
क्षिप्रा के जल को छूने का भी अधिकार खो चुके हैं
मां क्षिप्रा को मलिन करने का जिम्मेदार आखिर कौन मध्य प्रदेश सरकार जनप्रतिनिधि या जनता
नेता नगरी के हाथी के दांत खाने के ओर दिखाने के ओर
उज्जैन, मोक्षदायिनी क्षिप्रा के जल को छुने का अधिकार भी उज्जैन की जनता और यहां के जनप्रतिनिधि खो चुके हैं ऐसा कहने के पीछे का क्या कारण है आपको विस्तार से हम बताएंगे।
मोक्षदायिनी क्षिप्रा के जल को छूने का अधिकार उज्जैन की जनता और जनप्रतिनिधियों को नहीं है, आज जो मोक्षदायिनी क्षिप्रा की दशा हुई है, उसका वास्तविक जिम्मेदार उज्जैन के उदासीन जनप्रतिनिधि है या सालों से शिप्रा को दूषित होते हुए देखने के बाद भी मुख दर्शक बनी उज्जैन की जनता?
क्या मध्य प्रदेश सरकार के नुमाइंदे इसके लिए जिम्मेदार हैं –
पिछले 20 सालों में 650 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं लेकिन अब भी शिप्रा नदी की हालत बेहद गंभीर है, शिप्रा नदी का जल स्नान तो ठीक आचमन करने लायक भी नहीं बचा है, शिप्रा नदी के जल के मलिन या दूषित होने के दो प्रमुख कारण है पहला शिप्रा नदी में इंदौर से आने वाली खान नदी जिसे कान्ह नदी भी कहा जाता है उसके शिप्रा नदी में मिलने के कारण शिप्रा नदी का जल मुख्य रूप से दूषित होता है दरअसल खान नदी मैं इंदौर से लेकर उज्जैन तक कई फैक्ट्रियों का गंदा पानी एवं केमिकल युक्त पानी खान नदी में मिलता है और यह गंदा और दूषित जल त्रिवेणी संगम पर शिप्रा नदी में मिल जाता है जिसके कारण से शिप्रा का जल भी दूषित हो जाता है सरकार ने खान नदी के दूषित जल को रोकने के लिए लगभग 100 करोड से अधिक की खान डायवर्सन योजना बनाई गई जिसके तहत राघव पिपलिया से पाइप लाइन के माध्यम से खान नदी के दूषित पानी को उज्जैन शहर के बाहर भेरूगढ़ से आगे ले जाया गया।
100 करोड़ की खान डायवर्सन योजना अंततः फेल हो गई, जिसके पीछे का कारण प्रशासनिक तौर पर यह बताया जा रहा है की खान डायवर्सन योजना में लगे पाइप का डायमीटर खान नदी में आने वाले पानी के बहाव की तुलना में छोटा है इसलिए ओवरफ्लो हो जाता है और गंदे पानी को शिप्रा नदी मैं मिलने से रोकने की योजना इस प्रकार असफल हो जाती है लेकिन ऐसे में सवाल यह उठता है कि करोड़ों रुपए की योजना शासन प्रशासन में बैठे नुमाइंदों की दूरदर्शिता की कमी और गैर जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली के चलते असफल हुई है और अगर ऐसा है तो इस योजना की व्यापक जांच की जानी चाहिए और जिम्मेदार शासन प्रशासन के नुमाइंदों पर इस योजना के असफल होने पर कार्रवाई की जानी चाहिए।

दूसरा उज्जैन के करीब 16 गंदे नाालों को रोकने के लिए 402 करोड़ रुपए का भूमिगत सीवरेज पाइपलाइन प्रोजेक्ट शुरू कराया, इसे साल 2019 में पूरा होना था, लेकिन मौजूदा हालातों को देखते हुए लगता है ये काम 2023 में भी पूरा नहीं हो पाएगा, 4 साल में अनुबंधित कंपनी ने केवल 200 किलोमीटर का काम पूरा किया है, अभी भी 239 किलोमीटर का काम पेंडिंग है।
अगर नर्मदा-शिप्रा लिंक योजना की बात की जाए तो शिप्रा का जल प्रवाहमान करने के लिए 450 करोड़ रुपए की योजना को अमलीजामा पहनाया गया,सिंहस्थ में लोगों ने नर्मदा-शिप्रा के संगम पर स्नान किया. इसके बाद हालात ये शिप्रा के सूखने और अधिकर प्रदूषित होने में ही नर्मदा का पानी इसमें छोड़ा गया. इसे में इस परियोजना का भी कोई खास लाभ शिप्रा शुद्धीकरण में नहीं मिला।
पिछले कई सालों से मां शिप्रा का जल दूषित हो रहा है लेकिन उज्जैन की जनता ने उदासीनता की मिसाल पेश की है जिसके तहत उज्जैन की जनता आज भी मौन व्रत धारण करे हुए हैं और जिसका नतीजा यह है कि जनप्रतिनिधि हर चुनाव के समय लोक लुभावने वादे जैसे शिप्रा नदी को शुद्ध किया जाएगा, दूषित जल शिप्रा में मिलने से रोका जाएगा, इसका स्थाई समाधान किया जाएगा और मोक्षदायिनी क्षिप्रा को प्रवाह मान किया जाएगा लेकिन कई सालों से उज्जैन के जनप्रतिनिधि चुनाव के बाद इन वादों से मुकरते नजर आ रहे हैं, बावजूद इसके जनता के मुंह पर ताले लगे हुए हैं और उज्जैन की जनता ने मोक्षदायिनी क्षिप्रा को शुद्ध करने के लिए किसी प्रकार का कोई आंदोलन नहीं किया है इससे स्पष्ट होता है कि उज्जैन की जनता कितनी उदासीन है।
