भगवान की भगवत्ता के नीचे होती है कोई भी सांसारिक सत्ता – डॉ अवधेशपुरी महाराज 

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जिस खेत को बाढ़ ही खा जाए, उसका रखवाला कौन
वीआईपी कल्चर के बीच ध्वस्त होती भगवान के दरबार की मर्यादा


भगवान की भगवत्ता के नीचे होती है कोई भी सांसारिक सत्ता – डॉ अवधेशपुरी महाराज
भगवान के चरणों में बैठने में ही है भक्त का सम्मान
वी आई पी कल्चर मठ मंदिरों के सरकारीकरण का दुष्परिणाम
उज्जैन, संवैधानिक दृष्टिकोण से महामहिम राष्ट्रपति महोदय का पद सर्वोच्च है किन्तु शास्त्रीय दृष्टकोण से परमात्मसत्ता ही सर्वोपरि है । जिसप्रकार संवैधानिक स्तर पर संवैधानिक मर्यादाओं का पालन अनुकरणीय होता है ठीक उसी प्रका शास्त्रीय स्तर पर शास्त्रीय मर्यादाओं का पालन भी अत्यंत अनुकरणीय होता है ।भगवान के श्रीचरणों में बैठने से ही भक्त को सम्मान प्राप्त होता है जैसे कि श्री हनुमान जी महाराज , जिस प्रकार हनुमाान जी के मंदिरों मे हनुमान जी महाराज का स्थान सर्वोच्च होता है उसी प्रकार जब प्रभु राजा श्री रामचंद्रर जी महाराज के दरबार की बात आती है तब श्री हनुमान जी महाराज का स्थान श्री रामचंद्र जी के चरणों मेंं होता है।
राजा धीराज बाबा महाकाल के दरबार में राजा हो या रंक सब उनके सेवक उनके भक्त ही कहलाते हैं, बाबा महाकाल के दरबार में अपना शीश झुकाने और उनसे आशीर्वाद लेने के लिए पधारे भारत के प्रथम नागरिक माननीय महामहिम राष्ट्रपति महोदय श्री रामनाथ कोविंद जहां उन्होंने परिवार सहित बाबा महाकाल के चरणों में वंदन किया और पूजा अर्चना की, लेकिन शासन प्रशासन और महाकालेश्वर मंदिर के प्रकांड पंडित एवं पुजारी जिनका कर्तव्य है कि वह बाबा महाकाल के दरबार के नियमों और उसकी गरिमा से महामहिम को अवगत कराएं, लेकिन शासन प्रशासन के नुमाइंदों द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वाहन नहीं किया गया जिसके चलते महामहिम राष्ट्रपति महोदय के महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के दौरान कुछ ऐसा हो गया जिससे बाबा महाकाल की गरिमा एवं मान सम्मान को ठेस पहुंची।
दरअसल बाबा महाकाल इस चराचर जगत के राजा होने के साथ-साथ उज्जैन के राजा धीराज भी कहलाते हैं, और बाबा महाकाल का भक्त इस चराचर जगत का हर मनुष्य कहलाता है और भक्तों का स्थान बाबा महाकाल के चरणों में हैं उनके बराबर में सिंहासन लगाकर बैठना अशोभनीय एवं उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने के समान होता है, वहीं बाबा महाकाल के अभिषेक एवं पूजन करने के भी कुछ विधि विधान हैं जिनका पालन करते हुए ही मंदिर में प्रवेश का विधान है जिसका परिपालन करवाना और जिस की जानकारी श्रद्धालुओं को देना महाकाल मंदिर के पंडे पुजारी एवं मंदिर प्रशासन का कर्तव्य है, लेकिन बाबा महाकाल के मंदिर के गर्भ ग्रह में पूजा और अभिषेक करने की पोशाक का भी उल्लंघन हुआ।
बहर हाल स्वस्तिक पीठाधीश्वर परमहंस डॉ अवधेश पुरी महाराज ने बताया कि बाबा महाकाल भक्तों के द्वारा अनजाने में किए गए मंदिर के नियम विरुद्ध कृत्यों के लिए उन्हें क्षमा करते हैं और इसके लिए दोषी वह है जो मंदिर की पूजा अर्चना की विधि एवम पोशाक और मंदिर की गरिमा के विषय में जान कर भी आने वाले भक्तों को इसके बारे में अवगत नहीं कराते हैं और मंदिर में आने वाले भक्तों के द्वारा अनजाने में भगवान के दरबार के नियमों का उल्लंघन हो जाता है।

महाकाल मंदिर प्रवन्ध समिति महामहिम राष्ट्रपति महोदय के संदर्भ में भी यदि मन्दिर की मर्यादाओं का अनुपालन करती, तो निश्चित ही एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत कर सकती थी क्योंकि ” यथा राजा तथा प्रजा “। किन्तु जिस खेत को बागड़ ही खा जाए उस की रक्षा कौन कर सकता है ? कुलमिलाकर वी आई पी कल्चर मठ मंदिरों के सरकारीकरण का ही दुष्परिणाम है । धर्म को वी आई पी कल्चर से बचाने के लिए मठमन्दिरों को सरकारीकरण से मुक्त करना अत्यंत आवश्यक है जैसे कि मस्जिदें व अन्य धर्मस्थल सरकारीकरण से मुक्त हैं ।


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