फैसले पर पुनर्विचार करें प्रशासन अन्यथा स्थिति गंभीर हो सकती है…

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इन दिनों मौसम में परिवर्तन हो रहा है ,गर्मी भी है और उमस भी ,जिसके कारण बारिश भी है और ठंडक भी, ऐसे मौसम में देखा जा रहा है कि सर्दी ,जुकाम ,खांसी ,बुखार के पेशेंट बढ़ते जा रहे हैं इस प्रकार के पेशेंट शहरों में भी हैं और ग्रामीण क्षेत्र में भी हैं।

कोरोना संक्रमण लॉकडाउन के पहले अर्थात मई के महीने में मरीजों की संख्या जून की अपेक्षा ज्यादा थी एवं लॉक डाउन खुलने के पश्चात दिन प्रतिदिन कोरोना संक्रमित पॉजिटिव मरीजों की संख्या में अचानक कमी देखी जा रही है और अब प्रशासन ने टेस्टिंग सुविधा भी बढ़ा दी है लेकिन अभी भी शहरों में विभिन्न स्थानों पर कोरोना संक्रमण के मरीज मिल रहे हैं एवं होम क्वॉरेंटाइन एवं कंटेनमेंट क्षेत्र शहर में किए जा रहे हैं।

ऐसे समय में जब मौसम परिवर्तन के कारण से भी लोगों में सर्दी जुकाम खांसी बुखार हो रहा है ,बरसात होने की वजह से भी पानी में खराबी होने  से भी लोगों में हर साल इस तरह की परेशानियां हो जाती है ,ऐसे में डॉक्टरों का कहना है कि पानी को साफ एवं उबालकर इस्तेमाल करना चाहिए लेकिन इन सब परिस्थितियों में परेशानियां यह आ रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी सर्दी जुकाम खांसी बुखार जैसी समस्याएं लोगों में देखी जा रही है लेकिन प्रशासन के आदेश अनुसार डॉक्टर विशेषकर एलोपैथिक डॉक्टरों को छोड़कर बाकी सभी पैथी के डॉक्टर इस प्रकार के मरीजों का इलाज नहीं कर रहे हैं,  सर्दी जुकाम खांसी बुखार के पेशेंट में कोरोना की संभावना के चलते हैं डॉक्टरों द्वारा इलाज न करने का फरमान जारी किया गया है, तब एलोपैथिक डॉक्टर इसका इलाज क्यों कर रहे हैं?, जो डॉक्टर कोरोना संक्रमण काल के दौरान घर में दुबक कर बैठ गए थे और अपने कर्तव्य एवं जनता के साथ धोखा कर रहे थे वे डॉक्टर अब मोटी फीस लेकर सभी प्रकार के मरीजों का इलाज कर रहे हैं जबकि कोरोना संक्रमण का किसी भी पेथी में कोई इलाज कारगर सिद्ध नहीं हुआ है ,ऐसे में एलोपैथिक डॉक्टरों को इलाज करने की छूट क्यों ? जबकि कोरोना का इलाज एलोपैथी से भी संभव नहीं है।

ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी डिस्पेंसरी में स्टाफ एवं डॉक्टरों की कमी के चलते कई डिस्पेंसरी या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बंद पड़े हैं एवं ग्रामीण क्षेत्र के लोग आयुर्वेदिक ,होम्योपैथिक एवं जन स्वास्थ्य रक्षक से अपना प्राथमिक उपचार कराते हैं लेकिन प्रशासन के आदेश अनुसार सर्दी जुकाम खांसी बुखार के मरीजों को ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय प्राथमिक उपचार करने वाले डॉक्टर इलाज नहीं कर रहे हैं ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को साधारण सर्दी जुकाम खांसी बुखार में भी जिला अस्पताल में आना उनकी मजबूरी हो रही हैं एवं जिला अस्पताल में शहर एवं ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों की संख्या बढ़ने से प्रशासन की व्यवस्था अस्त व्यस्त हो सकती है, क्योंकि जिला चिकित्सालय में भी ओपीडी बंद है और अगर इसको चालू भी कर दी जाती है तब भी पूरे जिले ,जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज भी अगर जिला चिकित्सालय में आते हैं तब प्रशासन हजारों सर्दी जुकाम खांसी बुखार के मरीजों का इलाज करने में सक्षम नहीं हो पाएगा।

बाहर हाल  ग्रामीण क्षेत्रों में भी मौसम परिवर्तन के कारण से सर्दी जुकाम खांसी बुखार के मरीज बढ़ते जा रहे हैं एवं वे विवश होकर इलाज न मिलने के कारण शहर में आ रहे हैं और ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों से लोग सर्दी जुकाम खांसी बुखार के इलाज के लिए शहर में आकर कोरोना संक्रमण को साथ में ग्रामीण क्षेत्र में ले जा सकते हैं इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता अभी ग्रामीण क्षेत्र कोरोना संक्रमण से काफी हद तक बचा हुआ है और ऐसे में इससे ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण बढ़ने की संभावना बढ़ सकती है , इन परिस्थितियों में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का कहना है कि प्रशासन को अपने आदेश (जिसमें सर्दी जुखाम खांसी बुखार के पेशेंट का इलाज पर प्रतिबंध) पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, एवं स्थानीय डॉक्टरों को प्राथमिक उपचार की अनुमति प्रशासन को देनी चाहिए ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का प्राथमिक उपचार ग्रामीण क्षेत्रों में ही हो सके उन्हें शहर आने की आवश्यकता ना हो ताकि ग्रामीण क्षेत्रों को कोरोना संक्रमण से दूर रखा जा सके, क्योंकि एक बार ग्रामीण क्षेत्रों में अगर कोरोना फैल गया तो प्रशासन को उस परिस्थिति को संभालना मुश्किल हो सकता है इसके लिए प्रशासन को आदेश में संशोधन करने जा सकता है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को प्राथमिक उपचार के लिए शहर में आना पड़े।


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