क्या जनप्रतिनिधि जनता के साथ छलावा कर रहे हैं या मां शिप्रा के साथ अन्याय –
जहां एक तरफ 450 करोड़ की सीवरेज योजना जिससे उज्जैन शहर के तमाम गंदे नालों को शिप्रा में मिलने से रोका जा सके ,तो दूसरी और शिप्रा नदी के किनारे, जो क्षेत्र सिंहस्थ के लिए सुरक्षित रखा गया है इस क्षेत्र में लगातार भू माफिया जिन्हें राजनीतिक सरपरस्ती मिली हुई है ,वह शिप्रा नदी के आसपास कालोनियां काट रहे हैं और शासन प्रशासन सब कुछ देखते हुए भी मुख दर्शक बना हुआ है जहां एक और सिंहस्थ भूमि को अतिक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए सिंहस्थ प्राधिकरण शासन ने बनाया हुआ है जोकि वर्तमान में औचित्य हीन एवं अस्तित्व हिन नजर आ रहा है, दिन प्रतिदिन भू माफिया शिप्रा नदी के किनारे सिंहस्थ भूमि पर अवैध कालोनियां काट रहे हैं इन सभी कॉलोनियों के सीवरेज का गंदा पानी शिप्रा नदी में मिल रहा है , जहां एक और जनप्रतिनिधि सिंहस्थ क्षेत्र मैं बसी कालोनियों को सिंहस्थ क्षेत्र में मुक्त करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं लेकिन यही जनप्रतिनिधि शिप्रा नदी के किनारे सिंहस्थ भूमि पर अवैध कालोनियों भू माफियाओं द्वारा बसाने के मामले में मुख दर्शक एवं चुप्पी साधे हुए हैं, ऐसे में यह उज्जैन के जनप्रतिनिधियों की दोगली नीति को प्रदर्शित करता है जिसमें पहले सिंहस्थ भूमि पर अवैध कालोनियां बसाई जाएं और उसके बाद उसे सिंहस्थ क्षेत्र से मुक्त करने के लिए आंदोलन किया जाए।
कुछ माह पूर्व साधु संतों ने शिप्रा नदी को शुद्ध करने की मुहिम के चलते धरना प्रदर्शन एवं आंदोलन किया जिसके तहत शिप्रा नदी में खान नदी का दूषित जल मिलने से रोकने के लिए खान नदी से एक नहर का निर्माण कर खान नदी के पानी को शहर से बाहर निकाल देने की योजना शासन को सुझाई गई एवं सांवेर मैं एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जाए जिसके तहत खान नदी का दूषित जल शिप्रा नदी में मिलने से स्थाई रूप से रोका जा सके लेकिन उज्जैन के स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं मध्यप्रदेश शासन द्वारा साधु संतों को इस स्थाई समाधान को अमल में लाने के आश्वासन के बावजूद अभी तक इस योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका है।
इसी बीच प्रशासन ने खान नदी पर करोड़ों की लागत से एक कच्चा बांध बनाया गया था लेकिन अधिक बहाव की वजह से वह बांध बह गया इसके बाद प्रशासन ने एक पक्के बांध बनाने की योजना बनाई लेकिन इस योजना के भी असफल होने का संदेह जताया जा रहा है पक्के बांध बनाने के बाद भी बरसात के दिनों में पानी की अधिक आवक होने पर खान नदी का पानी शिप्रा में मिलने की संभावना है ऐसे में प्रशासन द्वारा सुझाई गई इस योजना के भी भविष्य में असफल होने के आसार हैं।
बहर हाल शासन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा बनाई गई शिप्रा को शुद्ध करने की करोड़ों की योजना अभी तक असफल रही है और जनता का करोड़ों रुपया शासन प्रशासन के नुमाइंदों की अदूरदर्शिता के कारण पानी मैं बह गए हैं, और नतीजा यह है कि ना तो शिप्रा शुद्ध हुई है और नहीं प्रवाह मान , बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों द्वारा शिप्रा परिक्रमा एवं शिप्रा को चुनरी ओढ़ने की नौटंकी रूपी राजनीति की जा रही है, राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों की राजनीति उनके स्वभाव में है ,लेकिन उज्जैन की जनता का शिप्रा नदी के मलिन होता देखने के बावजूद मुख दर्शक बने रहना शर्मनाक प्रतीत होता है ,ऐसे में क्या उज्जैन की जनता एवं उज्जैन के जनप्रतिनिधियों को मोक्षदायिनी क्षिप्रा के जल को स्पर्श करने का भी अधिकार है?
