वैलेंटाइन डे  ब्लैक डे के रूप में मनाएं- परमहंस डॉ अवधेशपुरी महाराज 

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पुलवामा हमले में शहीद हुए वीरों को श्रद्धांजलि स्वरूप किया रक्तदान

मेरे पूज्य गुरुदेव निर्माण पीठाधीश्वर , आचार्य महामंडलेश्वर , राजगुरु बीकानेर स्वामी विशोकानंद भारती जी महाराज का समरसता पर प्रदान किए गए उद्बोधन का अत्यन्त प्रशंसनीय , अनुकरणीय , प्रासंगिक एवं सारगर्भित सन्देश ।
परमपूज्य गरूदेव हैदराबाद एवं अहमदाबाद में अनेकानेक धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों में शामिल हुए । स्वामी जी के सानिध्य में यज्ञ , मूर्ति – प्रतिष्ठा , संतसमागम , मंदिर एवं देव दर्शन तथा भोजन भंडारे आदि के अनेक कार्यक्रम संपन्न हुए । पूरब और पश्चिम उत्तर और दक्षिण के संत समागम में स्वामी जी महाराज ने कहा , कि अपनी अपनी साधना कायम रखते हुए तथा दूसरों को सम्मान प्रदान करते हुए भारत राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के कार्यक्रम होते रहने चाहिए ।स्वामी जी ने कहा किलोग संप्रदाय का अर्थ ठीक से न समझते हैं और न समझने का प्रयास करते हैं ।
प पूज्य स्वामी जी ने साम्प्रदायिक समरसता की अत्यंत सारगर्भित , तात्विक एवं अभिनव व्याख्या करतेहुए कहा कि संपूर्ण विश्व में केवल 5 ही संप्रदाय हैं –
1 – आकाश तत्व के स्वामी हैं भगवान विष्णु तथा उन्हें मानने वाले वैष्णव कहलाते हैं एवं उनका सम्प्रदाय वैष्णव सम्प्रदाय कहलाता है ।
2 – पृथ्वी तत्व के स्वामी हैं भगवान शिव तथा उन को मानने वाले शैव कहलाते हैं एवं उनका सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय कहलाता है ।
3 – जल तत्व के स्वामी हैं भगवान गणेश जी तथा उनको मानने वाले गाणपत्य एवं उनका सम्प्रदाय गाणपत्य सम्प्रदाय कहलाता है ।
4 – वायु तत्व के स्वामी हैं भगवान सूर्य तथा उनको मानने वाले सूर्योपासक एवं उनका सम्प्रदाय सूर्य सम्प्रदाय कहलाता है ।
5 – अग्नि तत्व की अधिष्ठात्री हैं भगवती राजराजेश्वरी , उनको मानने वाले शाक्त एवं उनका सम्प्रदाय शाक्त संप्रदाय कहलाता है ।
आकाश ने अपने तत्व के दो भाग किए , उसमें से एक भाग स्वयं के पास रख लिया तथा दूसरे भाग के चार भाग किए जिन्हें पृथ्वी , अग्नि , वायु एवं जल को प्रदान किया । ठीक इसी प्रकार अन्य चारों तत्वों ने भी किया । इसका अर्थ हुआ कि प्रकृति के इन पंचमहाभूतों ने यानी पांचों तत्वों ने अपने एक – एक भाग को आपस में एकदूसरे को प्रदान किया । यह है इन पञ्च महाभूतों की एवं उनके अधिष्ठातृ देवताओं की आपसी समन्वयता अथवा समरसता । हमारे लिए इस समरसता का अनुकरणीय सन्देश है कि जब प्रकति के पांच तत्व एवं उनके अधिष्ठातृ देवता ही तात्विक रूस आपस मे समरस हैं तो फिर हमारी तो हमारी तो उतपत्ति ही इनसे है फिर हम आपस में समरसता के साथ क्यों नहीं रह सकते ? यानी हमें भी आपस में पूर्ण सद्भावना एवं समरसता के साथ रहना चाहिए ।
भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना के समय पर कहा था , कि शिव द्रोही हो करके जो मेरी पूजा करेगा अथवा मुझे याद करेगा या मानेगा वह नर कभी भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता है ।
भगवान शिव ने तो भगवान श्रीराम के प्रेम में अपनी पत्नी का त्याग कर अपना परिवार ही उजाड़ दिया । इसे कहते हैं परस्पर सम्बन्धों की पराकाष्ठा , सद्भाव एवं समरसता ।
प पूज्य स्वामी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आप सफेद कपड़ा छोड़ दें ठीक है हम त्रिपुंड छोड़ देंगे , गैरिक वस्त्र छोड़ दें , अपने-अपने इस्ट को छोड़ दें तो क्या एकता होगी ? एकता में अनेकता एवं अनेकता में एकता यही तो वेदों का सिद्धांत है । यही तो भागवत , अट्ठारह पुराण , महाभारत , रामायण एवं गीता जी का सिद्धांत है ।
अद्वैत सभी ग्रंथों और पंथो से सिद्ध होता है , परंतु आग्रह एवं पूर्वाग्रह का कोई उपाय नहीं है । हम सबको उदार प्रवृत्ति के साथ शास्त्रों का चिंतन , मनन एवं अनुकरण करना चाहिए । आचार्य श्री
क्या कहते हैं ? यह भी श्रद्धा का विषय है परंतु वह आचार्य जिस को मानते हैं वे भगवान अपने वेद अभिव्यक्ति में अवतार अभिव्यक्ति में कर्म और उपासना अभिव्यक्ति में क्या कहते हैं ? इस पर भी ध्यान देना अत्यंत अवश्य है ।
सभी संप्रदाय वालों के साथ सत्संग , मनोविनोद एवं शास्त्र के गंभीर सिद्धांतों पर महाराज श्री ने सहज भाव से प्रकाश डाला और सुना ।
चिन्ना जीयर स्वामी जी ने अपने आचार्य श्री की स्मृति में श्रद्धा पूर्वक जो स्मारक बनाया है , उसके लिए स्वामी जी ने उनको साधुवाद दिया और उत्तर भारत पधारने का आमंत्रण भी प्रदान किया । चिन्ना जियर स्वामी जी महाराज ने जिसे सहर्ष स्वीकार किया ।
प पूज्य स्वामी जी ने कहा की संपूर्ण विश्व सनातन धर्म की मान्यताओं पर येनकेन प्रकारेण आधारित है । भारत ने संपूर्ण विश्व को विश्वगुरु के स्वरूप में मार्गदर्शन प्रदान किया है । यही नहीं भारत स्वर्ग गुरु और ब्रह्मांड गुरु भी है , क्योंकि स्वर्ग केदेवता देवराज इंद्र को गोवर्धन की पूजा के समय अ भगवान श्रीकृष्ण से ही ज्ञान प्राप्त हुआ था और वह वृंदावन की भूमि पर घटित हुआ था । ब्रह्मलोक के ब्रह्मा को भी वृंदावन में ही यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यही नहीं भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के विवाद के अवसर पर भारत भूमि के कैलाश पर दोनों देवताओं को भगवान शंकर के मध्यस्थ होने के कारण सही ज्ञान और मंत्र दीक्षा प्राप्त हुई थी । धन्य है भारत भूमि । भारत भूमिका भारत शब्द ही ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है । यही नहीं हमारे शास्त्रों में इस भारत भूमि को भगवान का स्थूल विग्रह माना गया है ।भगवान के पैर पाताल में हैं और शिर ब्रह्म लोक में । यदि किसी को इस प्रसंग पर शंका या आपत्ति हो तो हम उनसे अपील करते हैं , कि वह कहीं भी और कभी भी अपने ग्रंथ , इष्ट की मान्यता और कथन के आधार पर हम से विचार कर सकते हैं । इन्हीं विचारों के साथ सबका साथ , सबका विकास , सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय की शुभकामना प्रदान करते हैं ।
परमहंस डॉ अवधेशपुरी महाराज
स्वस्तिकपीठाधीशर , स्वस्तिकपीठ , उज्जैन ।


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