पुरुष एवं प्रकृति की समानता का प्रतीक है ।

भगवान शिव ने ब्रह्मा व विष्णु के बीच श्रेष्ठता के विवाद को शांत करने के लिए 1 ज्योतिर्लिंग को प्रकट किया था , जिसके आदि अंत को ढूंढते हुए उन्हें शिव के परम ब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ । इसी समय शिव को परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में ज्योतिर्लिंग की पूजा आरंभ हुई । विक्रम संवत के कुछ शताब्दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का प्रकोप हुआ । आदिमानव को यह रुद्र का आविर्भाव दिखा । जहाँ - जहाँ यह पिण्ड गिरे वहाँ - वहाँ इनकी रक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए । आकाश से जो पिण्ड गिरे तो थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया इसलिए ज्योतिर्लिंग कहलाए । मोसोपोटेमिया व हड़प्पा की संस्कृति में शिवलिंग की पूजा के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं । पशुओं के देवता के रूप में " पशुपति " की पूजा के प्रमाण प्राप्त हुए हैं । सेंधव सभ्यता से प्राप्त एक शिला पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है , जिसके आसपास कई पशु हैं । शिवलिंग के तीन भाग - 1 - ब्रह्मा (नीचे ), 2 - विष्णु ( मध्य ) , 3 - महेश ( ऊपर ) । शिवलिंग के दो प्रकार - 1 - आकाशीय उल्का शिवलिंग 2 - पारद शिवलिंग । पुराणों के अनुसार - शिवलिंग के 6 प्रकार होते हैं - 1 - देव लिंग , 2 - असुर लिंग , 3 - आर्ष लिंग , 4 - पुराण लिंग , 5 - मनुष्य लिंग एवं 6 - स्वयंभू लिंग । शिव = परमकल्याणकारी शुभ । लिङ्ग = स्रजन ज्योति या प्रकाश । अतः शिवलिंग का अर्थ हुआ शुभकर्ता ,कल्याणकर्ता अथवा मंगलकर्ता सृजनात्मक प्रकाश । वेदों में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है । उपरोक्त रहस्यमय विश्लेषण से स्वस्तिक और शिवलिंग की समानता अथवा एकता सिद्ध होती है । यहां शिवलिंग का अर्थ है कल्याणकारी सृजनात्मक प्रकाश तथा स्वस्तिक का अर्थ भी होता है कल्याणकारी , शुभकारी एवं मंगलकारी । स्वस्तिक सूर्य एवं अग्नि का प्रतीक होने से प्रकाश का प्रतीक भी होता है । अतः शिवलिंग और स्वस्तिक दोनों ही अपनी दिव्य ज्योतिर्मय आभा से इस सृष्टि का शुभ , कल्याण एवं मंगल करते हैं । शिवलिंग भगवान शिव का ही स्वरूप है इसलिए कहा जा सकता है कि " शिव ही स्वस्तिक हैं तथा स्वस्तिक ही शिव हैं "। - परमहंस डॉ अवधेशपुरी
स्वस्तिकपीठाधीश्वर – स्वस्तिपीठ , उज्जैन ।
