एनकाउंटर स्थायी हल नहीं,सिस्टम का आत्ममंथन आवश्यक…

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उत्तर प्रदेश का परिदृश्य भारत के लोकतंत्र एवं भारत की न्यायिक व्यवस्था को आइना दिखा रहा है एवं आत्ममंथन करने को प्रेरित कर रहा है, आईना भारत की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भी दिखा रहा है एवं आईना भारत के पुलिस विभाग को दिखा रहा है और चीख चीख कर यह कह रहा है कि भारत के लोकतंत्र के हर तंत्र को आत्ममंथन की आवश्यकता है एवं भारत के संविधान में संशोधन की  भी आवश्यकता है ऐसा इसलिए भी है कि भारत में ऐसा कोई भी राजनीतिक दल नहीं है जिसने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते अराजकता को अपने में शामिल न किया हो , कल तक जो गुंडा तत्व गली मोहल्ले में चाकू बंदूक के दम पर अराजकता फैलाते थे, रातो रात राजनीतिक संरक्षण के चलते चुनाव में राजनीतिक दलों के चुनावी प्रत्याशी बनकर जनप्रतिनिधि का चोला ओढ़कर सांसद, विधायक ,पार्षद बन जाते हैं ,तब राजनीतिक दल इन्हें पाकर गर्व महसूस करते हैं और इन्हें बाहुबली का नाम दिया जाता है, हरेक बाहुबली नेता के पास गुंडों की एक बड़ी फौज होती है जो साम दाम दंड भेद की नीति से अनैतिक धन अर्जित करते हैं एवं समाज में अराजकता एवं भ्रष्टाचार का साम्राज्य गढ़ देते हैं लेकिन यही बाहुबली भविष्य में भस्मासुर बन जाते हैं, अर्थात राजनीतिक दलों को आत्ममंथन की आवश्यकता है ।

आवश्यकता इस बात की भी है कि न्यायिक व्यवस्था भी आत्ममंथन करें क्योंकि जब कोई अपराध करता है तब आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति यह जानता है की अपराध करने के बाद उसे सरेंडर करना है एवं अदालत उसे जेल भेज देगी एवं जेल में रहकर वह अपने अपराधों के सारे साक्ष खत्म कर देगा एवं अदालत में साक्ष की कमी के चलते वह मुक्त हो जाएगा, गैंगस्टर विकास दुबे ने 2001 में तत्कालीन राज्यमंत्री संतोष शुक्ल की शिवली थाने में घुसकर सरेआम हत्या कर दी थी, बावजूद इसके इस हत्याकांड में उसे कोई सजा नहीं हुई, 2006 में वह इस केस से बरी हो गया, पुलिसकर्मियों ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी थी,  ऐसे में अपराधियों को अपराध करने के लिए बल मिलता है एवं इस दांव पेंच में राजनीतिक संरक्षण का भी बड़ा योगदान होता है इसलिए न्यायिक व्यवस्था को भी आत्ममंथन करने की आवश्यकता है अन्यथा अपराध पर लगाम लगाना संभव नहीं होगा।

पुलिस विभाग जिस पर जनता की सुरक्षा का भार होता है एवं जनता की सुरक्षा की शपथ लेकर वे इस कर्तव्य को निभाते हैं लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए चंद सिक्कों में अपना जमीर बेंचकर अपने ही महकमे के साथ विश्वासघात करके अपने ही सिपाहियों की जान के दुश्मन बन जाते है, ऐसे जयचंद पूरे पुलिस विभाग की छवि को न सिर्फ धूमिल करते हैं बल्कि जनता के पुलिस के प्रति विश्वास पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हैं ,अपराधियों का एनकाउंटर समस्या का हल नहीं हो सकता और यह हिटलर शाही का प्रदर्शन करता है जिसका लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं एवं नाही भारत का संविधान इसकी इजाजत देता है, अर्थात पुलिस विभाग को भी आत्ममंथन की आवश्यकता है।

बहर हाल वर्तमान परिदृश्य में राजनीतिक दलों को इस बात पर आत्ममंथन करना होगा कि अगर भविष्य में भारत के लोकतंत्र को जीवित रखना है तो ऐसे भस्मासुर रूपी बाहुबलियों को राजनीतिक संरक्षण से मुक्त करना होगा देश सेवा एवं जन सेवा के अभियान में अराजकता का कोई स्थान नहीं होता एवं अगर किसी राजनीतिक दल में कोई अराजक शामिल होता है तो वह भविष्य में उस पार्टी के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है, इस विषय में राजनीतिक दलों को संज्ञान लेना आवश्यक है, न्यायिक व्यवस्था में भी आवश्यक बदलाव करने की आवश्यकता है ताकि किसी को न्याय मिलने में देरी ना हो क्योंकि न्यायिक व्यवस्था में देरी होने पर अपराधी के अपराध के साक्ष्य को प्रभावित करने की संभावना बढ़ जाती है वहीं पुलिस महकमे को अपनी जिम्मेदारी समझने की आवश्यकता है पुलिस अगर अपने कर्तव्य पर अडिग एवं सख्त है ,तो कोई अपराध अपने पैर पसारने की हिमाकत नहीं कर सकता  ।

विकास दुबे ने गुनाह किया है तो गुनाहगार पूरा सिस्टम  है, क्योंकि इस सिस्टम में बदलाव नहीं किया गया तो हर दिन सेंकडों विकास दुबे जन्म लेंगें,ओर यह क्रम चलता रहेगा,क्योकि इस अराजकता को गढ़ने में लोकतंत्र का हर तंत्र     (न्यायपालिका,   कार्यपालिका, विधायका, मीडिया ) जिम्मेदार हैं ओर सभी को आत्ममंथन की आवश्यकता है।

 

 


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