महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन पर शुल्क लेने पर आपत्ती दर्ज कराने वाले संत अवधेश पुरी महाराज का संतों ने किया बहिष्कार


उज्जैन, महानिर्वाणी अखाड़ा षड्दर्शन साधु समाज स्थानीय अखाड़ा परिषद एवं पुजारी महासंघ ने संयुक्त रुप से बैठक की जिसमें महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन शुल्क लेने पर अनर्गल बयानबाजी करने एवं प्रशासन को भ्रमित करने का आरोप लगाते हुए संत समाज से बहिष्कृत करने की घोषणा कर दी इसके बाद संत अवधेश पुरी महाराज द्वारा बहिष्कार किए जाने पर विरोध जाहिर किया गया।
दरअसल संत अवधेश पुरी महाराज द्वारा पूर्व में कई बार महाकालेश्वर मंदिर मैं सशुल्क दर्शन व्यवस्था को लेकर आपत्ति दर्ज कराई जिसमें कहा गया की महाकालेश्वर मंदिर में किसी भी श्रद्धालु से दर्शन करने का शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन करने आए श्रद्धालुओं से दर्शन करने की अवज में शीघ्र दर्शन के 250 रुपए प्रोटोकॉल दर्शन के लिए ₹100 गर्भ ग्रह में दर्शन के 1500 रुपए भस्म आरती दर्शन के 200 रुपए इस प्रकार से बाबा महाकाल के दर्शन कराने की अवज में अलग-अलग तरह से महाकालेश्वर मंदिर समिति द्वारा शुल्क वसूला जा रहा है जो की पूर्ण रूप से अनैतिक है हिंदू धर्म के अनुयायियों को हिंदू धर्म स्थल में प्रवेश एवं दर्शन हेतु शुल्क लेना कतई भी सही नहीं ठहराया जा सकता है।
2 दिन पूर्व ही संत अवधेश पुरी ने धर्मस्व मंत्री ऊषा ठाकुर से मुलाकात की थी, जिसमे डॉ अवधेशपुरी महाराज ने मठमन्दिरों के सरकारीकरण एवं महाकाल मंदिर की व्यवस्थाओं पर की चर्चा की थी उक्त चर्चा में
धर्मस्व मंत्री ने माना केवल हिन्दू मठमन्दिरों का सरकारी करण गलत है।
महाराज ने कहा कि इस लोकतांत्रिक देश में आखिर संविधान का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है ? जब हिंदुओं को धार्मिक स्वतंत्रता एवं समानता के मूलअधिकार प्राप्त हैं तो फिर केवल हिंदू धर्मस्थलों का ही सरकारीकरण क्यों किया जा रहा है ? क्या यह एक देश दो कनून से चलेगा ? क्या यह हिन्दुओं के साथ अन्याय नहीं है ?
वास्तव में विश्वप्रसिध्द ज्योतिर्लिंग महाकाल मन्दिर में पनप रही वीआईपी कल्चर एवं भृष्टाचार सरकारीकरण का ही दुष्परिणाम है , हिन्दुओं के मन्दिरों में सरकार द्वारा दर्शन पर टैक्स लगाना कहाँ तक उचित है ? क्या हिन्दू मठमन्दिरों के सरकारीकरण के पीछे उनका व्यसायीकरण ही उद्देश्य है और नहीं तो फिर अन्य धर्मस्थलों का सरकारीकरण क्यों नहीं किया जा रहा है , इस लोकतांत्रिक देश में दोहरा वर्ताव सर्वथा अन्याय है , अतः अब संविधान को ठीक से लागू करने की आवश्यकता है ।
धर्मस्वमंत्री हिन्दू मठमन्दिरों के सरकारीकरण को लेकर महाराजश्री के विचारों से काफी सहमत थीं । महाराजश्री मठमन्दिरों के सरकारीकरण के विरुध्द राष्ट्रव्यापी आन्दोलन की रूप रेखा तैयार कर रहे हैं ।
इसके 1 दिन बाद ही महानिर्वाणी अखाड़ा षड्दर्शन संत समाज स्थानीय अखाड़ा परिषद एवं पुजारी महासंघ ने बैठक करके अवधेश पुरी महाराज को संत समाज ने बहिष्कृत कर दिया।
महंत डॉरामेश्वर दास महाराज ने बताया कि महाकालेश्वर मंदिर एवं संत समाज को लेकर अवधेश पुरी गलत बयान बाजी कर रहे हैं जिसे संत समाज स्वीकार नहीं करेगा इस तरह की बयानबाजी से संत समाज एवं महाकालेश्वर मंदिर की छवि धूमिल हो रही है ऐसे में संत समाज ने अवधेश पुरी का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है।
पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पुजारी ने बताया कि साधु के रूप में जो व्यक्ति भ्रम फैलाने का काम कर रहा है ऐसे व्यक्ति का बहिष्कार किया गया है जोकि महाकालेश्वर मंदिर के संबंध में लंबे समय से अनर्गल बयान दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर महाकालेश्वर मंदिर में अलग-अलग दर्शन शुल्क को हटाकर एक शुल्क व्यवस्था लागू करने की वकालत भी की उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं से महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए अलग-अलग शुल्क ना लेकर एक शुल्क लागू करना चाहिए।
बहर हाल बुद्धिजीवीयों का कहना है कि संत समाज मैं इस तरह की वर्चस्व की लड़ाई अक्सर देखी जाती है एक तरफ जहां संत समाज एवं पुजारी महासंघ अवधेश पुरी महाराज को महाकालेश्वर मंदिर के संबंध में अनर्गल बयान बाजी के लिए दोषी ठहराते हुए बहिष्कार करने की घोषणा करते हैं तो वहीं दूसरी ओर महाकालेश्वर मंदिर मैं दर्शन को लेकर अलग-अलग शुल्क लिए जाने का विरोध भी करते हैं ऐसे में अवधेश पुरी महाराज का कहना है कि संतो और पुजारीयों द्वारा मुझ पर महाकालेश्वर मंदिर के संबंध में अनर्गल बयान बाजी का आरोप लगा रहे हैं लेकिन अनर्गल बयान बाजी का एक भी साक्ष वे प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं अगर मेरे द्वारा महाकालेश्वर मंदिर के संबंध में अनर्गल बयानबाजी की गई है तो उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए
