*एच एन टी*
आज मन बहुत पीड़ित दुखी और व्यथित भी है, पर क्या करें अब मजबूरी भी है,सभी चुपचाप मौन होकर जो देख रहे हैं,कोई भी पत्रकारों की इस अपमानजनक होती स्तिथि पर कुछ भी बोलने कहने ओर लिखने को तैयार नहीं… आखिर क्यों ? पत्रकार आपस में ही लड़े जा रहे है और एक दूसरे को नीचा दिखा रहे हैं पत्रकारो की इस दुर्दशा आपसी फूट का आनंद प्रशासन पुलिस ओर नेता व्यापारी ओर अन्य सभी चटकारे ले ले कर सुना रहे हैं… ओर आप पत्रकार होकर भी अपने ही साथी पत्रकार से लड़े जा रहे हैं पत्रकारों का हित आपस में लड़ने से तो नही बल्कि एकजुट होने में ही है ओर सोसायटी फॉर प्रेस क्लब अब तक इसमें असफल है अब भी वक्त है एक हो जाओ चुनाव के बजाय सहमति बनाओ पद पर प्रतिष्ठित होने से अच्छा है एक दूसरे के दिलों पर राज करो ओर सभी के समक्ष पत्रकार और सोसायटी फॉर प्रेस क्लब की गिरती हुई साख को बचा लो अलग अलग स्थानों पर स्नेहभोज से अच्छा सहमती से सब मिलजुलकर खा लो और फिर भी बहुत जरूरी बन गया है तो कम से कम अपने ही साथी की टोपी तो मत उछालो शहर में ये सभी पत्रकारों का सौभाग्य है कि आज भी वो वरिष्ठ आशीर्वाद दाता पत्रकार पीढ़ी आप-हम पत्रकारों के भाग्य से मौजूद है जिन्हे वर्षो बरस कलम से निकले शब्दों की साधना करते- करते हो गए हैं जो वास्तविक पत्रकारों के मनके मेल ओर मलालो को दूर करने में सक्षम है चुनावी एजेंडे में वादा क्यों करते हो उसके पहले ही वरिष्ठ पत्रकारों को अपना मार्गदर्शक बना लो। सोसायटी फार प्रेसक्लब पत्रकारों के आपस में लड़ने का साधन या अखाड़ा तो नहीं था बल्कि पत्रकारों पर आने वाली विपत्ति (हाल ही में सीधी के पत्रकारों पर आई है और अन्य जगह भी पत्रकारों पर आती रहती है) से लड़ने का कई एक संगठनों को मिलाकर एक संगठन बना था जिसे अब कथित पत्रकारों ने सभी के समक्ष हंसी का पात्र बना दिया है और फिर भी पत्रकार एक होने को तैयार नहीं आपस में ही लड़े जा रहे हैं ऐसे संगठन का क्या फायदा जहां दिलो की दूरियां कम नही बल्कि बड रही हो! आखिर इससे किस पत्रकार को क्या लाभ होगा या हुआ है….? अब तक सोसायटी फॉर प्रेस क्लब बने एक युग होने को है हां मिस यूज ऑफ बायलाज के किस्से जरूर बाहर आ रहे हैं पर किसी भी पत्रकार को किसीने भी उस ऊंचाई पर ओर लाभान्वित होते हुए नहीं देखा जिस मकसद के लिए सोसायटी फॉर प्रेस क्लब बनाया गया था बस एक दूसरे पर छींटाकशी करते हुए जरूर देखा जा रहा है आज इसका मकसद अधूरा है क्योंकि पत्रकार एकजुट नहीं हैं आपस में ही लड़े जा रहा है जब तक पत्रकार आपस में लड़ेगा अपनी आपसी फूट और कलह का प्रदर्शन सार्वजनिक करेगा तब तक पुलिस प्रशासन और नेता व्यापारी व अन्य उसे केवल और केवल आश्वासन और नीचा दिखाते रहेंगे और पत्रकार की इस स्तिथि का आनंद लेते रहेंगे। याद है जब सोसायटी फॉर प्रेस क्लब का निर्माण हो रहा था तब शहर में प्रेस यूनियन प्रेस फेडरेशन और ना जाने कितने ऐसे लगभग 5-7 से अधिक कई संगठन थे और इन सभी के सदस्यों को एक साथ लेकर इसे बनाया गया