क़दम मिलाकर चलना होगा..
वक्त है परिवर्तन का, परिवर्तन हमें अपनी कार्यशैली में करने का, क्योंकि वर्तमान परिदृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ(मिडिया) की उपेक्षा की जा रही है ,उसके अस्तित्व को विलुप्त करने का प्रयास किया जा रहा है, उसके हक़ को छिनने या मारने का प्रयास भी किया जा रहा है, उसकी आवाज़ को बल पूर्वक दबाने की कोशिश की जा रही है, उसे पोस्टमेन या एक राजा के भाट बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है,पत्रकार को फ़कीरी जीवन जीना स्वीकार है, लेकिन उपेक्षित ओर अपमानित जीवन स्वीकार नहीं है।
मित्रों इतिहास यह कहता है कि एकता ही किसी भी संगठन, समाज या दल की न सिर्फ शक्ति होती है बल्कि उसे एक अलग पहचान एवम सम्मानित स्थान भी दिलाता है।
आज जरूरत इस बात की है कि कलम की धार ,तलवार की धार की तरह पैना किया जाए,जिसकी सरकार और समाज के सम्मुख एक नई पहचान बन सके और उसकी कलम की लेखनी का असर दिखे,शासन प्रशासन को यह अहसास हो ,किसी पत्रकार की क़लम ,अर्जुन के गांडीव से निकले तीर की भांति हो सकती है,जो समाज का सही मायने में प्रतिनिधित्व कर सके, समाज का सही प्रतिबिंब निर्भीकता से दिखा सके ,आज के परिदृश्य में जनप्रतिनिधि ,शासन प्रशासन के नुमाइंदे ,ऐसा प्रतीत होता है अपने कर्तव्य एवम अपनी जनसेवा की भावना से भटक रहे हैं, जिसकी जो मर्जी में आ रहा है वह मनमानी कर रहा है, ओर जनसेवा के किये प्रतिबद्ध राजनेता माया से वशीभूत होकर मदमस्त हो रहे हैं, अनीति,अत्याचार, भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है,इसका जीता जागता उदाहरण हमने महामारी के समय में देखा,अपने निजी स्वार्थ के चलते जनता की जान के साथ खिलवाड़ किया गया ,मनमाने निर्णय, मीडिया पर पर्दा डालकर लिए गए,भ्रष्टाचार का नंगा नाच खुलेआम किया गया, न कोई देखने वाला न सुनने वाला ,पत्रकार अपनी जान हतेली पर लेकर अपना फ़र्ज निभाता रहा और जनप्रतिनिधि उनकी परवाह करे बगैर रिसॉर्ट ओर 5 सितारा होटलों में लोकतंत्र की नीलाम बोली लगाते दिखे,ओर मीडिया अपने हक़ के लिए उपेक्षा का शिकार होता दिखा।
वक्त की मांग है कि पत्रकार अपने हक़ के लिए एकजुटता से आवाज़ बुलंद करें ओर पहचान एवम उपस्थिति को साबित करें।
आज राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते लोगों को धर्म के नाम पर ,जाती के नाम पर बांटने की कोशिशें हो रही ,जिसका घिनोना परिदृश्य हमने भारत में दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में देखा और जिसके चलते सेंकडों लोग इसकी बलि चढ़ गए,कोरोना महामारी के काल मे हमने हजारों मजदूर राजनीति के कारण दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए,मीडिया एक ऐसा तंत्र है जिस पर विधायिका, कार्यपालिका,न्यायपालिका इन सभी तंत्रो की कार्यप्रणाली में जनता के लिए जनहित ओर पारदर्शिता हो इसकी जिम्मेदारी होती है, ओर ऐसे में किसी तंत्र में जनता के साथ न्याय नहीं होता है, एवम स्वार्थ ,लोभ ,मोह,ने जनहित का स्थान ले लिया हो ,अर्थात अत्याचार ,भ्रष्टाचार हो रहा हो तो मीडिया की जिम्मेदारी होती है कि वह अन्याय को उजागर करे,ओर जनता को न्याय दिलाने की राह में उसे पग पग पर कांटो का ,जोखिम का सामना करना पड़ेगा,उसे दबाने कुचलने का प्रयास किया जाएगा ,लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की भाँती इस कुरुक्षेत्र में अपने सुदर्शन चक्र रूपी कलम के साथ अडिग होकर खड़ा होना होगा ,
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूत और शशक्त करना हम सबकी जिम्मेदारी है,हमें क़लम की ताक़त को को पहचानना होगा,ओर दिखाना होगा,क्योकि मीडिया लोकतंत्र में एक “गुरु ,सिपाही,चौकीदार, ओर मार्गदर्शक” की भूमिका में है ओर इस भूमिका पर ख़रा उतरने के लिए हमें अपनी कार्यशैली में आवश्यक बदलाव करने की आवश्यकता है।
🙏मनोज उपाध्याय🙏
पत्रकार
उद्यानों में, वीरानों में,अपमानों में, सम्मानों में,
