पहुंचा जा सकता है लेकिन हरी फटक ओवर ब्रिज टू लेन होने के कारण एवं बेगम बाग क्षेत्र का रास्ता भी सकरा होने के चलते यहां अमूमन दिन भर जाम लगा रहता है ऐसे में स्पष्ट है कि अभी रोजमर्रा में हजारों की संख्या में लोगों के आवाजाही में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तब ऐसे में जब उज्जैन में पर्व के दौरान एवं सिंहस्थ महाकुंभ के दौरान लाखों की संख्या में लोगों की आवाजाही इस मार्ग से होना संभव नहीं है।
इसके अलावा महाकालेश्वर मंदिर पहुंचने के दो और रास्ते हैं जिसमें पुराने शहर से हरसिद्धि मंदिर की ओर से एवं तोपखाना क्षेत्र से महाकालेश्वर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है लेकिन यह दोनों मार्ग भी बहुत सकरे होने की वजह से जाम की स्थिति बनी रहती है।
बहर हाल वस्तु स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि महाकालेश्वर मंदिर विस्तार योजना एवं मृदा प्रोजेक्ट में बिना दूरगामी योजना को संज्ञान में रखते हुए करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए हैं लेकिन मुख्य स्थान पर पहुंचने के मार्ग को सुलभ नहीं बनाया गया है ऐसे में जब आम दिनों में ही महाकालेश्वर मंदिर एवं मृदा प्रोजेक्ट तक आम जनता को पहुंचने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है तब पर्व एवं सिंहस्थ महापर्व के दौरान लाखों की संख्या में जनता को महाकालेश्वर मंदिर एवं मृदा प्रोजेक्ट तक सुलभता से पहुंचाना असंभव होगा ऐसे में शासन प्रशासन को वस्तुस्थिति का संज्ञान लेते हुए महाकालेश्वर मंदिर एवं एवं मृदा प्रोजेक्ट तक पहुंच मार्ग को समुचित चौड़ा करने की आवश्यकता है अन्यथा न सिर्फ 600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर एवं इसको अमलीजामा पहनाने वाले कर्णधारों की कार्य योजना पर भविष्य में न सिर्फ प्रश्न चिन्ह लग सकता है बल्कि 600 करोड रुपए से अधिक के प्रोजेक्ट पर बट्टा लग सकता है।
