आज मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं,ये बयां करने कि मानव अब हैवानियत की पराकाष्ठा को किस हद तक छू गया है,लेकिन मानव ऐसा हैवान है जो बेजुबान जानवर तो क्या वह इंसान को भी नहीं बख्श रहा है।
केरल में एक बेजुबान हथिनी को खाने में बम लगाकर खिलाया गया ,जिससे उस गर्भवती हथिनी की तड़प तड़प कर मौत हो गई और जिसने इस दृश्य को देखा उसकी रूह कांप उठी ,जानकारी यह भी है कि हाथी को मारने का यह तरीका केरल में अक्सर प्रयोग किया जाता है वहीं केरल में गाय को काट कर उसके मांस उपयोग करने पर भी कोई रोक नहीं है, शासन प्रशासन इससे परिचित भी है लेकिन कार्यवाही के नाम पर कुछ नहीं किया जाता।
लेकिन सवाल यह उठता है कि हम मानवता की उम्मीद किससे कर रहे हैं, उससे जो चंद महीनों की मासूम बच्चीयों के साथ हैवानियत करके उनकी निर्मम हत्या कर देता है,कहने को हम आज़ाद हो गए हैं लेकिन कृत्य हमारे अंग्रेजों से भी ज्यादा क्रूर हैं, ओर कहने को लोकतंत्र है लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा मानवता को तार-तार करती अक्सर दिख जाया करती है, जब हम देखते हैं की जब एक जनता का सेवक कहलाने वाला जनता के द्वारा चुना गया जनप्रतिनिधि आलीशान गाड़ी से रास्ते पर गुजरता है वहीं रोड किनारे कचरे से खाना उठाकर खाता एक इंसान भी दिखता है।
गरीब, शोषित ,वंचित यह सभी शब्द बन कर रह गए हैं और इन शब्दों को मिटाने की कसमें खाते राजनीतिज्ञों को हम देख रहे हैं लेकिन यह शब्द आज भी जीवंत है , कोरोना के लॉक डाउन कॉल में भी हमने मानवता को शर्मसार होते देखा है जब मजबूर ,लाचार मजदूर सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खा रहे थे ,तब राजनीति अपनी बेशर्म नजरों से उनकी परेशानियों का वीडियो देखकर उनकी इस परेशानी में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा खोज रहे थे ,हालात यह हैं कि हजारों क्विंटल राशन जो उन मजदूरों ,ग़रीबों तक मदद के रूप में पहुँचना था कि हेरा फेरी हो गई।
बहरहाल मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि पलक्कड जिले के मन्नारकड़ वन मंडल में हथनी की मौत मामले में प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है और पुलिस को घटना के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं।
“मानवता को हम ढूंढे तो आखिर कहां?”, इंसान बेजुबान जानवर पर क्रूरता करते वक्त यह भूल जाता है की ऊपर वाले की लाठी में भी जबान नहीं होती।
“जरूरत आत्म मंथन की है”
