भारत से सटी सीमा पर चीनी सैनिकों द्वारा लगातार अतिक्रमण और घुसपैठ की कोशिशें हुई हैं. लद्दाख से लेकर सिक्किम और अरुणाचल तक में चीन लगातार सीमा पर भारतीय सैनिकों को उकसाने की कोशिश करता आया है, ऐसे में विश्व की महाशक्तियों का भारत के पक्ष में खड़ा होना बहुत कुछ कहता है, वैसे भी कोरोना काल में भारत वैश्विक लीडर बनकर उभरा है, भारत की भेजी दवा से समूचे विश्व का काम चल रहा है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 1962 के बाद पहली बार भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई है,कोरोना के कारण घरेलू मोर्चे पर बुरी तरह घिरे चीनी नेतृत्व से एलएसी पर तनाव को चरम पर पहुंचाने का अंदेशा पहले भी था,गलवां घाटी लद्दाख का क्षेत्र है, यहां पर गलवां नदी बहती है,साल 1962 में दोनों देशों के बीच हुए युद्ध में भारत-चीनी सैनिकों के बीच यहीं टकराव हुआ था,चीनी सेना हमेशा से ही विवादित क्षेत्रों में टेंट लगाकर उकसावे का काम करती रही है,हाल ही में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने ऐसा करने की कोशिश को तो भारतीय पक्ष ने उसे रोका, जिसे लेकर दोनों पक्षों में झड़प हुई ।
हिंसक संघर्ष में 20 भारतीय सैनिकों शहीद हुए है और चार गंभीर रूप से घायल हुए हैं, झड़प में चीन के भी करीब 43 सैनिकों के मारे जाने की खबरें हैं,यह हिंसक झड़प सोमवार-मंगलवार की दरमियानी रात उस समय शुरू हुइ जब भारतीय सैनिक सीमा के भारत की तरफ चीनी सैनिकों द्वारा लगाए गए टेंट को हटाने गए थे,चीन ने 6 जून को दोनों पक्षों के लेफ्टिनेंट जनरल-रैंक के अधिकारियों के बीच बातचीत के बाद इस टेंट को हटाने पर सहमति जताई थी,जानकारी यह भी है कि चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय कर्नल बीएल संतोष बाबू को निशाना बनाने के बाद एक शारीरिक संघर्ष छिड़ गया और दोनों पक्षों के बीच डंडों, पत्थरों और रॉड का जमकर इस्तेमाल हुआ ।
कोरोना के मामले में चीन बुरी तरह घिरा हुआ है,मगर इस बीच सीमा विवाद पर भारत को मिलता समर्थन बहुत कुछ कहता है, चीन पहले से ही दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर दोनो ही इलाकों में अपनी हरकतों से विवादों के घेरे में है,चीन ने इस क्षेत्र में कई द्वीपों पर अपना सैन्य अड्डा भी बनाया है, ये दोनों क्षेत्र खनिज, तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न हैं और वैश्विक व्यापार का अहम समुद्री मार्ग भी हैं,इसी को देखते हुए अमेरिका यहां चीन को खुली चुनौती दे रहा है. इससे पहले ताइवान और हांगकांग के मामले में भी अमेरिका चीन की घेराबंदी कर चुका है।
वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक एलिस जी वेल्स ने चीन पर बड़ा हमला बोला. चीन की मौजूदा स्थितियों के चलते उनके इस प्रहार के कई महत्वपूर्ण मायने निकाले जा रहे हैं. वेल्स ने भारत-चीन सीमा पर तनाव और विवादित दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के बढ़ते आक्रामक व्यवहार को जोड़ते हुए इसमें चीन की नापाक साजिश की आशंका जताई. चीन पर अमेरिका की ये टिप्पणियां इस दौर में खासी मायने रखती हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्र्ंप पहले से ही चीन पर खासे हमलावर रहे हैं. ट्रंप ने कोरोनावायरस को चीनी वायरस तक कह डाला. ट्रंप ने साफ-साफ कहा कि चीन कोरोना वायरस के फैलने के लिए जिम्मेदार है. उन्होंने खुलकर कहा कि इस वायरस का केंद्र चीन का वुहान शहर है।
चीन अभी भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की स्थिति में नहीं है,चीन की योजना भारत को चारों तरफ से घेर कर दबाव में लाने की है,इसके कई कारण हैं।
चीनी नेतृत्व की कार्यशैली पर निगाह डालें तो घरेलू मोर्चे पर मुश्किलों से घिरने पर वह हमेशा अपने देश में राष्ट्रवाद का ज्वार पैदा करता रहा है, अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर हिला चीन हांगकांग के साथ ही भारत से भी रिश्ते में लगातार तनाव बढ़ा रहा है,दरअसल, उसकी रणनीति खुद को पीडि़त के रूप में पेश करने की है।
वह कभी भारत को अपने प्रतियोगी के रूप में उभरते नहीं देखना चाहता,फिलहाल, दुनिया के ताकतवर देश चीन को अलग-थलग करने में जुटे हैं,इसमें डब्ल्यूएचओ से जांच का मामला हो या फिर दक्षिण चीन सागर का सवाल, भारत इसमें चीन को घेरने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के वेबसाइट के मुताबिक, 2018 में भारत चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ लेकिन इसमें भारत ने जो सामान निर्यात किया उसकी क़ीमत 18.84 अरब डॉलर थी.चीन में भारत के राजदूत ने जून में दावा किया था कि इस साल यानी 2019 में भारत-चीन का कारोबार 100 बिलियन डॉलर पार कर जाएगा।
भारत चीन को मुख्य रूप से जो चीज़ें बेचता है, वो हैं :
- कॉटन यानी कपास
- कॉपर यानी तांबा
- हीरा और अन्य प्राकृतिक रत्न
चीन, भारत को जो चीज़ें बेचता है, वो हैं :
- मशीनरी
- टेलिकॉम उपकरण
- बिजली से जुड़े उपकरण
- ऑर्गैनिक केमिकल्स यानी जैविक रसायन
- खाद
भारत को अगर किसी देश के साथ सबसे ज़्यादा कारोबारी घाटा हो रहा है तो वह चीन ही है. यानी भारत, चीन से सामान ज़्यादा खरीद रहा है और उसके मुक़ाबले बेच बहुत कम रहा है.
2018 में भारत को चीन के साथ 57.86 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा हुआ।
बाहर हाल भारत और चीन सीमा पर बिगड़ते हालातों को देखते हुए भारत सरकार चीन से हुए व्यापारिक समझौता पर पुनर्विचार कर सकती है अंदेशा यह भी बताया जा रहा है कि भारत अपनी व्यापारिक नीति में चीन को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव कर सकता है वहीं वर्तमान हालातों को देखते हुए एवं चीन से फैले कोरोना संक्रमण की वजह से भारत में हुई अभूतपूर्व क्षति से भारत के लोगों में काफी गुस्सा देखा जा रहा है एवं सोशल मीडिया पर चीनी सामान का बहिष्कार करने का अभियान भी जोर पकड़ता दिख रहा है।
