उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकारों ने अतिथि देवो भव की परंपरा को दी प्राथमिकता

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उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकारों ने अतिथि देवो भव की परंपरा को दी प्राथमिकता
एक पत्रकार की वैचारिक क्षमता कितनी परिपक्व होती है इसका उदाहरण उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकारों ने प्रस्तुत किया , अतिथि देवो भव अर्थात ,अतिथि देवता के समान होता है और अतिथि का सम्मान करना उज्जैन की ही नहीं बल्कि पूरे भारत की परंपरा रही है उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकारों ने इस परंपरा का निर्वाहन अपने तमाम आपसी मतभेदों को दरकिनार रखते हुए किया।
प्रखर पत्रकार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संसद में अपने वक्तव्य में कहा था कि अपनी परम्परा ,संस्कृति को प्राथमिकता देना हमारी नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, पार्टियां बनती है बिगड़ती है संगठन बनते हैं बिगड़ते हैं वैचारिक मतभेद भी होते हैं लेकिन इन सबके बीच सार्वजनिक मंच आपसी मतभेदों को दरकिनार करते हुए हमारी परंपरा का निर्वहन करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, और इसी उच्च कोटि की वैचारिक क्षमता का परिचय उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकारों ने दिया।
पत्रकारों का जीवन जहाँ एक तरफ कर्ण के समान त्याग और परोपकार से भरा होता है, तो वहीं दूसरी ओर भगवान श्री कृष्ण की भांति सत्य के साथ और अन्याय के ख़िलाफ़ अपने तमाम व्यक्तिगत हित अहित को दरकिनार करते हुए लड़ना होता है।
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तो है ही लेकिन इसी में पूरा लोकतंत्र समाहित है साधारण शब्दों में कहें तो लोकतंत्र के संचालन संधारण और मार्गदर्शन जैसी प्रमुख भूमिका का निर्वाहन मीडिया करता है इसी के चलते मीडिया कर्मी अर्थात पत्रकार का निष्पक्ष और हर स्थिति में मानसिक रूप से परिपक्व होना परम आवश्यक है।
उज्जैन के पत्रकारों ने अपने हित अहित को अतिथियों के सम्मान के लिए दरकिनार करते हुए एक मिसाल कायम की है।


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