था पत्रकारों के हितों ओर उनके आत्मसम्मान की रक्षा के लिए … पर यहां तो पत्रकारों में एकता नहीं पत्रकार एक दूसरे को देखते ही शाब्दिक व्यंग्य बाण चला रहे हैं व्हाट्सेप वार चला रहे है पत्रकार ही पत्रकार के आत्मसम्मान का हनन कर रहे है सिंह नहीं स्वान बन एक दूसरे पर भो- भो किए जा रहे हैं सिंह होते तो ये मिलकर बड़े बड़े शिकार करते एक दूसरे को ब्लैकमेलर ना कहते पर आज तो पत्रकार स्वयं नेताओं प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों व अन्य के समक्ष शिकार हो रहे है जिधर शासन प्रशासन नेताओं अधिकारियों को मौका मिल रहा है उधर ही वह पत्रकारों के पर कुतर रहा है पत्रकारों के हितों पर डाका डाल रहा है आज पत्रकारों को मिलने वाली सभी सुविधाएं छीनी जा रही हैं उन पर अतिक्रमण किया जा रहा है पर इस पर पत्रकार मोन है क्योंकि वह आपस में एक दूसरे से जो लड़े जा रहा है निश्चित ही चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है पर बावजूद इसके भी कई बार राजनीतिक व अन्य संगठनों और संस्थाओं में आंतरिक सहमति होते ओर बनते हुए देखी है और सोसायटी फॉर प्रेस क्लब पत्रकारों का संगठन भी एक आंतरिक व्यवस्था का विषय है इसे चुनाव से नहीं वरिष्ठों के साथ बैठकर उनके सलाह मशवरे से दिलो की सहमति से भी बना सकते हैं क्योंकि कभी भी कुछ भी हो सकता है और पत्रकार का हित तो तभी है जब तक उसमे फूट नही है ओर वह एकजुट है। आज आप देखो पत्रकार को छोड़कर हर वर्ग पहले पहल सभी अपने साथी को बचाने के प्रयास में लग जाते हैं एक डॉक्टर के ऊपर जब बात आती है तो सारे डॉक्टर मिलकर एक हो जाते हैं देशभर में प्रदर्शन हो जाते हैं जब कर्मचारियों पर बात आती है तो कर्मचारी सारे एक हो जाते हैं पुलिस प्रशासन सभी अपने लोगों को जब तक हो सकता है तब तक बचाने का पूरा प्रयास करते हैं और राजनीतिक विरोधी होने के बाद भी नेता अपने स्वार्थों ओर हितों को पूर्ण करने के लिए एक हो जाते हैं लेकिन वर्षों बरस से देखा जा रहा है पत्रकार ही एकमात्र ऐसा है जो अपने पत्रकार साथी पर हुए हमले पर सबसे पहले उसका साथ छोड़ता है और पत्रकार ही पत्रकार के पीछे पड़ जाता है यही कारण है कि आज पत्रकारों को मिलने वाली सभी सुविधाओं पर अब डाका सब मिलकर डाल रहे हैं पत्रकार पहले पत्रकार है अतः पत्रकार को भी एकजुट होने का अधिकार है पत्रकार आपस में नहीं लडे बल्कि अपने विरुद्ध होने वाले षड्यंत्र और उन्हें करने वालों से लड़े ! सोसायटी फॉर प्रेस क्लब में भले ही चुनाव हो पर मन के मलाल ना हो एक दूसरे की टोपी ना उछले पत्रकार स्वान नहीं सिंह बने पत्रकार एकता जिंदाबाद एक गैर सदस्य पत्रकार की अभिलाषा पूर्ण हो बस बहुत हुआ अब पत्रकार एक हो हालाकि में भी वही गलती कर ओर दोहरा रहा हूं जो रामायण काल में वीर बजरंगबली अंगद मेघनाथ कुंभकरण ने ओर महाभारत काल में विदुर भीष्म ओर श्री कृष्ण ने की थी पर अब वक्त है बदलाव का तो कुछ भी हो सकता है ओर असम्भव कुछ भी नहीं ! *(एच एन टी)*
*🙏 पत्रकार एकता जिंदाबाद🙏*
